सोमवार, 25 मार्च 2019

आखिर कॉंग्रेस ने देश के लिए किया क्या?


70 सालों में आखिर कॉंग्रेस ने देश को दिया ही क्या है? एक क्षण ज़रा रुकिए। जब हम पिछले 70 सालों की बात करते हैं तो ये भूल ही जाते हैं कि उन 70 सालों में कई बार अन्य दलों ने भी अपनी सरकार बनाई। जैसे सन 1977-1980 तक जनता पार्टी ने अपनी सरकार चलायी। फिर 1989-1990 तक जनता दल आया। 1996-1998 तक यूनाइटिड फ्रंट उसके बाद 1998-2004 तक भारतीय जनता पार्टी ने अपनी सरकार चलायी। उसके बाद 2014 से फिर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है। तो अगर 2019 तक भारत को स्वतंत्र हुए 72 साल हो गए उसमें से 12 सालों का योगदान कॉंग्रेस का नहीं है। पर ये सिद्ध होता है कि बाकी बचे 60 सालों के शासन ने भारतीय राजनीति (अच्छी या बुरी) और देश की उन्नति की जो नींव रखी वो वैसे ही बरकरार है।

अब बात करते हैं कि आखिर कॉंग्रेस ने इन 60 सालों में भारत को दिया क्या? भारत के लिए किया क्या?

IIT की स्थापना करते वक़्त पता नहीं कॉंग्रेसी प्रधानमंत्री ने क्या सोचा होगा। देश से इंजीनियर निकालेंगे। मशीने बनाएँगे। अब बताओ जब सारे काम हांथ से कर ही लेते हैं तो इन मुई मशीनों को बनाने में देश का पैसा और श्रम बर्बाद कर के क्या करना था। क्या तीर मार लिया इंजीनियर्स ने, आखिरकार सारे चाय की टपरियों पर ही तो जमा मिलते हैं। उनसे ज़्यादा तो चायवाला कमा लेता है। तो इस हिसाब से मोदी जी सही हैं और हर भाजपाई सही है। चाय बेचना सबसे बड़ा और पैसेवाला रोजगार है।

AIIMS की स्थापना करते समय और देश को चिकित्सा शिक्षण संस्थान देते समय भी पता नहीं कॉंग्रेस के दिमाग में क्या चल रहा था। अब स्त्री रोग विज्ञान, बाल रोग विज्ञान और केन्सर चिकित्सा इत्यादि में भारत ने प्रगती कर भी ली है तो इससे क्या। बीमारियाँ तो पतंजलि का गौ मूत्र पी कर भी ठीक हो जाती हैं। अब बताइये डॉक्टर्स आखिर करते ही क्या हैं? कमाते ही कितना होंगे? इससे ज़्यादा तो अस्पतालों के बाहर पकोड़े वाला पकोड़े बेच के कमा लेता है। है कि नहीं? मोदी जी फिर सही हैं पकोड़े बेचना एक बेहतरीन रोजगार है।

ISRO की स्थापना करते समय भी कोंग्रेसी प्रधानमंत्री का दिमाग चल गया होगा। अब ये चंद्रयान, मंगलयान, सेटेलाइट्स, वगैहरा की हमें ज़रूरत ही क्या है। चाँद पे राकेश शर्मा घूम आए तो कौन सा बड़ा तीर मार लिया? हम तो अब भी मानते हैं कि चाँद पर एक बुढ़िया बैठी सूत कात रही है। उसके बाद देखिये फिर कॉंग्रेस ने ही परमाणु हथियार, मिसाइल, जेट इत्यादि के बारे में सोचा और देश को उन्नत किया। जल-थल-वायु सेनाओं को सशक्त किया। क्या ज़रूरत है? कोई ज़रूरत थी क्या? किसी के पास उस समय 56 इंच की छाती होती तो बात ही क्या थी। अब इस सब से तो बेहतर था कि थोक में पान की दुकाने खुलवा देते। पान खा कर भी देशवासियों को आनंद आता और पान बेच के रोजगार भी मिलता। पर क्या करें कॉंग्रेस के पास तो ऐसा भाजपायी दृष्टिकोण ही नहीं था।

फिर शिक्षण संस्थान, कंप्यूटर, मोबाइल, इन्टरनेट भी दे डाला इन कमबख़्त कोंग्रेसियों ने। क्या रखा है पढ़ाई-लिखाई में। नेता बनने के लिए तो वैसे भी कोई डिग्री नहीं लगती। इस मोबाइल ने तो नाक में दम ही कर रखा है और ये इन्टरनेट, ये तो सबसे बड़ा सर दर्द है। नहीं-नहीं यहाँ मैं गलत हूँ। इन्टरनेट को तो भाजपा भी मानती है। इसी इन्टरनेट के माध्यम से भाजपा ने असंख्य बेरोजगारों को अपने IT सेल में रोजगार दे रखा है। वो भी इतने सरल से सरलतम कार्य के लिए कि बस बहुत सारा झूठ बोलना और लिखना है। ढेर सारी गालियाँ चुन-चुन कर मारनी हैं। खुलेआम बलात्कार की धमकियाँ देनी हैं और ढेर सारा अपमान करना है।

रही बात शिक्षा की तो चौकीदार बनने के लिए किसी टेक्निकल डिग्री की ज़रूरत नहीं पड़ती। कॉंग्रेस तो व्यर्थ ही डॉक्टर, इंजीनियर, शिक्षक, वैज्ञानिक और ना जाने क्या-क्या बनाती रह गयी। असल में रोजगार यही है। चाय बेचिए, पकोड़े बनाइये, पान की दुकान चलाइए और फिर विकास की दर बढ़ते-बढ़ते चौकीदार बन जाइए। पिछले पाँच सालों में विकास तो हुआ है। चाय बेचने से बात चौकीदारी तक पहुँच गयी है। याकिन मानिए अगले पाँच साल भाजपा को और दीजिये। चौकीदार का प्रमोशन होगा और पदोन्नति हो कर बात चपरासी तक अवश्य पहुचेंगी। मुझे पूरा यकीन है। ऐसी ज़बरदस्त सोच और दृष्टिकोण  कॉंग्रेस के पास कभी था ही नहीं और कभी हो ही नहीं सकता। मुझे अफसोस है कि मैं उस जेनेरेशन में पैदा हुई, शिक्षित होने के लिए कितना परिश्रम करना पड़ा। कितना पैसा खर्च हुआ। काश मोदी सरकार के शासन के दौरान जन्म लिया होता और शिक्षा अभी आरंभ हुई होती तो पढ़ाई-लिखाई का कोई दबाव ही नहीं होता। आखिर रोजगार के इतने सारे माध्यम जो उपलद्ध हैं।

चलो अब जो भी है। बस मोदी जी से इतना आग्रह है कि वो याद कर लें कि चायवाला, पकोड़ेवाला, पानवाला, गंगा का बेटा और अंततः चोकीदार होने के से पहले और होने के बाद भी वो देश के प्रधानमंत्री भी हैं और उनकी देश के प्रति इस अदम्य निष्ठा को मैं कोटी-कोटी नमन करती हूँ।


मंगलवार, 12 मार्च 2019

क्या आपको भी नरेंद्र मोदी जैसा पुत्र चाहिए?



