रविवार, 11 अगस्त 2019

अनुच्छेद 370 पर सरकार का ऐतिहासिक निर्णय- मेरे विचार


आवश्यक नहीं कि हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी ही जाए और कुछ लिखा-बोला ही जाए। पर बात जब कश्मीर कि आती है तो भारत का बच्चा-बच्चा बोलता है और बोल सकता है। ये बात और है कि वो प्रतिक्रियाएँ कितनी उचित और कितनी अनुचित होती हैं ये सब के लिए तय कर पाना मुश्किल है। जैसा कि हम सब जानते ही हैं कि हाल ही में भारत सरकार ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाते हुए उससे विशेष राज्य का दर्जा छीन कर आखिरकार अब भारत का हिस्सा बना लिया है। ये एक गंभीर मुद्दा है इसी कारण अधीरता ना दिखाते हुए मैंने अपना समय लिया और बहुत सोच समझ कर इस विषय पर अपनी राय लिखने का निर्णय लिया। हालांकि मैं अब तक इस विषय पर अपनी राय कायम नहीं कर पायी हूँ और ना ही मैं कोई विशेषज्ञ हूँ। इसलिए आम विचारधारा के अनुरूप इस निर्णय के खिलाफ़ नहीं हूँ। पर जिन और जैसी परिस्थितियों में सरकार ने निर्णय लिया और कश्मीर को एक केंद्र शासित राज्य बना दिया, वो मेरे भीतर अनेकों प्रश्न और आशंकायें उत्तपन्न कर देता है।

अनुच्छेद 370 के अनुसार कश्मीर को एक विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था और उसके पास अपना एक अलग झण्डा था। बाहरी व्यक्तियों को कश्मीर में ज़मीन खरीदने और कश्मीरी लड़कियों को कश्मीर से बाहर शादी करने की आज़ादी नहीं थी। कश्मीर में ना ही भारत का संविधान और ना ही भारतीय कानून प्रणाली लागू होती थी। अनुच्छेद 370 के लिए राजनीति और भारत की जनता प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू पर दोषारोपण करती आयी है। जब्कि बहुत कम लोग जानते हैं (क्यूंकी वो पूर्वागृह से ग्रसित हैं और जानना ही नहीं चाहते) कि कश्मीर भारत का हिस्सा है भी तो पंडित नेहरू के कारण। जिस समय अनुच्छेद 370 लागू किया गया उस समय परिस्थितियों की मांग थी और पंडित जी ने स्पष्ट भी किया था कि ये प्रक्रिया अस्थायी है और “घिसते-घिसते एक दिन घिस जाएगी।“ कश्मीर में बाहरी लोगों के ज़मीन खरीदने पर पाबंदी का एक बड़ा कारण प्रकृति की सुरक्षा भी रहा है। जिस समय महाराज हरी सिंह ने ये निर्णय लिया था उस समय उन्हें डर था कि अंग्रेज़ कश्मीर के ठंडे और सुहाने मौसम के कारण वहाँ बसने का प्रयास करेंगे। इसलिए ज़मीन की खरीद फ़रोख्त पर पाबंदी लगाई गयी, हालांकि व्यापार पर पाबंदी नहीं थी।

देश की आज़ादी के बाद से अब तक अनुच्छेद 370 में इतने बदलाव हुए हैं कि वो नाम के बराबर ही कश्मीर में रह गया था। घिस-घिस के ख़त्म ही हो रहा था। पहले भी दो बार अनुच्छेद 370 को हटाने का प्रयास हुआ था जो सफल नहीं हो पाया और पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी जी के पश्चात कोई भी सरकार इतनी अधिक दल बल के साथ शासन में नहीं आई कि 370 पर मेजॉरिटी के साथ क्रियांवन कर सके। भाजपा सरकार ने अलगाववादी नेता महबूबा मुफ़्ती के साथ गठबंधन सरकार को गिरा कर पहले ही वहाँ गवर्नर शासन लागू कर चुकी थी। उसके बाद बेहद गोपनियता से कश्मीर में बड़ी मात्रा में फौज इकट्ठी की गयी, टेलीफोन, मोबाइल, इन्टरनेट और संचार के सभी साधन बंद किए गए, अलगाववादी नेताओं को नज़रबंद किया गया, धारा 144 लागू की और अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए बिल सीधे राज्य सभा में पेश किया गया और पास कर लिया गया। केंद्र सरकार का कहना है अब कश्मीर से आतंक ख़त्म हो जाएगा। कश्मीर का विकास होगा, नए आयाम बनेंगे।

हम भी यही चाहते हैं कि कश्मीर की वादी फिर से चहक उठे। कश्मीरियों को उनका हक़ मिले। सरकारी नौकरियों में संभावनाएं बढ़ें, रोजगार बढ़े, उन्नति हो और सबसे ऊपर कश्मीर आतंक मुक्त हो। पर इस सब में समय लगेगा और बहुत समय लगेगा। जब किसी निर्णय की सफलता और असफलता समय पर निर्भर हो और ऐसे में उस निर्णय से प्रभावित लोगों का मत ही ना पता हो या उनकी मर्ज़ी इस निर्णय में शामिल ना हो तो स्थितियाँ संभालना मुश्किल हो सकता है। कश्मीर पर आए फैसले में सारा भारत प्रसन्न है सिवाए कश्मीरियों के। उनकी शिकायत है कि उनके साथ धोका हुआ है। ना तो उनसे पूछा गया ना ही उन्हें बताया गया और बस उन पर ज़ोर ज़बरदस्ती और डर के सहारे से ये निर्णय थोप दिया गया। सबसे बड़ा सवाल यहाँ ये है कि कश्मीर को विशेष राज्य से राज्य का दर्जा भी ना दे कर केंद्र शासित राज्य क्यूँ बनाया गया। इसके पीछे भाजपा ने अपनी कोई राजनीतिक मंशा पूरी करने का प्रयास किया है।

जहां बाकी भारत में कश्मीर से भागे हुए कश्मीरी पंडित खुश हुए और जश्न मनाया (हालांकि उनके पुनर्स्थापन अभी तक कोई चर्चा नहीं हुई है) वहीं कश्मीर में अब भी हजारों की तादात में पंडित और सिक्ख भी रहते हैं जो सरकार के इस निर्णय से प्रसन्न नहीं हैं और इसके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर चुके हैं। उनका सबसे बड़ा डर है कि अब बाहरी लोग कश्मीर की ज़मीन हड़पने पहुँच जाएंगे और वादी पर ना केवल बोझ बढ़ेगा बल्कि प्रदूषण भी बढ़ेगा और केंद्र शासित राज्य होने के नाते अब पूरी तरह से कश्मीर केंद्र सरकार के नियंत्रण में रहेगा। कर्फ़्यू खुलने के बाद से वहाँ विरोध प्रदर्शन भी चल रहा है।

मुझे समझ नहीं आया कि सरकार ने ये निर्णय इस प्रकार क्यूँ लिया? कश्मीर और कश्मीरियों पर ये निर्णय इस तरह क्यूँ थोपा गया? कश्मीर में आम चुनाव करा कर, वहाँ के लोगों को अपने विश्वास में ले कर उन्हें बता कर भी ये निर्णय सरकार ले सकती थी। दूसरी बात, विशेष राज्य से सीधे केंद्र शासित राज्य बना देना भी मेरे जैसे व्यक्ति के लिए समझना मुश्किल है। हालांकि कश्मीर के चलते लद्दाख को फायदा हुआ है और लद्दाख के लोग उसे कश्मीर से अलग किए जाने और केंद्र शासित राज्य बना देने पर प्रसन्न भी हैं।

