भाग
2
डॉ.
मर्फ़ी के अनुसार स्वस्थ रहना सामान्य बात है और अस्वस्थता असामान्य। इसी तरह धन की उपलब्धता सामान्य और अभाव असामान्य है। इस प्रकार की सभी बातें हमारे मस्तिष्क से जुड़ी हैं। हमारे मनोभावों से। हम अपनी परिस्थितियों में खुद को इतना समा लेते हैं कि अपने विचार और मनोभाव भी उसी रंग में रंग लेते हैं। जिस कारण हम अपने
अवचेतन मन को लगातार अनुचित संदेश पहुँचाते रहते हैं। परिणामतः अस्वस्थता या धन
अभाव और गहराता जाता है।
यकीन मानिए हमारे अवचेतन मन में कुछ इस प्रकार
क्षमता है कि यदि आप चाहें तो अपनी प्रत्येक समस्या का समाधान स्वयं ही कर सकते
हैं। करना बस इतना है कि अपने आपको सकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत रखना है और अपने
जीवन में खुशियों की कल्पना सदैव करते रहना है। जब भी आप सोने चलें तो बस अपने मन
में उस बात की कल्पना कीजिये जो आप चाहते हैं,
जैसे धन, स्वास्थ्य,
मानसिक प्रसन्नता, शादी,
किसी समस्या का समाधान या फिर कोई कठिन निर्णय। कल्पना कीजिये कि आपको वो मिल गया
है जो आप चाहते हैं, और आप उसे पा कर अत्यंत प्रसन्न हैं। मान
लीजिये आपको ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रही और आप एक लंबे समय से कहीं बाहर घूमने
जाना चाहते हैं। तो बस प्रत्येक रात्री आपको सोने से ठीक पहले अपने मन को शांत
रखते हुए इस विचार को जीवंत करना है कि आप उस जगह घूम रहे हैं, अपने कपड़ों का रंग,
मौसम, परिवार या किसी और का साथ, कोई खास स्थान, कोई रैस्टौरेंट, कोई झील, आपकी गाड़ी,
ट्रेन या बस इत्यादि जो भी आपकी सुखद यात्रा से संबन्धित हो उसकी कल्पना प्रसन्नता
के साथ कीजिये और प्रत्येक रात्री करते रहिए। हाँ! ये सही है कि आपका अन्तर्मन इस
सब पर सरलता से आपको विश्वास नहीं करने देगा, पर आपको नकारात्मक विचारों से स्वयं को
दूर रखते हुए अपनी इस कल्पना से प्रसन्नता हासिल करते रहनी है। जैसे ही आपका
अवचेतन मन जो कभी सुप्तावस्था में नहीं जाता और सदैव कार्यरत रहता है, इस कल्पना को स्वीकार कर लेगा, आपकी इक्षा आपके समक्ष मूर्त रूप लेगी। (इन बातों को
बेहतर समझने के लिए डॉ. जोसफ मर्फ़ी की किताब The Power
of Subconscious Mind अवश्य पढ़ें।
अक्सर हमने देखा सुना है कि पवित्र
तीर्थों या धार्मिक स्थानों पर मूर्ति को हांथ लगाने, जल में स्नान करने या किसी के स्पर्श मात्र से लोगों
के रोग-दोष दूर हो जाते हैं। कई जगह मान्यताएं हैं कि वहाँ के पवित्र जल में स्नान
से त्वचा रोग नष्ट होते हैं। मेहंदीपुर बालाजी जा कर भूत बाधा उतरती है। ख्वाजा
सलीम चिश्ती की दरगाह पर हर मन्नत पूरी होती है। रमन रेती में कृष्ण भक्ति में गाए
हुए भजन से कृष्ण सेवा का लाभ मिलता है। ऐसा बहुत कुछ है मात्र भारत में नहीं
बल्कि पूरे संसार में। श्रद्धालुओं के अनेकानेक विश्वास मौजूद हैं और ये बहुत हद
तक सही भी हैं। हर किसी ने देखा होगा कहीं ना कहीं कोई चमत्कार होते हुए। ये सब
आपके अन्तर्मन या अवचेतन मन की शक्ति का नतीजा है। यदि आप किसी बेजान पत्थर को भी
पूरे विश्वास से छू कर ये मान लें कि आपकी बीमारी दूर हो जाएगी तो ऐसा वाकई हो जाएगा।
जब भी हम किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं तो हमारे मन में पहले से ही ये निश्चित
होता है कि यहाँ के दर्शन करने से या कुंड में स्नान करने से हमारे रोग-दोष दूर हो
जाएंगे और ऐसा होता भी है। पर यदि अगर आपका मन कह दे कि ये कुंड गंदा है और इसके
पानी से आपके शरीर में खुजली फैल जाएगी तो यकीन मानिए उस कुंड में चाहे ऐसा कुछ हो
या नहीं पर यदि आपने उस जल का स्पर्श भी किया तो आपके शरीर में अवश्य ही खुजली फैल
जाएगी।
मैं यहाँ
अपने दो
निजी उदाहरण
प्रस्तुत करती
हूँ।
1. एक लंबे समय से मैं अस्वस्थ हूँ। सत्य ये है कि मुझे कोई बीमारी है ही नहीं। फिर भी छोटी-मोटी