काफी समय से सोशल नेटवर्क पर लोगों का एक नया ओबसेशन देख रही हूँ। उन्हें नरेंद्र मोदी जैसा पुत्र अपेक्षित है। जिनके पास पहले ही संतान है वो अगले जन्म के लिए ईश्वर से मांग रहे हैं और जिन्हें अभी संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ वो इसी जन्म के लिए। तो वो जिनके बेटा अभी छोटा है, उसे नरेंद्र मोदी जैसा बनाना चाहते हैं। तो कुछ केवल ये बात इसलिए कहते या लिखते हैं क्यूंकी वो सरे आम राहुल गांधी को एक व्यर्थ या दुर्बल संतान बता कर उनका उपहास उड़ाना चाहते हैं।

भारत के वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी, हो सकता है एक अच्छे नेता/राजनेता हों (कुछ ही प्रतिशत जनता की दृष्टि में) पर क्या एक संतान या पुत्र के रूप में ईश्वर से मांगने के लिए मात्र उनका ऊपरी/बाहरी आवरण ही काफी है। क्या उनके चारित्रिक गुणों/अवगुणों को तोलने की कोई कोई आवश्यकता नहीं?
भारत को उसकी संस्कृति, वेद, उपनिषद और सभ्यता के लिए जाना जाता है। धार्मिक या ऐतिहासिक युग की चर्चा करें तो माता-पिता अपने लिए देवताओं जैसे संतान की अपेक्षा करते थे। एक उत्तम संतान प्राप्ति के लिए कठिन तपस्या करते थे। किसी को बलशाली पुत्र चाहिए था तो किसी को बुद्धिवान। किसी को महादेव समान तो किसी को श्री हरी विष्णु समान। माना कि ईश्वर के ये रूप भी पूरी तरह से उत्तम नहीं है। सबके अंदर उनके भिन्न-भिन्न प्रकार के दोष हैं। पर उनकी चारित्रिक विशेषताएँ, उनका देवत्व और उनके दिव्य गुण उन दोषों को ना केवल ढक देते हैं बल्कि उनके अवगुणों से उबरने की कथा भी सुनाते हैं।

अब क्या इतना धार्मिक और सामाजिक पतन हो चला है कि पुत्र या संतान की कामना करने से पूर्व हम भूल गए है कि भविष्य में वो ही संतान हमारा भविष्य निर्धारित करेगी। क्या आप एक ऐसी संतान चाहेंगे जो आपका धन चुरा कर घर से भाग जाए? अपनी माँ, अपनी पत्नी, अपने परिवार को अलग-थलग छोड़ भूल जाए। क्या किसी माँ को ऐसी संतान की कामना है जो उसकी वृद्धावस्था में उसे उसके हाल पर छोड़ दे और लंबी लाइनों में केवल इसलिए खड़ा करे क्यूंकी उनकी एक तस्वीर से उसे लाभ मिलेगा, उसकी स्वार्थपूर्ति होगी। क्या आपको ऐसी संतान चाहिए जिसके लिए उसका अहम इतना बड़ा हो कि उसके आगे वो अपनी स्त्री का भी परित्याग करे।

यदि हाँ, तो फिर अपने बच्चों को महंगे स्कूलों में पढ़ाना बंद कीजिये। क्यूंकी डिग्री कमा के तो वो केवल 9-5 की नौकरी ही कर पाएंगे। या डॉक्टर, इंजीनियर बन जाएँ शायद। नरेंद्र मोदी बनाना है तो पढ़ाई से कोई वास्ता नहीं होना चाहिए। सबसे पहले किसी चाय की दुकान पर उसकी नौकरी लगवाइए। बाकी वो अपना रास्ता स्वयं बना लेगा। वो सीखेगा कैसे वहाँ के नाले से स्टोव जलाने के लिए गैस बनाई जाती है। महनत करते हुए सीखेगा कि क्लाइमेट चेंज नहीं हो रहा हम बुड्ढे हो रहे हैं। वो सारा इतिहास भी सीखेगा जो कभी घटा नहीं और वो भी सीखेगा जो इतिहास में घटा उसे झूठा कैसे सिद्ध किया जाए। आपका पुत्र सीखेगा कैसे अपनी सत्ता बचाने के लिए दंगे कराये जाते हैं। ट्रेन में आग लगवाई जाती है। मासूमों की लाशों पर पैर रख खड़े हो कर सत्ता की बुनियाद रखी जाती है।

नरेंद्र मोदी बन कर ही पता चलता है कि असल में दिल्ली में लाल किला नहीं बल्कि लाल दरवाज़ा है। गांधी जी का पूरा नाम मोहनदास नहीं मोहनलाल करमचंद गांधी था। क्लाइमेट चेंज जैसी कोई चीज़ नहीं होती। नाले से गैस निकलती है जिसे खाना पकाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। स्ट्रेन्थ कि स्पेलिंग STRENH होती है। नेहरू जी कभी भगत सिंह से मिलने नहीं गए। साथ ही पिछले 70 सालों से हम पत्थर युग (stone age) में जी रहे थे। 2014 के बाद ही हमें भाषा का ज्ञान आया है उससे पहले तक हम civilization में भी नहीं थे। नथुराम गोडसे एक हत्यारा नहीं राष्ट्रभक्त था। डिस्लेक्सिया (Dyslexia) उपहास उड़ाने वाली मानसिक स्थिति है। भारत में 2014 के चुनाव में 600 करोड़ मतदाताओं ने मत दे कर उन्हें बहुमत दिया।