पर इस सब के बीच जो सबसे अनुचित बात है, वो है लोगों और खासतौर से भाजपा नेताओं की घ्रणित प्रतिक्रियायें। जैसे ही सरकार ने 370 हटा कर कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बना देने का निर्णय सार्वजनिक किया लोगों ने इस गंभीर विषय का परिहास बना डाला। भारत की अधिकतर जनता के लिए अनुच्छेद 370 मात्र कश्मीर में ज़मीन खरीदने और कश्मीरी लड़की से विवाह करने तक सीमित है। भद्दे भाषण, भद्दी टिप्पणियों से ना केवल भाजपा नेताओं ने अति कर रखी है बल्कि पूरा सोशल मीडिया इस गंदगी से भरा पड़ा है। ये हमारे समाज की गिरि हुई सोच है कि कश्मीरी बेटी उन्हें बेटी नहीं लगती। हवस के दरिंदे उन्हें नोचने के लिए तैयार बैठे हैं।  

भारतीय मीडिया कश्मीर के सही हालात नहीं दिखा रही। इंटेलिजेंस प्रमुख अजीत डोभाल वहाँ जा कर कुछ लोगों के बीच खाना खाते हुए अपनी तस्वीर खिंचवा कर ऐसा संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं कि वहाँ सब शांत है और कश्मीरी खुश हैं। हालांकि मेरी राय भी यही है कि सरकार का निर्णय सही है बस उनका तरीका गलत है और कश्मीर का केंद्र शासित राज्य बना दिये जाने के समर्थन में भी मैं नहीं हूँ। अब ईश्वर से यही प्रार्थना है कि हमारी जन्नत में सब कुछ ठीक रहे, शांत रहे और जैसा कि सरकार का कहना है आतंक ख़त्म हो, विकास हो।   



गुरुवार, 1 अगस्त 2019

आर.टी.आई. अमेंडमेंट और सरकार की मंशा


मोदी राज 2.0 में संसद में बिल ऐसे पास हो रहे हैं जैसे किसी बड़े रेस्टोरोंट में वहाँ का मीनू पास होता है। जनता को लग रहा है सरकार बहुत काम कर रही है। मेहनत से, मशक्कत से देश के हित में रणनीतियाँ बना रही है। हाँ, सरकार कर तो बहुत कुछ रही है पर जनता और देश के हित में नहीं अपने हित में। कैसे?

ये समझने के लिए हाल ही में पास किए गए तीन बिलों पर गौर कीजिये-

1. यू.ए.पी.ए. संशोधन बिल
2. आर.टी.आई. संशोधन बिल
3. तीन तलाक बिल (संशोधनों के साथ)

गौर कीजियेगा तीनों में ये शब्द संशोधन कॉमन है। तीन तलाक बिल के नुकसान और उसका झोल मैं पहले ही अपने एक ब्लॉग में लिख चुकी हूँ। नीचे दिये लिंक को खोल कर आप उसे पढ़ सकते हैं यदि आपने अब तक नहीं पढ़ा:

यू.ए.पी.ए. संशोधन बिल पर मैं अपने अगले ब्लॉग में लिखूँगी।

यहाँ बात करते हैं दूसरे बिल यानी RTI Amendment Bill की। अब कुछ ऐसे परिवर्तन हो गए हैं कि यदि आप इन amendments को जानने के लिए एक RTI डालें तो सूचना अधिकारी आपको जवाब देगा कि “इन परिवर्तनों के चलते वो आपको इन परिवर्तनों की सूचना नहीं दे सकता।“ सन 2005 में कॉंग्रेस सरकार ने हमें आर.टी.आई. के रूप में सूचना का अधिकार दिया। फिर गौर कीजिएगा कि ये वही सरकार है जिसे हम देश को 60 साल लूटने और भ्रष्टाचार में लिप्त रहने वाली सरकार कह कर कोसते हैं। सूचना का अधिकार पाने के बाद सरकार और सभी विभागों की जनता से सीधी जवाबदेही का एक रास्ता खुला। अब जनता सीधे संबन्धित विभाग से अपनी वांछित सूचनाओं को एक साधारण से मूल्य को चुका कर एक निश्चित अवधि के अंदर प्राप्त कर सकती थी। इसके लिए सरकार ने हर विभाग में जन सूचना अधिकारी की नियुक्तियाँ की। कुछ विभागों में वहाँ के सबसे मुख्य उत्तरदायित्व वाले अधिकारी को जन सूचना अधिकारी का कार्यभार सौंपा गया। नतीजन ना जाने कितने ही घोटाले सामने आए। खुद कॉंग्रेस सरकार भी इससे बची नहीं रही। अगर RTI ना होता तो क्या कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला, कोल गेट घोटाला और 2जी घोटाला कभी सामने आ पाता? यहाँ तक कि इसी एक्ट के कारण ही हमें नोटबंदी के बाद रिज़र्व बैंक तक पहुँचने वाली मुद्रा की संख्या के बारे में पाता चल सका। फिर अचानक भाजपा सरकार को या कहना चाहिए कि मोदी सरकार को जो भ्रष्टाचार विरोधी है, क्या आवश्यकता पड़ी इस प्रणाली और प्रक्रिया में परिवर्तन करने की?

RTI Act के अंदर एक इन्फॉर्मेशन कमीशन होता है, एक राज्य स्तर पर और एक केंद्र स्तर पर। इनके अंदर इन्फोर्मेशन कमिश्नर होते हैं। एक चीफ इन्फोर्मेशन कमिशनर होता है जिसका मुख्य कार्य होता है किसी भी RTI आवेदन जिसका उत्तर यदि संबन्धित जन सूचना अधिकारी द्वारा समय पर ना दिया गया हो उस पर आगे एक्शन लेते हुए संबन्धित विभागों से सूचना निकालना और आवेदक तक पहुंचाना। इसके अलावा यदि आवेदक पर अधिक फीस चार्ज की गयी हो तो इसकी शिकायत भी इनसे की जा सकती है। इन सूचना आयुक्तों को स्वतंत्र रखने के लिए इनका 5 वर्ष का एक निश्चित कार्यकाल होता है और इनकी एक निश्चित तनख्वा होती है जिसकी तुलना चुनाव आयुक्त या सर्वोच्च न्यायालय के न्यायधीश से की जा सकती है क्यूंकी उनका भी एक निश्चित कार्यकाल और परिश्रमिक होता है। जैसे चुनाव आयुक्त वैसे ही सूचना आयुक्त और इनका स्वतंत्र होना बहुत आवश्यक है। सीधी सरल सी बात है कि यदि ये विभाग सरकार के दबाव या रहमोकरम में कार्य करेंगे तो ये जनता के प्रति निष्पक्ष और ईमानदार कैसे रह सकते हैं? अगर ये विभाग सरकार के अंदर कार्य करेंगे तो आपको सूचना कैसे मिलेगी? या तो आपका आवेदन ही निरस्त हो जाएगा या आपको सूचना देने से मना कर दिया जाएगा।   

ये समझ लेते हैं कि ये परिवर्तन या amendments हैं क्या?