उदर समस्याएँ मुझे गाहे-बगाहे परेशान करती रहती हैं। जीवन में प्रत्येक प्रकार के परिवर्तन करने का प्रयास किया,
इलाज लिया, यहाँ तक कि भोजन भी संतुलित और प्रतिबंधित हो गया। फिर भी परिणाम उचित नहीं। अब इसके पीछे सारा खेल मेरे मस्तिष्क का है और ये मैं स्वयं समझती हूँ। मैंने लगभग ये स्वीकार लिया था कि मैं बीमार हूँ, और मुझ पर कोई दवा असर नहीं करती,
मेरे सारे प्रयास विफल होते हैं। मैं जब भी किसी नए मार्ग पर अग्रसरित होने का प्रयास करती हूँ, बीमारी मुझे घेर लेती है। संयोगवश मुझे डॉ. मर्फ़ी की ये किताब पढ़ने का अवसर मिला और ये भी संयोग है कि इसी विषय से संबन्धित कुछ वीडियोज़ मुझे यूट्यूब पर अचानक से ट्रेंड करते हुए मिले। जिनहोने मेरे विश्वास को सुद्रण
किया और इस विषय को समझने का अवसर दिया। अभी कुछ ही दिन हुए हैं और मैंने अपने अन्तर्मन से केवल यही पुकार लगाना आरंभ किया है कि मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ। मुझे कोई शारीरिक और मानसिक समस्या नहीं है। मैं सेहत, और प्रसन्नता की कामना करती हूँ। पिछले 20 दिन में जो सुधार मैंने किसी भी इलाज से नहीं देखा वो मेरे अवचेतन मन की शक्ति ने कर दिखाया। अब दवाइयाँ भी जैसे असर कर रही हैं। मैं बेहतर और बेहतर महसूस करते हुए इस लेख का दूसरा भाग आप तक सफलता से पहुंचा पा रही हूँ।
2. ना जाने कितने लोग
हरिद्वार जा कर हरि की पौड़ी पर गंगा स्नान करते हैं। श्रद्धा में भाव-विभोर हो उनके
भिन्न-भिन्न विचार होते होंगे। कितना ठंडा और तेज़ बहाव है वहाँ का। हम भी गए थे बहुत
साल पहले। मैं अपने और अपनी बुआ जी के परिवार के साथ थी। कुल-मिलकर 7 लोग। सभी ने शाम
को गंगा स्नान किया। ऐसा अकल्पनीय, अवर्णणीय,
अलौकिक आनंद की प्राप्ति हुई कि क्या कहूँ। पर मात्र 6 व्यक्तियों को। बची एक मेरी
माँ, जो गंगा स्नान में बिलकुल रुचि नहीं रखती।
उन्हें सबके साथ मजबूरी में स्नान करना पड़ा और चूंकि बार-बार इतनी दूर आना संभव नहीं
होता तो इस कारण भी उन्होने ये क्रिया कर तो ली पर उसका परिणाम अच्छा नहीं हुआ। अब
ये शब्द ‘क्रिया’
मैं इसीलिए प्रयोग कर रही हूँ क्यूंकी जहां बाकी सब के लिए गंगा स्नान एक आभास है मेरी
माँ के लिए एक क्रिया है। कुछ ही देर में उनके सारे शरीर में खुजली फैल गयी और वो छटपटाने
लगीं। जब तक धर्मशाला (जहां हम रुके थे) लौट कर उन्होने नल स्नान नहीं कर लिया उन्हें
चैन नहीं पड़ा। ये सब उनके अवचेतन मन की करामात थी जो कह रहा था कि ये नहीं करना है
और बेमन से किया तो उन्हें तकलीफ हुई और फिर मन ने कहा कि नल के जल दोबारा स्नान करने
से खुजली से मुक्ति मिलेगी, वो उन्हें मिली।
ये
बहुत छोटे और सामान्य उदाहरण हैं। पर मेरी मानिए तो इनका प्रयोग कर के देखिये। बस आपको
इस बात का ध्यान रखना है कि आपका अन्तर्मन आपकी की हुई इक्षा को नकारे ना,
या आपको ये आभास ना कराये कि जो आप सोच रहे हैं वो संभव है ही नहीं। इस नकारत्मकता
से आपको स्वयं को बचाना होगा। अन्यथा परिणाम विपरीत होंगे। सकारात्मक हो कर अपने अवचेतन
मन को प्रत्येक दिन अच्छे विचारों और सुखद आकांषाओं से पोषित कीजिये। आपकी इक्षायेँ
भी पूर्ण होंगी और आप प्रसन्न भी रहेंगे। ईसा मसीह की कहानियों को पढ़ें तो आप जान पाएंगे
कि कैसे उनके वस्त्र के स्पर्श मात्र से लोगों के गंभीर से गंभीर रोग दूर हो जाते थे।
जबकि ईसा मसीह एक साधारण मनुष्य के रूप में अवतरित हुए थे,
उनके पास कोई चमत्कारिक शक्ति नहीं थी। बस अपना या अपने वस्त्र का स्पर्श देने से पहले
आगंतुक से एक ही प्रश्न करते थे “क्या तुम्हें विश्वास है कि मुझे छू कर तुम स्वस्थ
हो जाओगे?”
जवाब हाँ में ही होता था। इस प्रकार वो उस व्यक्ति के अंतर मन में ये निश्चित कर देते
थे कि वो उस क्रिया से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करेगा।