ख़ैर, मुझे क्या? ये आपकी समझ और आपका विवेक, आपकी सोच और आपकी परवरिश। जहां ले जाए वैसा बनाइये अपनी संतान को। भविष्य में वो राजनायक बनेगा या नहीं इसकी चिंता कतई मत कीजिये क्यूंकी भारत में अब शासन करने या सरकार बनाने के लिए शिक्षा का कोई महत्व रह नहीं गया है। झूठ, मक्कारी, लालच, और मस्तिष्क साफ कर देने की कला, पत्रकारिता को खरीद लेने की क्षमता, घृणा और भेदभाव फैलाने की महारत ही काफी है। पर ये सदा याद रखिएगा कि भविष्य में आप उसे दोष नहीं दे पाएंगे कि वो स्वार्थी है या आपको एकल छोड़ अपने स्वार्थी जीवन में मस्त है। या शायद आप दोष देना भी ना चाहें क्यूंकी वो तो नरेंद्र मोदी बन चुका होगा।

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

ऊपरवाला मेहरबान तो .......... पहलवान


जब किसी के सितारे बुलंद हों तो उसके लिए सारे रास्ते आसान होते चले जाते हैं। काबिलियत अपनी जगह और भाग्य अपनी जगह। नसीब का खेल, किस्मत का साथ, ये सब समझना हो तो मोदी जी का उदहारण सर्वश्रेष्ठ उदहारण है। पिछले पाँच सालों में देश के प्रति लगभग हर क्षेत्र या मुद्दे पर भाजपा सरकार/मोदी सरकार बुरी तरह से फ्लॉप हुई है। इस फ्लॉप शो को आप शायद देख-समझ ना पाएँ यदि आप भाजपा के अंध समर्थक हैं या फिर ज़ी न्यूज़ और रिपब्लिक से ऊपर कोई न्यूज़ चैनल नहीं देखते, या फिर सोशल मीडिया और अखबारों के हर झूठे आंकड़ों को बिना जांच किए सच मानते आए हैं। झूठ चिल्ला-चिल्ला कर हर रोज़ आपके दिमाग में ठूँसा जाए तो उसे आप सच ही मानने लगेंगे। ख़ैर, बात हो रही थी भाग्य की। तो देखिये चुनाव के ठीक पहले पुलवामा में आतंकी हमला होता है। जो देश के लिए दुर्भाग्य की बात है परंतु मोदी जी और भाजपा सरकार के लिए ऐसा नहीं है। 

इस आतंकवादी हमले के समय मोदी जी झाँसी में चुनावी रैली कर रहे थे। फिर वो जिम कॉर्बेट में डिस्कवरी के लिए शूटिंग कर रहे थे और उसके बाद आराम से मगरमच्छों को देखने के लिए उन्होने झील विहार किया। पुलवामा हमले के लगभग तीन घंटे बाद मोदी जी की एक प्रतिक्रिया आयी। प्राथमिकताओं की बात कीजिये तो देश के प्रधानमंत्री अपनी प्राथमिकताएं बड़ा संभाल कर चुनते हैं। आखिर ऐसे ही तो नहीं वो 18-18 घंटे काम करते हैं। उसके बाद मोदी जी ने भारतीय सेनाओं को फ्री हैंड देने की घोषणा की। जिसके लिए उनकी ढेर प्रशंसा बनती है। मोदी जी की रैलियाँ अब भी लगातार चल ही रही थीं। अमित शाह भी अपने चुनाव प्रचार में पुलवामा हमले को पूरी तरह से भुना रहे थे। इसके साथ ही मोदी जी नमो एप प्रोमोट कर रहे थे। गेम लॉंच कर रहे थे और तो और शांति पुरस्कार भी बटोर रहे थे। नए व्यापारिक संबंध जोड़ रहे थे वो भी उससे जो पाकिस्तान को असलहा मुहैया कराता है।

12 दिन बाद वायु सेना के द्वारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में घुस कर वहाँ चल रहे आतंकवादी संगठनों के ठिकानों पर एयर स्ट्राइक की गयी। मीडिया ने 200-600 तक आतंकियों के मारे जाने के आंकड़े दिये पर सरकार या रक्षा मंत्रालय से अब तक कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं दिया गया। मोदी जी अब भी रैली में व्यस्त थे। पर वायु सेना के शौर्य का क्रेडिट लेना वो और अन्य भाजपाई कहीं नहीं भूले। उसके ठीक अगले दिन पाकिस्तान की वायु सेना एल.ओ.सी. पार कर बम गिराती है और भारतीय वायु सेना उनके लड़ाकू जहाजों को खदेड़ भगाती है। मोदी जी अब बीजेपी की सबसे विशाल वीडियो कोन्फ्रेंस में व्यस्त थे और “मेरा बूथ सबसे मज़बूत” का मंत्र दे रहे थे। इस सब में पाकिस्तानी वायु सेना का एफ-16 विमान मार गिराते हुए भारतीय वायु सेना का एमआईजी-2 विमान भी क्रेश हो जाता है। ईश्वर की कृपा से उस विमान का पायलट विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान सकुशल लैंड तो कर जाता है पर पाकिस्तान की ज़मीन पर। मोदी जी अब भी चुनावी रैली कर रहे थे। इतना कुछ होता रहा और एक बार भी हमारे प्रधानमंत्री माननीय श्री नरेंद्र दामोदर मोदी को देश को संबोधित करने का अवसर नहीं मिला या संभवतः उन्हें अवश्यकता ही महसूस नहीं हुई। पी.एम.ओ, रक्षा मंत्रालय आदि की जिन बैठकों का ब्योरा मीडिया देती रही, उनसे संबन्धित कोई डेटा आज तक सरकार की ओर से नहीं आया।

भारतीय वायु सेना के वीर विंग कमांडर अभिनंदन वर्थमान आज सकुशल भारत लौट रहे हैं। ये हमारे लिए संतोष और प्रसन्नता की बात है। मीडिया हमें बताती रही कि पाकिस्तान से किसी भी तरह की बातचीत नहीं की जाएगी। हमारा पायलट सकुशल नहीं लौटाया तो अंजाम बुरा होगा। आदि-इत्यादि। क्या लगता है? पाकिस्तान इन धमकियों से डर गया और 36 घंटे के भीतर ही उसने हमें हमारा पायलट लौटाने की आधिकारिक घोषणा कर दी। जिस प्रधानमंत्री को चुनावी रैली और प्रचार और सेना के शौर्य का क्रेडिट भुनाने से फुर्सत ही नहीं मिली, उससे पाकिस्तानी सेना और प्रधानमंत्री डर कर हमारा पायलट लौटाने को तैयार हो गए। जो देश पहले से ही आर्थिक रूप से ध्वस्त है, जिसके पास उसके फाइटर प्लेन्स में ईंधन भरवाने के लिए भी पैसा नहीं है, जिसकी छवि पूरे विश्व में बिगड़ी हुई है और वो खुद भी आतंकवाद की मार झेल-झेल कर दयनीय स्थिति में है, वो आखिर करेगा क्या? झुकना उसके लिए इस समय की मजबूरी है। इस सब में मोदी जी का क्या किसी भी तरह का रोल है?