अब इन सूचना आयुक्तों का कार्यकाल और परिश्रमिक या तनख्वा केंद्र सरकार तय करेगी। RTI Act का आर्टिकल 13 तय करता है सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और परिश्रमिक के बारे में और इसी आर्टिकल 13 में परिवर्तन लाया गया है जिसके बाद इन सूचना आयुक्तों का कार्यकाल तनख्वा और अन्य भत्ते अब केंद्र सरकार तय करेगी। इसी प्रकार आर्टिकल 16 में राज्य सूचना आयुक्तों के भी कार्यकाल, तनख्वा और भत्ते आदि केंद्र सरकार तय करेगी। ये amendment बिल लोक सभा में पास होने के बाद 25 जुलाई ओ राज्य सभा में भी पास कर दिया गया। हालांकि राज्य सभा में भाजपा का संख्या बल कम था और वहाँ इसके पास होने की गुंजाइश नहीं थी। पर बीजेडी और टीआरएस ने भाजपा का समर्थन किया और ये बिल पास हो गया। इसका दोष इन तीनों पार्टियों को जाता है क्यूंकी बाकी विपक्ष इन परिवर्तनों के सख्त खिलाफ था।

अब समझिए इन परिवर्तनों को लाने की आवश्यकता क्या थी। कारण स्पष्ट है, सूचना आयुक्तों की स्वतंत्रता को पूरी तरह से छीन लेना। जिस तरह हमारी प्रशासनिक सेवाएँ और पुलिस रजीनीतिज्ञों की कठपुतली बने रहते हैं वैसे ही अब सूचना आयुक्तों का हाल होगा। ऐसा बहुत कुछ है RTI Act में जो सरकार को असहज किए हुए है:
            
जैसे कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी का डिग्री मामला। 2015 में नीरज शर्मा नाम के एक RTI activist ने RTI दायर की ये जानने के लिए कि 1978 में दिल्ली विश्वविध्यालय में बी.ए. पास करने वालों की विस्तार सूचना मांगते हुए। जिसमें उनके नाम और उनके प्राप्तांकों के बारे में पूछा गया। जब दिल्ली विश्वविध्यालय ने ये सूचना देने से मना कर दिया तब नीरज शर्मा ने सूचना आयुक्त से शिकायत दर्ज की। कुछ माह के समय के बाद सूचना आयुक्त ने आदेश किया कि ये सूचना आवेदक को प्राप्त कराई जानी चाहिए। इस पर दिल्ली विश्वविध्यालय ने उत्तर दिया कि हम ये सूचना नहीं दे सकते पर हम अपनी ओर से ये बता सकते हैं कि मोदी जी ने वहाँ से 1978 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की थी। उसके बाद अपनी सूचना का बचाव करने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय अदालत पहुँच गया और आज भी ये मामला अदालत के आधीन पड़ा है।
            
दूसरा मामला है किसी का RTI फाइल कर के रिज़र्व बैंक ये सूचना मांगना कि जितने भी एन.पी.ए. और डिफ़ौलटर्स हैं जिहोने अपने कर्ज़ नहीं चुकाए हैं उनके नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए। RBI ने भी ये करने से मना कर दिया और फिर से वही प्रक्रिया और मामला अदालत में।

 तीसरा मामला है चुनाव आयोग से 2019 में हुए चुनाव के दौरान मतों की संख्या और वीवीपैट पर्चियों की संख्या के मिलान की। जिसे चुनाव आयोग देने से लगातार मना कर रहा है और सूचना अर्ज़ी सूचना आयुक्त के निस्तारण के   आधीन है।

अब ये भी जानिए कि ये मोदी सरकार का सूचना के अधिकार पर ये प्रथम वार नहीं है। अब तक 32000 से अधिक अपील और शिकायतें बिना उत्तर और निस्तारण के पड़ी हुई हैं सूचना आयोग के पास। ऐसा इसलिए है क्यूंकी 2018 के अंत तक सरकार ने सूचना आयुक्तों की नियुक्ति ही नहीं की। सूचना आयुक्तों के 11 पदों पर 8 खाली ही पड़े थी। अब सोचिए कि जब सूचना आयुक्त ही नहीं होंगे तो आप जन सूचना अर्ज़ी निरस्त होने पर किस के पास अपील करने जाएंगे। जब कुछ activists ने सर्वोच्च न्यायालय से गुहार लगाई तब सरकार ने 4 आयुक्तों की नियुक्ति और की। पर अब भी 4 पद खाली ही पड़े हैं।

अरुणा रॉय जिन्होने RTI को बनाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था वो इन amendments या परिवर्तनों के बाद लगातार सड़क पर विरोध कर रही हैं। पर हमारा बिकाऊ मीडिया ये सब जनता तक पहुंचा ही नहीं रहा। अन्ना हज़ारे ने भी इन परिवर्तनों से तानाशाही आने की बात कही है। हालांकि वो अपनी उम्र के चलते विरोध प्रदर्शनों का हिस्सा नहीं बन रहे पर उन्होने अपना समर्थन दिया है।

मोदी सरकार का कहना है कि वो इस एक्ट को और मजबूत कर रहे हैं पर कैसे इस बात का कोई सार्थक उत्तर नहीं है उनके पास। जबकि होना ये चाहिए कि सूचना आयोग एक स्वतंत्र विभाग बने जो किसी भी तरह से किसी के भी दबाव और निर्देशों के आधीन ना हो। तब ही तो इस सूचना के अधिकार की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी। क्या अब भी आपको तत्कालीन सरकार की मंशाओं को समझने में कोई कसर बाकी है?
  



मंगलवार, 2 जुलाई 2019

जल संरक्षण-कुछ जाने बुझेउपाए


इस लेख को पढ़ कर आप को ऐसा लगेगा कि इसमें नया क्या है? ये सब तो हमें पता है। यही तो बात है कि हमें सब पता है। जल संकट और संरक्षण, दोनों ही विषयों पर आपको इन्टरनेट पर ढेरों लेख मिल जाएंगे। लोग लघभग हर रोज़ इस ओर संसार का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं। फिर भी हर रोज़ ही किसी ना किसी को इस बारे में लिखना ही पड़ता है।

प्रधानमंत्री पद के अपने दूसरे कार्यकाल के बाद पिछले इतवार मोदी जी ने प्रथम बार अपने “मन की बात” से जनता को संबोधित किया। उसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात थी उनका जल संकट और जल संरक्षण की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करना। अच्छा लगा कि वो स्वयं भी इस समस्या के प्रति जागरूक हैं। पर फिर याद आया कि लोक सभा चुनाव से पहले उनकी रैली और जन सम्बोधन के वाराणसी में सड़कें धोने के लिए 1.4 लाख लीटर पानी बर्बाद किया गया था और जिसके नतीजन वहाँ की आधी से अधिक जनता को कई दिनों तक पानी की किल्लत झेलनी पड़ी थी।

असल में ये लेख जल संरक्षण के संबंध में है ना कि सरकार को दोष देने के लिए। पर दोषी हम सब हैं। जल संकट आज आचनक नहीं उपजा है। हम जी खोल के पानी बर्बाद करते हैं, सरकार भी करती है। सारा अद्योगिक कचड़ा आज भी नदियों में जा कर उन्हें प्रदूषित करता है। गंगा नदी को स्वच्छ करने के लिए कई बार बड़ी मात्रा में सरकार की तरफ से बजट आया। पर उस बजट का आधा ही खर्च किया गया। आज भी गंगा की स्थिति वैसी ही है। अनेकों स्थानों पर गंगा का जल प्रदूषित है और पीने लायक नहीं रहा। यमुना तो पहले से ही अनेकों स्थाओं पर विषैली हो चुकी हैं। तमिल नाडु में तो कई वर्ष पहले ये नियम बना दिया गया था कि नयी इमारतों को बनाते समय “वर्षा जल संरक्षण” की व्यवस्था होनी ही चाहिए। पर नियम बनाना और उसे पूरे कायदे से सफल कराने में फर्क है। नदी जहां-जहां रास्ता छोड़ती है वहाँ इमारतें बनाते जाना, झीलें और तालाब भर कर घर बनाते जाना। पहाड़ी क्षेत्रों में अवैध स्टोन क्रशर्स, नदियों से अवैध बालू और मौरंग का खनन रोका नहीं जा रहा। ये सब हमने ही तो किया है और इस तरह से अब सरकार भूमि अधिग्रहण करती है तो (रविश कुमार की ज़ुबान में) उसे भू-माफिया नहीं कहते, उसे विकास कहते हैं। 

