मंगलवार, 9 अप्रैल 2019

भगवान के नाम पर एक वोट देदे बाबा


क्या आपको मोदी जी डरे हुए प्रतीत होते हैं? अगर आप मोदी भक्त हैं तो नहीं होते होंगे और अगर आप कॉंग्रेस समर्थक हैं तो मोदी जी आपको भयभीत अवश्य मालूम पड़ते होंगे। यदि आप इन दोनों श्रेणियों में नहीं आते और मात्र एक जागरूक मतदाता हैं तो आपको इस चुनाव के दौरान आनंद बहुत आ रहा होगा। अब आप जानना चाहते होंगे कि मैं किस श्रेणी में आती हूँ। मुझे अक्सर लोग देश द्रोही और कॉंग्रेस का गुलाम कह कर बुलाते हैं। तो स्पष्ट है मैं कॉंग्रेस समर्थक हूँ। पर उन लोगों को ये नहीं पता कि मैं एक जागरूक मतदाता भी हूँ। कॉंग्रेस को मेरा समर्थन देना ये बिलकुल नहीं दर्शाता कि मैं कॉंग्रेस की गलत नीतियों या भ्रष्टाचार पर उसका बचाव करूँ। मुझे सत्ता सरकार से उचित प्रश्न करने आते हैं और सत्य बोलने में मुझे भय नहीं लगता। फिर वो चाहे भाजपा हो या कॉंग्रेस। जब मैं अपना मत देने जाती हूँ तो मेरे चित्त में पार्टी, धर्म, जाति, रंग-रूप जैसा कुछ भी नहीं होता। होता है तो बस आंकलन कि मेरे क्षेत्र के लिए कौन सा उम्मीदवार समर्पित रहेगा। केंद्र सरकार में कौन सी सरकार बनेगी हम पहले से तय नही कर सकते। ना ही हम प्रधानमंत्री चुनते हैं तो फिर अपना मत अपने क्षेत्र के लिए ही दीजिये।

अब बात करते हैं कि मैंने ये क्यूँ कहा कि मोदी जी डरे हुए हैं। असल में मात्र मोदी जी ही नहीं उनके भक्त और पूरी भाजपा डरी हुई है। उसी का नतीजा है ये बच्चों की किताबों में उनके नाम के अध्याय, उनकी बाओपिक, वेब सीरीज़ और तो और टीवी पर आने वाले कार्यक्रमों के कलाकारों से कराई जाने वाली वोट अपील। कितना सेल्फ ओब्सेस्स्ड प्रधानमंत्री पाया है हमने वो भी भारत के इतिहास में पहली बार। मोदी जी की हर बात उनसे शुरू है और उन पर ख़त्म। बड़े-बड़े होर्डिंग्स, पूरे समाचार पत्र में उनकी विशाल तस्वीरें, प्रचार की अति। यहाँ तक कि भाजपा के मेनिफेस्टो 2019 में भी केवल मोदी जी ही मोदी जी हैं। अपने आगे वो अपने सहयोगियों की भी नहीं सुनते। 2014 के बाद से एक भी प्रेस कोन्फ्रेंस करना उन्हें आवश्यक नहीं लगा। साफ है वो किसी को कोई उत्तर नहीं देना चाहते क्यूंकी वो डरते हैं उन प्रश्नों से जिनके वो उत्तर देने में असमर्थ हैं। यहाँ तक कि अपना मेनिफेस्टो निकालने के बाद भी उन्होने किसी भी प्रकार के प्रश्नों को आमंत्रित नहीं किया। अन्य पार्टियों की रैलियों या सभाओं में मोदी-मोदी के नारे लगवाने के लिए लोग किराए पर भेजे जाते हैं जिससे जनता कुछ और सुन ही ना पाये। यहाँ तक कि ये प्रचार का सिलसिला विदेशों में भी चालू है। फ्लैश मोब्स के माध्यम से नमो का प्रचार हो रहा है। अब क्या विदेशी भी भारत में वोट देने आएंगे? आज हद तब हो गई जब मोदी जी ने वायु सेना और सी.आर.पी.एफ. के जवानों के नाम पर वोट अपील की। अभी तक तो ये राम लला तक ही सीमित थे। इधर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने सपा-बसपा के अली तो हमारे बजरंगबली का नारा दे दिया। फिर वही हिन्दू मुस्लिम कार्ड। ऊपरवाला भी परेशान होगा कि कहाँ और किसकी कन्वेसिंग करे।