क्या लगता है इस सब में मोदी जी को छवि संवारा है? जी नहीं, इस सब में असल में इमरान खान ने अपनी और पाकिस्तान की बिगड़ती हुई छवि को सुधारा है। भले ही वो आतंकवाद को पालता आया है पर इस समय सारे विश्व में उसने ये मिसाल रख दी कि भारतीय प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार में व्यस्त रहे और उन्होने शांति स्थापना के लिए हमारे पायलट को अतिशीघ्र सकुशल लौटा दिया। हर कोई बस अपनी सियासत मज़बूत करने में लगा है। सत्ता-सत्ता और सत्ता। बस यही एक मात्र लक्ष्य है।

अब मेरा सवाल ये है कि यदि मोदी जी का गुणगान होना चाहिए तो क्यूँ? पठानकोट हमले के बाद वो साड़ी और शौल का आदान प्रदान कर रहे थे। गुरदासपुर हमले के बाद वो शरीफ के जन्मदिन के जश्न में शरीक हो रहे थे। मुझे ये भी पूछना है कि जब इंटेलिजेंस को पुलवामा हमले की पहले से भनक थी तो क्यूँ सी.आर.पी.एफ. के काफिले को सड़क मार्ग से भेजा गया? उन्हें एयर लिफ्ट क्यूँ नहीं कराया गया। यहाँ तक कि उनके  इस प्रार्थना पत्र का कोई जवाब ही नहीं दिया गया जिसमें सी.आर.पी.एफ. ने एयर लिफ्टिंग की मांग की थी।

जब भी देश की सुरक्षा का मुद्दा आता है तो हम भारतीय या किसी भी देश की जनता बाकी सब भूल जाती है। क्यूंकी विकास, शिक्षा और रोज़गार, देश सुरक्षा के आगे उतना महत्त्व नहीं रखते। जब भी मोदी जी ये कहते हैं कि देश सुरक्षित हांथों में है, मुझे याद आ जाता है “गोधरा कांड।“ मुझे याद आ जाता है “पठानकोट, गुरदासपुर और पुलवामा।“ मुझे याद आ जाता है देश के भीतर हुआ हर वो हिन्दू-मुस्लिम विवाद जिसके कारण देश में पिछले पाँच सालों से लगातार अस्थिरता है। सच्चे आंकड़े उठा कर देखिये पिछले पाँच सालों में कश्मीर के अंदर से ही आतंकवादियों के पनपने में 93% की बढ़त हुई है। भारत के अब तक के इतिहास में सबसे अधिक जवान शहीद हुए हैं, साधारण जनता मारी गयी है। पाकिस्तान ने अनगिनत बार शांति का उल्लंघन किया है। चीन ने कई बार घुसपैठ और भारतीय धरती पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया है।

मैं कैसे मान लूँ कि देश सुरक्षित हांथों में है?

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

भारतीय वायु सेना को सलाम


भारतीय वायु सेना को मेरा सलाम।

इस लेख की शुरुआत इससे बहतर और क्या हो सकती है। आतंकवाद के खात्मे की ओर आज शायद सेना का पहला सफल कदम रहा है ये। जैश आतंकी केम्प और अन्य आतंकी केंपों को निस्तेनाबूत कर के 200 से अधिक आतंकियों को उनके खुदा के पास पहुंचा दिया गया। जहां तय होगा कि उन्हें जन्नत की हूरें मिलेंगी या जहन्नुम में खौलते तेल की कढ़ाई। इस हमले का पूरा-पूरा श्रेय भारतीय वायु सेना के जवानों को ही जाता है। किसी और को बिलकुल नहीं। 1971 में किया गया एयर स्ट्राइक एक बार फिर याद दिला दिया भारतीय वायु सेना ने। फिर से इतिहास दोहराए जाने का समय आ गया है। पाकिस्तान को आतंकवाद पालना छोड़ना होगा, समर्पण करना होगा और आतंकवाद अब भारत के समक्ष घुटने टेकेगा।

POK (Pakistan Occupied Kashmir) यानि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर असल में पाकिस्तान नहीं है। वो हिंदुस्तान का ही अपना हिस्सा है और उसे पाकिस्तान ने हथिया रखा है जहां वो आतंकियों को पालता है। वहाँ किसी भी तरह के सिविलियन्स या साधारण जनता की रिहाइश नहीं है। समय आ गया है कि कश्मीर का वो हिस्सा पाकिस्तान से अब वापस ले लिया जाए और हमेशा-हमेशा के लिए कश्मीर की समस्या का अंत हो।  

वर्तमान प्रधानमंत्री ने भारतीय सेनाओं को फ्री हेंड दे कर वाकई प्रशंसनीय कार्य किया है। पर जैसा कि उन्होने सत्ता में आने से पहले वादे किए थे कि आतंकवाद हार जाएगा 56 इंच की छाती के सामने, पाकिस्तान घुटने टेकेगा इत्यादि। उसके लिए उन्होने पहले ही हमले के बाद यदि ये निर्णय ले लिया होता तो पठानकोट, गुरदासपुर और फिर पुलवामा में न जाने इतने वीर जवान शहीद होने से बच जाते। अब चुनाव सिर पर खड़ा है तो उनका ये कदम सराहनीय हो कर भी थोड़ा सशंकित करता है।

इस सब में विपक्ष की सराहना भी आवश्यक है जिसने इन मुश्किल हालातों में प्रधानमंत्री या सरकार से इस्तीफे मांगने और जवानों की शहादत पर राजनीति करने के बजाए सरकार का साथ देने और भारत को एक जुट लाने का निर्णय लिया। विपक्ष ने अपने इस रवैये से एक मिसाल कायम की है। वाकई ये समय नहीं जहां पक्ष और विपक्ष की सरकारों की तुलना या अच्छाई-बुराई की जाए। इस समय की मांग है सख़्त होने की। आतंकवाद पर पूरी तरह से पिल जाने की।