खैर अब भी सचेत होने की अवश्यकता है। जल संरक्षण का सीधा उपाए, आम जनता के लिए होता है- जल का कम से कम और आवश्यकता अनुसार ही प्रयोग करना। छोटी-छोटी बातें जैसे सुबह ब्रश करते समय या दाढ़ी बनाते समय वॉश बेसिन का नल बंद रखा जा सकता है। आवश्यकता पड़ने पर ही उसे चलाइये वो भी उतना ही तेज़ जितने में आपका कार्य सिद्ध होता हो। नल को पूरी तीव्रता के साथ खोलने में भी पानी बेकार बहता है। इसी तरह बर्तन धोते समय भी पानी आवश्यक मात्रा से अधिक ही खर्च हो जाता है। बर्तन माँजने के लिए पानी एक तरफ भर कर रखा जा सकता है और सारे बर्तन माँज कर रखने के बाद धीमे नल की धार में वो बर्तन धोये जा सकते हैं या फिर दूसरे बर्तन में रखे साफ जल से वो बर्तन धोये जा सकते हैं। नहाते समय शावर के स्थान पर बाल्टी का ही प्रयोग करें। घर में ग्लासों में रखा बचा हुआ पानी फेंकने से अच्छा उसे एक जगह इकट्ठा करें। उसे बर्तन धोने या पौधों में डालने के काम में लाएँ। इस में ऐसा कुछ नहीं जो हमें पता नहीं। फिर भी हम अपने आप को बदलते नहीं।

इस छोटी बचत की विस्तार से चर्चा करते हैं:

पानी के दो प्रकार होते हैं एक ब्लैक वाटर और दूसरा ग्रे वाटर। ब्लैक वाटर वो है जो टॉइलेट में जाता है, जिसमें हमारा मल होता है। वो जल गंदा ही है उसे ना तो ट्रीट किया जा सकता है ना ही दोबारा प्रयोग। ग्रे वाटर वो होता है जिससे हम नहाते हैं, कपड़े धोते हैं या बर्तन धोते हैं। इस पानी में मिट्टी, साबुन और लिंट (कपड़ों के रेशे) होता है। इस पानी को यदि हम संरक्षित कर सकें तो इसका दोबारा प्रयोग हो सकता है। ज़ाहिर सी बात है इसे हम पी नहीं सकते पर दोबारा प्रयोग कर सकते हैं। उस पानी को दोबारा कपड़े धोने, बर्तन माँजने और पोंछा लगाने में प्रयोग किया जा सकता है। इससे साफ पानी के प्रयोग की मात्रा में एक स्वाभाविक कमी आएगी। गर्मियों में हमारे घर के एयर कंडीशनर्स से जो पानी निकलता है वो असल में ग्रे वाटर भी नहीं होता वो पानी साफ ही होता है। यदि हम उस पानी को संरक्षित करें तो उसे घर के विभिन्न कार्यों (पीने के अतिरिक्त) में प्रयोग कर सकते हैं या पौधों में भी डाल सकते हैं। कुछ समय पहले इन्टरनेट पर एक फोटो वाइरल हुई थी जिसमें आर.ओ. या वाटर प्यूरिफाइयर्स ने निरंतर बहने वाले पानी को एक टंकी में इकट्ठा कर के उसे वॉशिंग मशीन में इस्तेमाल किया जाता है। वो भी एक बहुत अच्छा प्रयोग है। इसी प्रकार वॉशिंग मशीन से रिंस हो कर बह जाने वाले पानी को हम पोंछा लगाने या धुलाई के काम में प्रयोग कर सकते हैं। बस करना ये है कि किसी प्रकार बहते जल को संरक्षित करने का प्रयास करना है या सरल भाषा में कहूँ तो जुगाड़ फिट करनी है।

लगातार जंगलों का काटे जाना, हरे पेड़ों को जड़ से उखाड़ देना, जल स्तर को कम करता जा रहा है। पर्यावरण बचाने का भार हमारे ही कंधों पर है। अब देखिये ऐसा नहीं कि सरकार कुछ नहीं कर सकती। वो सब जानती है और बहुत कुछ कर सकती है। पर बस हम अपने देश और समाज के असल मुद्दों पर उसका ध्यान आकर्षित नहीं कर रहे।

1. नदियों की सफाई
2. अद्योगिक कचरे का निस्तारण
3. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स (जल-उपचार केंद्र)
4. सूखे कुएं, झीलों, नहरों और नदियों का पुनुरुत्थान
5. वर्षा जल संरक्षण और उसका सदुपयोग
6. पूरे भारत में अद्योगिक क्षेत्र और कमर्शियल क्षेत्र के लिए वर्षा जल संरक्षण, उपचार और प्रयोग का कानूनन लागू किया जाना।
7. क्लाउड सीडिंग
8. जल संरक्षण जागरूकता अभियान
9. मिट्टी को पकड़ के रखने वाले पेड़ों को बड़ी मात्रा मे लगाया जाना और जंगलों का पुनरुत्थान किया जाना।

उपरलिखित उपायों में से कुछ राज्य सरकारों ने “क्लाउड सीडिंग” के लिए कई करोड़ रुपये का बजट तय कर रखा है। ये एक विस्तृत विषय है, इस पर आप अधिक जानकारी के लिए गूगल सर्च कर सकते हैं। इसे समझाने के लिए पूरा एक लेख लगेगा। हालांकि अभी ये पूरे विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता कि ये प्रक्रिया कितनी कारगुज़र होगी। इससे बेहतर और सस्ते उपाए हमारे पास मौजूद हैं जो कि भारत सरकार अपना सकती है।

जल संकट और फिर इन जाने बूझे उपायों के बारे में लिखने का मेरा मन्तव्य मात्र इतना है कि सचेत हो जाइए। अब भी समय है। जल संरक्षण कीजिये, बर्बादी मत कीजिये। किसी को जल की बर्बादी करने भी मत दीजिये। कम से कम जल संरक्षण के लिए वो सारे उपाए अपनाइए जो आप सरलता से अपना सकते हैं। दूसरी और मुख्य बात- राष्ट्रवाद, धर्म और जातिवाद से ऊपर उठ कर अपने असल और गंभीर मुद्दों की तरफ अपना और सरकार का ध्यान आकर्षित कीजिये। सरकार को मजबूर कीजिये कि वो प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना बंद करे। विकास के नाम पर संसाधन नष्ट करना बंद करे और देश के भविष्य के लिए सार्थक कदम उठाए।

कहने की आवश्यकता नहीं पर “जल ही जीवन है”   

शुक्रवार, 28 जून 2019

जल संकट: अंधी जनता-अंधी सरकार


अगर मैं आपसे पूछूं कि वर्तमान में भारत कौन से सबसे बड़े संकट से गुज़र रहा है? तो कोई कहेगा राष्ट्रवाद’, कोई कह सकता है धर्मांधता’, कोई अराजकता और सामाजिक अस्थिरता भी कह सकता है। फिलहाल संकट एक नहीं कई हैं पर इन सबसे ऊपर गंभीर और भयावह संकट है जल संकट। इस समय भारत भयंकर जल संकट से दो-चार हो रहा है जिसके कारण पीने के साफ पानी की किल्लत बहुत तेज़ी से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में बढ़ रही है। इससे भी भयंकर तथ्य ये है कि ना केवल सरकार बल्कि जनता ने भी इस संकट की ओर पीठ फेर रखी है।

मैं फ़र्रुखाबाद उत्तर प्रदेश की निवासी हूँ। यहाँ गंगा भी हैं और राम गंगा भी। गंगा नदी पर बना हुआ पुल कुल 1.1 किलोमीटर लंबा है। आप अंदाज़ा लगा लीजिये नदी का फाट कितना बड़ा होगा। 3 वर्ष पहले तक यहाँ हर मानसून में बाढ़ आती थी। सबसे ज़्यादा नुकसान राम गंगा करती थी। निचले इलाकों में कटान होने से ना केवल वहाँ रहने वालों के घर डूब जाते थे बल्कि फसल भी बर्बाद होती थी। फ़र्रुखाबाद-बरेली हाईवे पर सड़क के ऊपर से पानी बहता था जिससे परिवहन में भी बहुत समस्याएँ आती थीं और उस रास्ते पर निकलना खतरनाक हो जाता था। गंगा नदी में बाढ़ तब ही आती है जब नरोरा बांध से पानी छोड़ा जाता है। पिछले 3 साल से हालात ये हैं कि राम गंगा काफी हद तक सिकुड़ गईं है। बारिश भी अब उतनी नहीं होती। गंगा नदी के पास रहने पर भी ये नहीं पता कि किस दिन हम जल संकट का सामना कर रहे होंगे।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इस समय भारत की 60 करोड़ जनता पीने के साफ पानी की किल्लत यानि जल संकट से गुज़र रही है। अगले वर्ष तक देश के 21 शहर यानी 10 करोड़ लोग इस संकट का सामना करेंगे। 2030 तक देश की 40% आबादी के पास पानी नहीं होगा। अब तो सरकार भी मानती है कि हमारे देश में 70% पानी प्रदूषित है। प्रदूषित पानी की 122 देशों की सूची में हम 120 वें नंबर पर हैं। प्रति वर्ष 2 लाख यानी लगभग 550 लोग प्रति दिन प्रदूषित पानी पीने के कारण मर जाते हैं।

वो दिन दूर नहीं जब हम ज़ीरो डे देखेंगे। पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में ज़ीरो डे हुआ जब सरकार ने पानी की सप्लाई बंद कर दी। ऐसे ही हमारी सरकार के पास भी किसी दिन पानी देने को बचेगा ही नहीं। संसार भर की आबादी में से कुल 16% आबादी भारत में है आर हमारे पास पीने के साफ पानी की कुल मात्रा मात्र 4% है। समस्या वाली बात ये भी है कि इस संकट से संबन्धित पूरी जानकारी हमें मीडिया से भी नहीं मिलती। चेन्नई पिछले 3 वर्षों से लगातार सूखे की मार झेल रहा है। ना तो वहाँ के अस्पतालों में पानी है। यहाँ तक कि आई.टी. सेक्टर ने भी अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करने के लिए कह दिया है क्यूंकी वो ऑफिस में टॉइलेट के लिए और पीने के पानी की व्यवस्था नहीं कर सकता। पिछले वर्ष तक चेन्नई में पानी का एक टैंकर 1500 रुपये तक का था। वही टैंकर इस वर्ष 6000 रुपये में बिक रहा है। एक परिवार के लिए अमूमन महीने भर का खर्चा 12,000 रुपये हो जाता है। सोचिए निचले वर्ग का व्यक्ति वहाँ कैसे जीवन जी रहा होगा।

विकास के नाम पर सरकार जिस प्रकार प्रकृति और संसाधनों से खिलवाड़ कर रही है वो इस संकट और तेजी से बढ़ा रहा है। चेन्नई में 30,000 के आस-पास तालाब हुआ करते थे। जिन्हें भर कर वहाँ प्लॉट काट दिये गए। अडियर नदी के फ़्लड बेसिन (वो जगह जहां बाढ़ के बाद नदी ढल जाती है) पर हवाईअड्डा बना दिया गया। पटना में जहां एम्स बन रहा है पहले वहाँ 35 एकड़ में एक झील हुआ करती थी। जब की बिहार भारत के उन राज्यों में से एक राज्य है जहां पीने के साफ पानी की उपलब्धता मात्र 0.5% है। बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र में 54 हज़ार पेड़ काटे जाएंगे। इससे पहले झारखंड में अडानी के पावर प्रोजेक्ट के लिए एक पूरा घना जंगल साफ कर दिया गया।    

चेन्नई में इस जल संकट के चलते 1 व्यक्ति की हत्या हो चुकी है। राजास्थान में लोग पानी चोरी के डर से अपने पानी की टंकियों पर ताले डाल के रखते हैं। मध्य प्रदेश में तो पानी के टैंकरों की सुरक्षा के लिए पुलिस बल लगाना पड़ा, वहाँ लोगों ने टैंकर चालक की ही पिटाई कर दी। झारखंड में एक व्यक्ति ने पानी की लड़ाई में 6 लोगों को चाकू से गोद डाला। उत्तर प्रदेश के 5 ग्रामों ने लोक सभा चुनाव का बहिष्कार भी किया था क्यूंकी उनके हिसाब से सरकार उनकी पानी की समस्या का कोई समाधान नहीं कर रही।

हम लगातार प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। अपनी मनमर्ज़ी करते हुए लगातार पेड़ काट रहे हैं, तालाबों पर घर बना रहे हैं। झीलें, नदियां, नहर सूख रही हैं और हमें फिक्र नहीं हो रही। जहां-जहां सबमर्सिबल लगे हैं वहाँ पानी की खूब बर्बादी होती है। गाड़ी तो बड़ी चीज़ है, मैं यहाँ अपने ही पड़ोस में लोगों को सबमर्सिबल के मोटे से पाइप से साइकल भी धोते हुए देखती हूँ। सुबह-शाम लोग सड़क पर ढेरों लीटर पानी फैला कर बर्बाद करते हैं। सप्लाई से आने वाले पानी के असंख्य नल खुले ही पड़े रहते हैं। पानी बहता रहता है। अक्सर सड़कों पर पाइपलइन टूटी दिख जाती हैं और मर्रम्मत के लिए कोई नहीं आता।

अब देखिये सरकार का इस जल संकट के प्रति रवैय्या क्या है:

1. तमिलनाडु में एआईडीएमके के मंत्री जी ये मानते हैं कि जल संकट जैसा कुछ नहीं और ये एक बनाई हुई खबर है। उसके कुछ दिन बाद ये ही मंत्री जी बारिश के लिए पूजा और हवन करने बैठ जाते हैं।

2. जल शक्ति मंत्री गंजेन्द्र शेखावत कहते हैं कि ये मीडिया का प्रोपोगैंडा है।

3. बिहार में पीने के साफ पानी की कमी और एन्सिफिलाइटिस से हो रही बच्चों की मौतों के विरोध में 40 प्रदर्शनकारियों पर उल्टा एफ.आई.आर. दर्ज कर ली गयी।

4. माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी स्वयं ये मानते हैं कि क्लाइमेट चेंज जैसा कुछ नहीं हो रहा है, हम बूढ़े हो रहे हैं।