पिछले 5 सालों में पाकिस्तान की तरफ से कई बार शांति का उल्लंघन हुआ, कई आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया गया। ये आंकड़ा अब तक का सबसे अधिक घटनाओं का आंकड़ा है। प्रधानमंत्री जी ने एक्शन लेने में काफी समय लगा दिया। हालांकि युद्ध इस समस्या का समाधान नहीं है और सिंधु नदी का पानी रोकना भी उचित नहीं। इसके पीछे मानवता से अधिक भौगोलिक कारण हैं। जो चोट पाकिस्तान को व्यापारिक समझौतों पर 200 प्रतिशत तक बढ़ाई गयी कस्टम ड्यूटि से पड़ी है उससे उसकी कमर ज़रूर टूटी है। साथ ही सारे विश्व में पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित किया जाना अति आवश्यक है। पाकिस्तान से उसकी परमाणु शक्ति को छीन लिया जाना चाहिए।

समय आ गया है माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी अपनी प्राथमिकताओं को समझें। सेलफ़ी लेना, किसी फिल्म की शूटिंग में शामिल होना, पुरस्कार इकट्ठे करना और चुनावी रैलियाँ करने से अधिक आवश्यक कार्य भी हैं उनके लिए। हालांकि, अब तक के कार्यकाल में रोजगार, शांति-एकता, जीडीपी, किसान और कृषि, कहने का अर्थ है देश के लगभग हर आवश्यक पक्ष पर प्रधानमंत्री जी फेल हुए हैं। फिर भी चुनाव से पहले पुलवामा हमले ने उन्हें एक मौका दे दिया है, आतंकवाद के खिलाफ अपने कहे हुए कदम उठाने और देश के प्रति अपनी निष्ठा और सत्यता का प्रमाण देने का। झूठे वादों और झूठी प्रशंसा बटोरने से ऊपर उठ कर वाकई स्वयं को प्रमाणित करने का मोदी जी के लिए यही सही समय है।   

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2019

डियर मि. प्राइम मिनिस्टर-हाऊज़ द जोश


इस लेख को आरंभ करने से पहले ही स्पष्ट कर दूँ ना तो मैं किसी रजिनितिक पार्टी विशेष के पक्ष में लिखने जा रही हूँ ना ही विपक्ष में। मुझे भक्त या गुलाम जैसे शब्दों से अत्यंत घृणा है। मुझे ऐसी किसी भी श्रेणी में रखने से पहले ये समझ लीजिएगा कि मैं इन घृणात्मक तुलनाओं से कहीं ऊपर एक अति साधारण परंतु जागरूक मतदाता हूँ। जो अपना मत देते समय जाति-धर्म-समुदाय या पार्टी विशेष से प्रभावित हो कर मतदान नहीं करती। अपितु तर्क संगत प्रक्रिया से अपना मत उसे देती है जो उसके लायक है।

इस लेख के माध्यम से मैं सीधे प्रधानमंत्री जी से सवाल करना चाहती हूँ। ध्यान रखें ये सवाल वर्तमान प्रधानमंत्री से है ना कि किसी व्यक्ति विशेष से। इस समय किसी भी पार्टी का कोई भी प्रधानमंत्री होता, मेरा सवाल उससे ऐसा ही होता।

डीयर मि. प्राइम मिनिस्टर-हाउज़ द जोश नाव
माननीय प्रधानमंत्री जी, अब आपके अंदर का जोश कैसा है? सत्ता में आने से पूर्व आपने भारत की जनता को बहुत सारे झूठे वादों और जुमलों से लालायित कर उनका मत जीता था। जिनमें से आतंकवाद को पूरी तरह से मिटा देने वाला आपका जुमला सबसे अधिक सराहा गया था। पाकिस्तान आपसे डरता है। आप सर काट लाएँगे। डिमोनेटाइज़ेशन तो किया ही आतंकवाद पर चोट करने के लिए था। अभी कुछ ही दिनों पूर्व आपने कश्मीर की सुंदर वादियों में फोटो सेशन भी कराया। पता नहीं आप किसे देख कर हांथ हिला कर अभिवादन कर रहे थे। शायद वादियों को। पर अब बताइये पुलवामा हमले के बाद अब आपके अंदर का जोश कैसा है? आपके 56 इंच के वक्षस्थल पर आतंकवाद खड़े हो कर मूत्रविसर्जन कर के गया है। कैसा महसूस कर रहे हैं?

कश्मीर जैसी जगह में इतनी बड़ी मात्रा में बारूद का इकट्ठा होना, आखिर किस की मदद से हुआ ये? पिछली सरकार के समय भी मिलिट्री अपना काम बराबर कर रही थी। कई सर्जिकल स्ट्राइक्स हुईं। पर उन्हें कभी समझ ही नहीं आया कि इस का भी प्रचार करना चाहिए या फिल्म बन कर आनी चाहिए। आपके कार्यकाल में भी आर्मी अपना काम कर रही है भले ही पहले से कम सुविधाओं और बढ़े हुए मुश्किल हालातों में। पर आपको तो उनके द्वारा सरहद पर दी गयी जान का भी क्रेडिट लेना है। आपके और आपके समर्थकों के पास कहने के लिए एक ही बात है “क्या पिछली सरकार में जवान मरते नहीं थे?”

अत्यंत सुंदर सोच और अत्यंत सुंदर तुलना। ऐसी मनसिकताओं को मेरा दूर से प्रणाम। भारत का इंटेलिजेंस ब्यूरो कारगिल, कंधार, गुरदासपुर, पठानकोट लगभग सभी जगह फेल हुआ है। पर फिर भी वो हीरो है और हम उसकी फिल्म बहुत चाव से देख कर आते हैं। हमारे लिए तो ये ही देशप्रेम है। पुलवामा में भी यही हुआ। एक और फिल्म बननी चाहिए। पुलिस, आर्मी, मिलिटरी, सभी जगह वर्दी, खाना, सुविधाओं और तो और हथियारों तक में कटौती आपकी ही देन है चूंकि वहाँ से निकाला गया पैसा आपको व्यापारी विशेषों के उत्थान में लगाना है।