कोई माने या ना माने। सर्दियाँ ज़्यादा ठंडी हो रहीं है, गर्मीयाँ बहुत गर्म हो रही हैं, बारिश अब उतनी और वैसे नहीं होती। क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग तो है ही। प्रकृति से खिलवाड़ हम केदारनाथ त्रासदी के रूप में देख ही चुके हैं। ऐसा बिलकुल नहीं कि वो दोबारा घटित नहीं होगा। हिमालय के ग्लेशियर्स बहुत तेजी से पिघल रहे हैं। गंगोत्री के ऊपर गौमुख ग्लेशियर की चर्चा सदेव होती है। वहाँ का तापमान भी बढ़ने लगा है। पर अभी किसी का ध्यान यमुनोत्री के ऊपर ग्लेशियर की तरफ आकर्षित नहीं हुआ। यमुना नदी के उदगम के बारे में वही लोग जानते हैं जो स्वयं जानना चाहते हैं। मैं आपको सचेत कर दूँ कि गंगा ने जब भी अपना विकराल रूप दिखाया और जितनी तबाही फैलाई वो यमुना के मुक़ाबले बहुत कम ही थी। ग्लेशियर्स यूं ही तेजी से पिछलते रहे और जिस दिन यमुना कभी अपने विकराल रूप में आ गईं उस दिन ये बर्बादी 3 गुना अधिक होगी।

बुधवार, 26 जून 2019

तीन तलाक बिल का झोल


पिछले कई वर्षों से तीन मुस्लिम महिलाएं अपने हक़ की लड़ाई सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रही थीं। उनकी लड़ाई थी त्वरित तीन तलाक़ के खिलाफ़। जैसा कि अधिकतर लोग जानते हैं कि मुसलमानों के पाक ग्रंथ कुरान में और संविधान के तहत मुस्लिम पर्सनल लॉ के अंतर्गत मुसलमान पतियों का अपनी पत्नी से तलाक़ की एक विधि है जिसे तीन तलाक़ कहा जाता है। ये एक जटिल और मुश्किल प्रक्रिया होती है जिसकी अवधि 3 माह की होती है और प्रत्येक माह में एक बार मुसलमान पति को अपनी पत्नी से घरवालों और काज़ी/मौलाना की मौजूदगी में तलाक़ कहना होता है। इस दौरान पति-पत्नी को साथ ही रहना होता है और इद्दत की अवधि पार करनी होती है। इद्दत यानी पत्नी की तीन माहवारियों का समय। यदि पहली या दूसरी बार तलाक़ कहने के बाद पति-पत्नी के मध्य संबंध बन जाते हैं तो मुसलमान पति द्वारा कहा हुआ पहला या दूसरा तलाक़ निरस्त हो जाता है। तीन माह के दौरान प्रत्येक बार कहे हुए तलाक़ के दौरान काज़ी/मौलाना और घरवालों मौजूदगी में ही मेहर की रकम अदायगी होती है। इस प्रक्रिया के सभी नियम निभाना आवश्यक होता है और मुसलमान पति अपनी पत्नी को बेसहारा नहीं छोड़ सकता। इसके बाद यदि वो पति अपनी पत्नी से दोबारा निकाह करना चाहे तो उसकी पत्नी को हलाला की प्रक्रिया से गुज़रना पड़ता है। जहां उस पत्नी को किसी अन्य पुरुष से निकाह कर के कुछ समय साथ रहना होता है और फिर उस पति की मर्ज़ी से ही तीन तलाक़ की प्रक्रिया से गुज़र कर वो वापस पहले शौहर से निकाह कर सकती है। ये प्रक्रिया इतनी जटिल इसलिए बनायी गयी होगी जिससे कि आसानी से मियां-बीवी तलाक़ के बारे में सोचे भी ना।

पर जैसा कि होता आया है, दुरुपयोग। हर नियम, कानून का दुरुपयोग। वैसे ही तीन तलाक़ का वीभत्स रूप है त्वरित तीन तलाक़। जिसमें मुसलमान पति एक साथ लगातार तीन बार तलाक़ कह कर या लिख कर बीवी को बेसहारा कर देता है। सन 2017 में आखिरकार सर्वोच्च न्यायालय ने फोन, व्हाट्सएप, ईमेल या मुंह से कहे गए त्वरित तीन तलाक़ को अवैध और असंवैधानिक घोषित कर दिया। पाक कुरान में भी इस प्रकार के तलाक़ का कोई वर्णन नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के बाद सबसे अधिक किसी ने इस आदेश का क्रेडिट उठाया तो वो है भाजपा सरकार। जबकि देखा जाए तो सरकार या प्रधानमंत्री जी का इस पूरे प्रकरण में कोई हांथ नहीं। लड़ाई मुस्लिम महिलाएं लड़ रही थीं और आदेश सर्वोच्च न्यायालय ने दिया। परंतु उसके बाद से भाजपा सरकार संसद में एक बिल पास करना चाहती है जिसका नाम है “Muslim Women (Protection of Rights on Marriage) Bill. इस बिल में कई ऐसी खामियाँ हैं जिनके कारण विपक्ष इसका विरोध कर रहा है। मैं यहाँ इस बिल के अंतर्गत केवल दो मुख्य सेक्शनस की चर्चा करूंगी।

सेक्शन 3:
मुस्लिम पति द्वारा अपनी पत्नी को किसी भी तरह से तलाक़ कहना (शब्दों में, लिख कर या इलेक्ट्रोनिक तरीके से) अवैध होगा।

सेक्शन 4:
सेक्शन 3 के अनुसार कोई भी मुस्लिम पति यदि अपनी पत्नी को तलाक़ कहता है तो उसे तीन वर्ष तक का कारावास और जुर्माना दंड स्वरूप दिया जा सकता है।

अब इन दोनों सेक्शनस पर गौर कीजिये तो दो नयी समस्याएँ सामने आती हैं।

1. ये कि अब मुस्लिम पतियों के लिए तलाक़ नामुमकिन है। किसी भी प्रकार से यदि वो अपनी पत्नी को तलाक़ कहते हैं तो वो उनके लिए दण्डनीय अपराध होगा।
2. ये कि अब मुसलमान महिलाओं की समस्या और बढ़ेगी। उन्हें उनका पति बिना तलाक़ कहे ही घर से निकाल कर बेसहारा कर दे, गाली-गलौज करे, मारे-पीटे और रास्ते पर छोड़ दे तो उस पर इस बिल के अंतर्गत किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं हो सकती क्यूंकी उसने तलाक़ शब्द का इस्तेमाल किया ही नहीं। 

अब सवाल ये है कि जब विवाह/निकाह को एक सिविल कोंट्रेक्ट माना गया है और सर्वोच्च न्यायालय ने पहले ही त्वरित तीन तलाक़ को अवैध और निरस्त घोषित किया है तो किसी भी मुसलमान पुरुष को कानूनन या विधितः तलाक़ लेने की प्रक्रिया में क्यूँ दंडित किया जाए? हालांकि ये सही है कि तलाक़ की पूर्ण विधि या कानूनन विधि निभाए बगैर और पत्नी को बेसहारा छोड़ देने की प्रक्रिया गलत है और दंडनीय होनी चाहिए।

2011 सेंसस के अनुसार भारत में कुल 2.37 मिलियन महिलाएं अपने पतियों से विलग हैं। ये साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि कितनी अपनी मर्ज़ी से हैं और कितनी बेसहारा छोड़ी गयी हैं। इन में 1.9 मिलयन हिन्दू महिलाएं हैं और 0.28 मुसलमान।