मैं तो कहती हूँ एक बार फिर जाइए और वहाँ जहां हमला हुआ, उसी जगह पर उन जली हुई गाड़ियों के सामने खड़े हो कर सेल्फ़ी लीजिये, उन जवानों के शरीर के चिथड़ों के साथ फोटो सेशन कराइए और उसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफ़ोर्म्स पर शेयर करना मत भूलिएगा। आप बहुत से लोगों की शान है, उनके लिए आप आखिरी उम्मीद हैं। आपके प्रशंसक और समर्थकों ने आपको इस मसले से बचा ले जाने के लिए अन्य गणमान्य व्यक्तियों के डॉक्टर्ड वीडियोज़ भी लाने आरंभ कर दिये हैं। अब आप बताएं आप कड़ी निंदा करेंगे, दुख व्यक्त करेंगे या इस बार अपनी 56 इंच की छाती आतंकवादियों के सामने कर देंगे।

खून के बदले खून, लाशों के बदले लाशें अगर इस समस्या का समाधान होता तो अमरीका कब का अफगानिस्तान और इराक पर अपना वर्चस्व स्थापित कर चुका होता। फिर इस समस्या का समाधान क्या है? हमें तो बस अब तक ये ही पता था कि आप का 56 इंच का वक्ष ही सारा समाधान है। जगह-जगह आपने रैलियों में चिल्ला-चिल्ला कर झूठ बोला है कि आपके कार्य काल में आतंकवादी हमले ना के बराबर हुए हैं। पर क्या करें जनता अधिक नहीं पर थोड़ी जागरूक है। आज जनता के पास आपसे अधिक जानकारी और आंकड़े होते हैं। अक्सर आपके पास त्रुटिपूर्ण आंकड़े ही होते हैं जिनका आप पूरे दम से खुले आम प्रचार करते हैं और आपको ज़रा भी शर्म नहीं आती। ख़ैर आपको कैसी शर्म?

पाकिस्तान को निसते नाबूत करने चले थे आप पर देखिये ना नवाज़ शरीफ को शौल उढ़ा कर, और उनके जन्मदिन में बिना बुलाये पहुँच कर भोज में शामिल हो कर आप फुर्सत हो लिए। यहाँ तक कि आज तक पाकिस्तान से व्यापारिक समझौते भी तोड़ नहीं पाये। नवाज़ शरीफ तो भ्रष्टाचार के आरोप में जेल चले गए। हम अभी तक अपने देश में इतनी उन्नति ला ही नहीं पाये जो किसी का भी भ्रष्टाचार सिद्ध कर पाएँ और उसे जेल भेज पाएँ। प्रधानमंत्री का भ्रष्टाचार सिद्ध करना तो अविश्वासनीय सी बात है। आपके परम मित्र जेल चले गए तो अब पाकिस्तान से कैसी कोई वार्ता?

चलिये ख़ैर जो भी हो। एक और फिल्म बने। कुछ दिन शोक चले या 15 अगस्त पर शहीदों के परिवार को मेडल दिये जाएँ। माताएँ इसी प्रकार बलिदान देने के लिए अपनी संतानों को तैयार करती रहेंगी। हाँ! पर मुझे इस बात का डर अवश्य है कि कोई दिन ऐसा ना जाए कि सरकार के भ्रष्टाचार, राजनीतिक नपुंसकता और देश के अंदरूनी द्रोहियों से त्रस्त हो कर भारत के परिवार अपनी संतान को देश सुरक्षा के लिए भेजना बंद ही कर दे।  

So once again I ask you. Dear Mr. Prime Minister Howz the josh?
#PulwamaAttack


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शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

क्या परवरिश में ही कमी है?


इस विषय पर लगभग 6 महीने पहले मैंने एक लिख लिखने का प्रयास किया था पर फिर उसे प्रकाशित नहीं किया। क्यूंकी मैं अपनी बात को ठीक से सही और सटीक शब्दों में लिख नहीं पायी थी। पर हाल ही में हुए हार्दिक पाण्ड्या विवाद ने मुझे इसे दोबारा लिखने के लिए प्रेरित किया।

क्रिकेट हमारे लिए भगवान है और क्रिकेटर हमारे लिए देवता। हम क्रिकेट और क्रिकेटरों की पूजा करते हैं। बात सिर्फ क्रिकेट की नहीं, कोई भी बड़ी हस्ती हो चाहे खेल दुनिया की हो, चाहे कोई फिल्मी सितारा, चाहे कोई राजनीतिज्ञ हो या फिर कोई महान लेखक। हम समाज में उनके द्वारा निभाए गए किरदारों से इतने प्रभावित रहते हैं कि उन्हें समाज में बहुत ऊंचा स्थान प्राप्त हो जाता है और फिर हमें उनके चारित्रिक दोषों से कोई मतलब नहीं रहता। जिसके परिणाम स्वरूप वो इतने उच्च्श्रंखल हो जाते हैं कि उन्हें दुनिया और उसमें रहने वाले हम लोग कीड़े-मकौड़ों की तरह दिखने लगते हैं।

हाल ही में कॉफी विद कारण के एक एपिसोड में हार्दिक पाण्ड्या और के.एल.राहुल ने अपने चरित्र की इस उच्चश्रंखलता या कहना चाहिए अभिमान और असभ्यता का परिचय दिया। महिलाओं के प्रति हार्दिक पाण्ड्या के विचार और सोच ये प्रदर्शित करती है कि स्त्री उनके लिए मात्र एक उपभोग की वस्तु है, जिसका अपना तो कोई अस्तित्व है ही नहीं। उनका क्रिकेटर होना और उनका पुरुष होना ही उनके लिए टेलेंट की बात है जिसे वो स्त्रियों का भोग करने में उपयोग करते हैं और उनके इस टेलेंट से उनके माता-पिता भी प्रभावित रहते हैं और उनका उत्साहवर्धन करते हैं।

हार्दिक ने जिस प्रकार उंगली उठा-उठा कर उदहारण दिये कि वे लड़कियों को किसी क्लब या पार्टी में अंकित करते हुए अपने पिता के समक्ष अपने टेलेंट का प्रदर्शन करते हैं, उससे ये स्पष्ट होता है कि उनकी मानसिकता को यहाँ तक पहुंचाने में उनके माता-पिता और उनकी परवरिश का बड़ा हांथ है। सिर्फ इतना ही नहीं हार्दिक के पिता जब उनके बचाव में सामने आए तो उन्होने हार्दिक के इस व्यवहार और घृणित सोच को मनोरंजन का नाम दिया।

ज़ाहिर सी बात है कि भारत में बेटों की परवरिश वैसे नहीं होती जैसे बेटियों की होती है। माना कि बदलते परिवेश के साथ-साथ बेटियों की परवरिश में भी परिवर्तन आया है। उन्हें भी वो स्वतन्त्रता, सुविधाएं और शिक्षा प्राप्त कराई जाती है जो बेटों को मिलती है। पर बेटों को बड़ा करने के तरीके में कोई परिवर्तन नहीं किया गया। बचपन से ही बेटों को क्यू बेटियों की तरह सबका सम्मान करना सिखाया नहीं जाता। केवल बड़ों के पैर छूना ही तो सब कुछ नहीं होता। हमेशा माँ-बहन का उदहारण देना क्यूँ ज़रूरी है? क्या केवल स्त्री शब्द का प्रयोग नहीं किया जा सकता। प्रत्येक स्त्री को सम्मान देना और उसे अधिक नहीं बस इंसान समझना ही क्यूँ नहीं सिखाया जाता? स्त्री अब भी लोगों के मस्तिष्क में मांस का लोथड़ा ही क्यूँ है? जिस प्रकार बेटी के बड़े होते ही उसे संसार में अच्छे-बुरे का पाठ पढ़ाया जाता है, मर्यादा का उत्तरदायित्व सौंपा जाता है उसी प्रकार बेटों को क्यूँ नहीं सिखाया जाता? हम बेटों की परवरिश के प्रति इतने ढीले और आलसी क्यूँ हैं? हार्दिक के पिता ने जिस प्रकार अपने बेटे का बचाव किया उससे ये स्पष्ट है कि वो स्वयं भी इसी मानसिकता के शिकार हैं और अपनी पत्नी को भी संभवतः उचित सम्मान उन्होने कभी ना दिया हो।

हार्दिक ने अपने वक्तव्य से ना केवल अपने चरित्र का दोष दर्शाया, अपनी घ्रणित मानसिकता का प्रदर्शन किया बल्कि अपने परिवार, अपने सह खिलाड़ियों और चीयर लीडर्स तक को अपमानित किया। किसी युवती या महिला से उनके कैसे और क्या संबंध रहें ये उनका और उस महिला का निजी निर्णय रहा होगा। उसका इस तरह भद्दा प्रदर्शन और पूरे क्रिकेट संसार का अपमान कहाँ तक उचित है? के.एल.राहुल और करण जौहर इस सब में बराबर के दोषी हैं जो हार्दिक की इन सारी बातों पर खिलखिला कर हँसते रहें। इस प्रकार वो कुछ ना कह कर भी अपना पूर्ण समर्थन हार्दिक को दे रहे थे।

इन्टरनेट पर किसी पत्रिका का लेख था कि जो हार्दिक ने कहा वो यदि किसी महिला ने नेशनल टीवी पर कहा होता तो हम उसे आंदोलनकारी मानते। उसकी प्रशंसा करते। हार्दिक की आलोचना मात्र इसलिए हो रही है क्यूंकी वो एक पुरुष हैं। लिखने वाले ने लिख दिया। पर क्या ये सही है? इस प्रकार की तुलनात्मक प्रतिक्रिया कहाँ तक उचित है। सत्य तो ये है कि यदि किसी महिला ने इस प्रकार नेशनल टीवी पर या खुले आम अपना सो कॉल्ड टेलेंट प्रदर्शित किया होता तो उसे आंदोलनकारी नहीं अपितु चरित्रहीन कहा जाता। डिबेट्स पर डिबेट्स चल रहे होते। ना जाने कौन-कौन सी सेनाएँ उसके घर के बाहर पत्थर फेंक रही होती और उसके नाम के फतवे निकल गए होते। कोई सिर काट लाने के लिए इनाम घोषित कर देता तो कोई भारत से ही बहिष्कृत किए जाने की मांग उठा रहा होता। इससे भी भयंकर है कि उसे हर जगह से बलात्कार की धमकियाँ मिलती और उसे हर सोशल प्लैटफ़ार्म पर असभ्य गंदी बातों से अपमानित किया जा रहा होता। पर पाण्ड्या और राहुल तो पुरुष हैं। तो उनके साथ ऐसा कौन और क्यूँ करेगा। इस तरह की वीभत्स सोच रखना तो पुरुषों का जन्मसिद्ध अधिकार होता है। ऐसे में उन्होने अपने जीवन की कुछ झलकियाँ दे दीं और महिलाओं के प्रति अपनी सुंदर सोच का प्रदर्शन कर दिया तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गयी?

हार्दिक और के.एल.राहुल को अगली सुनवाई तक सस्पेंड किया गया है। उन्हें यकीनन दंड मिलना चाहिए। अब क्रिकेट एसोसियशन उन्हें क्या और कितना दंड सुनाती है ये भविष्य बताएगा। पर दंड का अर्थ ही क्या है यदि उन्हें अपनी भूल का एहसास ही ना हो। आवश्यक है कि उन्हें उचित पाठ पढ़ाया जाए जिससे वो अपनी घटिया मानसिकता से उबर सकें और स्त्रियों के प्रति अपने विचार बदल सकें।

कल ही मैंने पढ़ा कि दादा (सौरभ गांगुली) का वक्तव्य आया है। उन्होने कहा कि जो हुआ वो हुआ पर अब हमें आगे बढ़ना चाहिए। मुझे ठीक से बात समझ नहीं आयी। क्या वो पाण्ड्या और राहुल के लिए क्षमा की अपेक्षा कर रहे हैं। सौरभ गांगुली मेरे प्रिय क्रिकेटरों में से एक हैं। जिस समय लोग सचिन के दीवाने हुआ करते थे मुझे सौरभ गांगुली और राहुल द्रविड़ के खेल के प्रति आकर्षण था। पर आज दादा की ये बात मुझे चोट पहुंचा गयी। हम यूं ही आगे बढ़ते रहते हैं। स्त्रियों पर अत्याचार, शोषण आदि होता ही रहता है और हम आगे ही तो बढ़ते रहते हैं। 


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शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

10 परसेंट का लौलीपौप


आरक्षण ले लो! आरक्षण ले लो! टके के भाव आरक्षण ले लो!
चुनाव आ गया है और मोदी जी ने अपनी दुकान खोल ली है। मत दाताओं को लुभाने के लिए ऑफर के एनाउंसमेंट भी शुरू कर दिये है। सत्ता में आने से पहले किए गए हर वादे को धूल चटाते हुए पहले से ही विभाजित देश को और विभाजित कर दिया है। वो अंग्रेजों की पॉलिसी थी ना “Divide and Rule”, बस वैसा ही कुछ। पहले हिन्दू-मुसलमान बांटा पर पेंतरा वैसा नहीं चला जैसा उम्मीद होगी। दलित कार्ड की आढ़ में जातिगत विभाजन को और हवा दी। अब संवर्णों को 10% आरक्षण की लौलीपौप थमा कर उन्हें भी आपस में विभाजित कर दिया।