विपक्ष का विरोध और सुझाव उचित है कि यदि महिलाओं की सुरक्षा से संबन्धित बिल पास किया जाना चाहिए तो मात्र एक समुदाय विशेष की ही क्यूँ? भारत की सभी विवाहित महिलाओं की सुरक्षा क्यूँ नहीं? अब यदि इस बिल में मामूली परिवर्तन किए जाएँ और भारत की सभी विवाहित महिलाओं की सुरक्षा की बात की जाए तो ये बिल कहलाएगा “Protection Of Rights on Marriage”। इसी के बिनाह पर सेक्शन 3 और 4 में परिवर्तन हो सकता है:

सेक्शन 3:
यदि गैर कानूनी तरीके से भारत का कोई भी विवाहित पुरुष, बिना तलाक़ की सही और कानूनी विधि अपनाए अपनी पत्नी का परित्याग कर उसे बेसहारा छोड़ देता है तो वो दण्डनीय होगा।

सेक्शन 4:
सेक्शन 3 के अनुसार दंड का प्रावधान होगा अधिकतम 3 वर्ष का कारावास और जुर्माना।

मैं किसी को अपना आदर्श नहीं मानती ना ही मैं किसी का आदर्श बनने की कामना रखती हूँ। क्यूंकी हम सब मनुष्य हैं, गुण-दोषों से परिपूर्ण। इसलिए मेरा मानना है कि यदि कोई नेता पक्ष या प्रतिपक्ष कोई उचित और तार्किक तथ्य कहता या स्पष्ट करता है तो उसे सुन कर, समझ कर उसका समर्थन होना चाहिए। इसी तरह कोई भी नेता पक्ष या प्रतिपक्ष कोई अनुचित तथ्य या कुतर्क प्रस्तुत करता है तो उसका विरोध होना चाहिए। यदि मुझे तीन तलाक़ बिल पर विपक्षी नेता शशि थरूर का वक्तव्य उचित लगा तो इसका अर्थ ये नहीं कि वो मेरे आदर्श हो गए। मैंने उनके वक्तव्य पर शोध किया और तत्पश्चात अपनी राय कायम की।

मेरी समझ यही कहती है कि इन गंभीर कमियों के साथ यदि ये बिल पास हुआ तो इसका दुरुपयोग बिलकुल वैसे होगा जैसे हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत घरेलू हिंसा और दहेज हत्या से संबन्धित कानून का होता है। ये बिल ना केवल मुसलमान पुरुषों से तलाक़ मांगने का अधिकार छीनता है बल्कि मुसलमान महिलाओं के लिए बिना तलाक़ कहे जाने पर भी असुरक्षा को और बढ़ा देता है। यदि सत्ता सरकार महिलाओं की सुरक्षा के लिए इतनी ही कटिबद्ध और चिंतित है तो इस बिल में आवश्यक परिवर्तन कर इसे सभी भारतीय महिलाओं के लिए लागू किया जाना चाहिए केवल समुदाय विशेष की महिलाओं के लिए नहीं।

मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

भगवान के नाम पर एक वोट देदे बाबा


क्या आपको मोदी जी डरे हुए प्रतीत होते हैं? अगर आप मोदी भक्त हैं तो नहीं होते होंगे और अगर आप कॉंग्रेस समर्थक हैं तो मोदी जी आपको भयभीत अवश्य मालूम पड़ते होंगे। यदि आप इन दोनों श्रेणियों में नहीं आते और मात्र एक जागरूक मतदाता हैं तो आपको इस चुनाव के दौरान आनंद बहुत आ रहा होगा। अब आप जानना चाहते होंगे कि मैं किस श्रेणी में आती हूँ। मुझे अक्सर लोग देश द्रोही और कॉंग्रेस का गुलाम कह कर बुलाते हैं। तो स्पष्ट है मैं कॉंग्रेस समर्थक हूँ। पर उन लोगों को ये नहीं पता कि मैं एक जागरूक मतदाता भी हूँ। कॉंग्रेस को मेरा समर्थन देना ये बिलकुल नहीं दर्शाता कि मैं कॉंग्रेस की गलत नीतियों या भ्रष्टाचार पर उसका बचाव करूँ। मुझे सत्ता सरकार से उचित प्रश्न करने आते हैं और सत्य बोलने में मुझे भय नहीं लगता। फिर वो चाहे भाजपा हो या कॉंग्रेस। जब मैं अपना मत देने जाती हूँ तो मेरे चित्त में पार्टी, धर्म, जाति, रंग-रूप जैसा कुछ भी नहीं होता। होता है तो बस आंकलन कि मेरे क्षेत्र के लिए कौन सा उम्मीदवार समर्पित रहेगा। केंद्र सरकार में कौन सी सरकार बनेगी हम पहले से तय नही कर सकते। ना ही हम प्रधानमंत्री चुनते हैं तो फिर अपना मत अपने क्षेत्र के लिए ही दीजिये।

अब बात करते हैं कि मैंने ये क्यूँ कहा कि मोदी जी डरे हुए हैं। असल में मात्र मोदी जी ही नहीं उनके भक्त और पूरी भाजपा डरी हुई है। उसी का नतीजा है ये बच्चों की किताबों में उनके नाम के अध्याय, उनकी बाओपिक, वेब सीरीज़ और तो और टीवी पर आने वाले कार्यक्रमों के कलाकारों से कराई जाने वाली वोट अपील। कितना सेल्फ ओब्सेस्स्ड प्रधानमंत्री पाया है हमने वो भी भारत के इतिहास में पहली बार। मोदी जी की हर बात उनसे शुरू है और उन पर ख़त्म। बड़े-बड़े होर्डिंग्स, पूरे समाचार पत्र में उनकी विशाल तस्वीरें, प्रचार की अति। यहाँ तक कि भाजपा के मेनिफेस्टो 2019 में भी केवल मोदी जी ही मोदी जी हैं। अपने आगे वो अपने सहयोगियों की भी नहीं सुनते। 2014 के बाद से एक भी प्रेस कोन्फ्रेंस करना उन्हें आवश्यक नहीं लगा। साफ है वो किसी को कोई उत्तर नहीं देना चाहते क्यूंकी वो डरते हैं उन प्रश्नों से जिनके वो उत्तर देने में असमर्थ हैं। यहाँ तक कि अपना मेनिफेस्टो निकालने के बाद भी उन्होने किसी भी प्रकार के प्रश्नों को आमंत्रित नहीं किया। अन्य पार्टियों की रैलियों या सभाओं में मोदी-मोदी के नारे लगवाने के लिए लोग किराए पर भेजे जाते हैं जिससे जनता कुछ और सुन ही ना पाये। यहाँ तक कि ये प्रचार का सिलसिला विदेशों में भी चालू है। फ्लैश मोब्स के माध्यम से नमो का प्रचार हो रहा है। अब क्या विदेशी भी भारत में वोट देने आएंगे? आज हद तब हो गई जब मोदी जी ने वायु सेना और सी.आर.पी.एफ. के जवानों के नाम पर वोट अपील की। अभी तक तो ये राम लला तक ही सीमित थे। इधर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने सपा-बसपा के अली तो हमारे बजरंगबली का नारा दे दिया। फिर वही हिन्दू मुस्लिम कार्ड। ऊपरवाला भी परेशान होगा कि कहाँ और किसकी कन्वेसिंग करे।

ऊपर से झूठ की दुकान। 2014 के पहले से ही इनके झूठ आरंभ हो गए थे। जो अब चरम पर हैं। पिछले पाँच सालों से बस हम ये झूठ ही सुनते आ रहे हैं। भारत के राजनीतिक इतिहास में ये पहला प्रधानमंत्री है जिसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित नेहरू, जो असल में इस संसार में हैं भी नहीं, ने पूरे पाँच साल काम नहीं करने दिया। मोदी जी अपनी प्रत्येक विफलता का ठीकरा नेहरू जी और इन्दिरा जी पर फोड़ते आए हैं। आज ही एक चुनावी भाषण में कह रहे थे, “पाकिस्तान बनाने में नेहरू जिम्मेदार थे।“ अब क्या करूँ जिनकी शैक्षिक योग्यता का कुछ अता-पता नहीं उनसे इतिहास की जानकारी रखने की क्या अपेक्षा करूँ। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान बनाने के पीछे विंस्टन चर्चिल और मोहम्मद अली जिन्ना का हांथ था। ये अचानक सन 1947 में नहीं हुआ था। पाकिस्तान की रूपरेखा 1945 में ही बना ली गयी थी। चर्चिल ने जिन्ना के अलग देश चाहने के स्वार्थ और लालच को हथियार बना कर पहले ही ये सुनिश्चित कर दिया था कि जब अंग्रेज़ भारत छोड़ेंगे तो उसके टुकड़े कर के ही जाएंगे। पाकिस्तान का वो नक्शा जिसने सरहद का निर्माण किया वो असल में 1945 में ही बना लिया गया था। सत्य यही है कि पंडित नेहरू और गांधी जी बिलकुल भी इस बटवारे के समर्थन में नहीं थे और उन्होने अपनी पूरी क्षमता लगाई थी इस बटवारे को रोकने के लिए। पर जिन्ना का स्वार्थ बहुत बड़ा था और हिंदुस्तान की अपनी विविधता और सांस्कृतिक आधारशिला को बचाने के लिए ही इस बटवारे को स्वीकारा गया। ऐसा बिलकुल नहीं था कि जिन्ना हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। वो असल में एक अलग मुल्क चाहते थे जहां सिर्फ मुसलमान हों। वो भी एक सेल्फ ओब्सेस्स्ड व्यक्ति था।

मोदी जी सरदार पटेल, शास्त्री जी, सुभाष चन्द्र बोस इत्यादि लगभग सभी के संबंध में भ्रांतियाँ फैलाते आए हैं। उन्हें कोई मतलब नहीं है सत्य से, इतिहास से। वो इतिहास बदल कर बस घृणा की रजीनीति करते हैं। जो उनके विरुद्ध बोले, सरकार से सवाल करे, वो देशद्रोही। कन्हैय्या कुमार पर देश द्रोह का इल्ज़ाम है। उसने भारत तेरे टुकड़े होंगे और पाकिस्तान ज़िंदाबाद जैसे नारे लगाए। ऐसा मैं नहीं कह रही हूँ ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक, भाजपा और मोदी जी के भक्त कहते हैं। अब मेरा सवाल ये है कि यदि ऐसा हुआ है और वो देश द्रोही है, तो वो छुट्टा कैसे घूम रहा है? चुनाव कैसे लड़ रहा है? सरकार किसकी है भाई? भाजपा की ही है ना? फिर केवल इल्ज़ाम लगा कर चीख कर चिल्ला कर क्यूँ काम चलाया जा रहा है?

अंध भक्ति की हद ये है कि सत्य और फैक्ट्स से कोई लेना देना ही नहीं है। आल्ट न्यूज़ और अन्य फ़ैक्ट चेक माध्यमों से कई महीनों पहले ही ये सिद्ध हो चुका है कि असल में जेएनयू में देश द्रोही नारे ए.बी.वी.पी. के कार्यकर्ताओं ने लगाए थे। अब मुझे ये बताने की अवश्यकता ही नहीं है कि ये ए.बी.वी.पी. किसकी पार्टी है। साथ ही ये भी सत्य सामने आ चुका है कि ज़ी न्यूज़ और रिपब्लिक ने उन वीडियोज़ को मोर्फ कर के यानी उनके साथ छेड़-छाड़ कर के टीवी पर प्रसारित किया था। अब ये झूठ की दुकाने मोदी जी के रहमों करम पर पल ही रही हैं। फिर भी यदि ये सब प्रमाण व्यर्थ हैं और मेरी हर बात गलत है और कन्हैय्या कुमार देश द्रोही है तो बस मुझे कोई ये बता दे कि वो जेल में क्यूँ नहीं है।

2014 से बोले गए जुमले और झूठे वादों में से कितने पूरे हुए? क्या पूरा हुआ आखिर? कौन सा भ्रष्टाचारी जेल में है? पिछले पाँच सालों में ना किसी पे कोई जांच बैठाई गयी ना ही कोई एक्शन लिया गया। माल्या, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, ललित मोदी सब श्रीमान चौकीदार की ड्यूटी के समय ही देश छोड़ कर भागे हैं। अब जब चुनाव नजदीक आया तो रोबर्ट वाड्रा पर शिकंजा कसा गया। हांथ कुछ नहीं लगा। अब कहते हैं “हमने कभी नहीं कहा कि रोबर्ट वाड्रा को जेल भेजेंगे।“ चुनाव आया तो छापेमरी आरंभ हुई। कॉंग्रेस के नेताओं के पास इतना काला और गड़ा धन है तो पिछले पाँच सालों में कुछ किया क्यूँ नहीं?

सबके खातों में 15-15 लाख आने वाले थे। अब कहते हैं “हमने कभी नहीं कहा कि 15 लाख देंगे।“ 2 करोड़ नौकरियाँ देने वाले थे। नयी नौकरियाँ तो आयी नहीं बल्कि कई आईटी कंपनियों ने बड़ी तादात में छटनी कर दी और जिनके पास रोजगार था वो भी बेरोजगार हो गए। अब रोजगार के नाम पर चाय, पान और पकोड़े बेचने की बात करते हैं। महिला सुरक्षा में पूरी तरह से फ्लॉप हुए और नए मेनिफेस्टो में महिला सुरक्षा वाले पक्ष में ही सबसे अधिक त्रुटियाँ हैं जो अर्थ का अनर्थ कर देती हैं। असल में गलती मेनिफेस्टो बनाने वाले कि नहीं बल्कि ये ही भाजपा की मानसिकता है। इनके वीर सावरकर स्त्री दमन के समर्थक थे। बाकी राम मंदिर तो इनके लिए ऐसा चुनावी मुद्दा है जो कभी विफल होता ही नहीं। मंदिर तुड़वाने वाले ही मंदिर बनवाने का झूठा आश्वासन देते रहते हैं। असल में अगर मंदिर बन गया तो इनके पास जनता को छलने के लिए फिर बचेगा ही क्या।

कितना और बेवकूफ बना सकते हैं? कितने साल और मात्र कॉंग्रेस को हर विफलता का दोष दे कर मत हासिल कर सकते हैं? माना कि कुछ सौ या कुछ हज़ार लोगों के कान और आँख सब बंद पड़े हैं। पर इन कुछ सौ और हज़ार से भारत नहीं बनता। बॉलीवुड, वैज्ञानिक, लेखक, शिक्षक हर विभाग का बुद्धिजीवी अपील कर रहा है कि वोट उसे दें जो आपको बांटे ना, जो भारत के असल मुद्दों पर फोकस कर सके, जो घृणा की राजनीति ना करता हो। अब ये आपको तय करना है कि आप अपना मत आँख और कान बंद कर के देंगे या पूर्णतः सजग हो कर।  

अनुच्छेद 370 पर सरकार का ऐतिहासिक निर्णय- मेरे विचार

आवश्यक नहीं कि हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी ही जाए और कुछ लिखा-बोला ही जाए। पर बात जब कश्मीर कि आती है तो भारत का बच्चा-बच्चा बोलता है और ...