भाजपा जिन-जिन वादों के दम पर सत्ता में आई थी सारे मुंह उल्टा किए पड़े हैं और सत्ता सरकार के पैरों तले कुचले जा चुके हैं। जातिगत आरक्षण ख़त्म कर के आर्थिक आधार पर आरक्षण देंगे। सब फुस्स हो गया। जातिगत आरक्षण ज्यों का त्यों और संवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की चम्मच चटा दी। वाह मोदी जी वाह। भाई दे दो। सबको आरक्षण ही दे दो। पर पहले नौकरियाँ तो बढ़ा दो। रोज़गार का टोटा पड़ा है और हमको 10 प्रतिशत की लौ लगाई जा रही है। उस पर भी कमाल की गणित देखिये। अगर आपकी सालाना कमाई 2.5 लाख या उससे अधिक है तो आप टैक्स के घेरे में आते हैं पर यदि आपकी सालाना कमाई 8 लाख तक भी है तो भी आप उस दस प्रतिशत आरक्षण के हकदार हैं। ये कैसी इकनॉमिक व्यवस्था है। कोई जानकार व्यक्ति हो तो मुझे समझाये। मेरी समझ इस मामले में न्यून है।

बाबा साहिब ने जब अनुसूचित और पिछड़ी जातियों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की थी तो वो मात्र 10 वर्ष के लिए था। पर एक बार चुनावी मुद्दा बनने के बाद इस सिस्टम को बदला नहीं गया। माना कि पिछली सरकारों का भी दोष है पर आप क्या कर रहे हैं? आपने कौन सा कारनामा कर दिखाया जो आप पिछली सरकार से बेहतर साबित हो सके। एक समय था जब कुछ जाती और संप्रदाय के लोग पिछड़े थे, उनके पास सुविधाओं और साधनों की कमी थी। आज भी ऐसे कुछ प्रांत या क्षेत्र हैं जहां के निवासी जीवन की साधारण सुविधाओं जैसे शिक्षा, बिजली इत्यादि से दूर हैं और उन्हें वो कठिन परिश्रम से या तो प्राप्त हो पाती हैं या बिलकुल भी नहीं मिल पाती। इसीलिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था जिससे कि वो लोग जो अथक परिश्रम और कठिनाइयाँ उठा कर शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं उन्हें आगे बढ़ने, प्रगति करने और अपना भविष्य बनाने में उनकी सहायता की जा सके। पर एक लंबे अरसे से इस प्रावधान का दुरुपयोग होता आ रहा है।

आई.ए.एस. और पी.सी.एस. अधिकारियों के बच्चे, एम.पी. एम.एल.ए., मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले, बड़े और ऊंचे पदों पर आसीन लोगों के बच्चे, जो भी अनुसूचित जाती-जनजाति या पिछड़े वर्ग से संबंध रखते हैं, सभी आरक्षण का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। ऐसा तो नहीं कि आरक्षित वर्ग में सभी पढ़ाई में कमजोर हैं या उनमें टेलेंट की कमी है या उनके पास साधनों का अभाव है और पर फिर भी उन्हें आरक्षण का लाभ मिलता है जिसके कारण असंख्य संवर्ण एवरेज छात्र अच्छी शिक्षा और अच्छी नौकरी की रेस हार जाते हैं। यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि एवरेज छात्र से मेरा तात्पर्य 60-80 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले वो छात्र हैं जिनमें ना तो टेलेंट की कमी है ना ही ज्ञान की, बस वो 90 प्रतिशत के रेस के प्रतिभागी नहीं हैं। पर इस आरक्षण व्यवस्था के चलते संवर्णों के लिए 90 प्रतिशत और उससे अधिक अंक ला कर शिक्षा में टॉप करने की बाध्यता बना दी गयी। अन्यथा उन्हें ना तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा और ना ही अच्छी नौकरी का। न जाने कितने संवर्ण एवरेज छात्र या तो बेरोजगार घूमते मिल जाएंगे या उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी की नौकरी करते हुए। क्या सभी संवर्ण आर्थिक रूप से समर्थ होते हैं और किसी भी संवर्ण के पास साधनों का अभाव नहीं है?

संवर्णों ने कभी आरक्षण नहीं मांगा। ये आरक्षण उन संवर्णों का अपमान है जो वर्षों से इस व्यवस्था के चलते नुकसान उठाते हुए भी अपनी प्रतिभा और दृढ़ निश्चय के बल पर अपना जीवन किसी ना किसी प्रकार संवार ही लेते हैं। देख रही हूँ इस घोषणा के बाद से वो लोग भी आरक्षण के पक्ष में हो गए हैं और इसे संवैधानिक बता रहे हैं जो अब तक ज़ोर-ज़ोर से जातिगत आरक्षण के विरुद्ध चिल्लाते थे। मुझे तो डर लगता है कि किसी दिन खेल-कूद या कला क्षेत्र या हर वो क्षेत्र जहां मात्र प्रतिभा और प्रतिभा ही सब कुछ है, वहाँ भी यदि आरक्षण ठूंस दिया गया तो हमें खिलाड़ी, लेखक, फिल्म स्टार्स, नर्तक, गायक और पता नहीं क्या-क्या सच्ची प्रतिभा से नहीं बल्कि आरक्षण के परिणाम स्वरूप प्राप्त होंगे और हमें उन्हें स्वीकारना होगा।  

पता नहीं क्यूँ भाजपा सरकार को लगता है कि हमारे माथों पर बड़े अक्षरों में लिखा है “सल्फेट”। पूरा शब्द नहीं लिखूँगी, मेरी भाषा की मर्यादा मैं भंग नहीं कर सकती। पर हाँ! मैं वाकई क्रोधित हूँ और क्रोध में अपशब्द ना सिर्फ मन में आते हैं बल्कि ज़बान पर भी। अब सोचना हमको ही है। क्या हम सचमुच सल्फेट हैं?     

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अनुच्छेद 370 पर सरकार का ऐतिहासिक निर्णय- मेरे विचार

आवश्यक नहीं कि हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी ही जाए और कुछ लिखा-बोला ही जाए। पर बात जब कश्मीर कि आती है तो भारत का बच्चा-बच्चा बोलता है और ...