ऊपर से झूठ की दुकान। 2014 के पहले से ही इनके झूठ आरंभ हो गए थे। जो अब चरम पर हैं। पिछले पाँच सालों से बस हम ये झूठ ही सुनते आ रहे हैं। भारत के राजनीतिक इतिहास में ये पहला प्रधानमंत्री है जिसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित नेहरू, जो असल में इस संसार में हैं भी नहीं, ने पूरे पाँच साल काम नहीं करने दिया। मोदी जी अपनी प्रत्येक विफलता का ठीकरा नेहरू जी और इन्दिरा जी पर फोड़ते आए हैं। आज ही एक चुनावी भाषण में कह रहे थे, “पाकिस्तान बनाने में नेहरू जिम्मेदार थे।“ अब क्या करूँ जिनकी शैक्षिक योग्यता का कुछ अता-पता नहीं उनसे इतिहास की जानकारी रखने की क्या अपेक्षा करूँ। इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान बनाने के पीछे विंस्टन चर्चिल और मोहम्मद अली जिन्ना का हांथ था। ये अचानक सन 1947 में नहीं हुआ था। पाकिस्तान की रूपरेखा 1945 में ही बना ली गयी थी। चर्चिल ने जिन्ना के अलग देश चाहने के स्वार्थ और लालच को हथियार बना कर पहले ही ये सुनिश्चित कर दिया था कि जब अंग्रेज़ भारत छोड़ेंगे तो उसके टुकड़े कर के ही जाएंगे। पाकिस्तान का वो नक्शा जिसने सरहद का निर्माण किया वो असल में 1945 में ही बना लिया गया था। सत्य यही है कि पंडित नेहरू और गांधी जी बिलकुल भी इस बटवारे के समर्थन में नहीं थे और उन्होने अपनी पूरी क्षमता लगाई थी इस बटवारे को रोकने के लिए। पर जिन्ना का स्वार्थ बहुत बड़ा था और हिंदुस्तान की अपनी विविधता और सांस्कृतिक आधारशिला को बचाने के लिए ही इस बटवारे को स्वीकारा गया। ऐसा बिलकुल नहीं था कि जिन्ना हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री बनना चाहते थे। वो असल में एक अलग मुल्क चाहते थे जहां सिर्फ मुसलमान हों। वो भी एक सेल्फ ओब्सेस्स्ड व्यक्ति था।

मोदी जी सरदार पटेल, शास्त्री जी, सुभाष चन्द्र बोस इत्यादि लगभग सभी के संबंध में भ्रांतियाँ फैलाते आए हैं। उन्हें कोई मतलब नहीं है सत्य से, इतिहास से। वो इतिहास बदल कर बस घृणा की रजीनीति करते हैं। जो उनके विरुद्ध बोले, सरकार से सवाल करे, वो देशद्रोही। कन्हैय्या कुमार पर देश द्रोह का इल्ज़ाम है। उसने भारत तेरे टुकड़े होंगे और पाकिस्तान ज़िंदाबाद जैसे नारे लगाए। ऐसा मैं नहीं कह रही हूँ ज़ी न्यूज़, रिपब्लिक, भाजपा और मोदी जी के भक्त कहते हैं। अब मेरा सवाल ये है कि यदि ऐसा हुआ है और वो देश द्रोही है, तो वो छुट्टा कैसे घूम रहा है? चुनाव कैसे लड़ रहा है? सरकार किसकी है भाई? भाजपा की ही है ना? फिर केवल इल्ज़ाम लगा कर चीख कर चिल्ला कर क्यूँ काम चलाया जा रहा है?

अंध भक्ति की हद ये है कि सत्य और फैक्ट्स से कोई लेना देना ही नहीं है। आल्ट न्यूज़ और अन्य फ़ैक्ट चेक माध्यमों से कई महीनों पहले ही ये सिद्ध हो चुका है कि असल में जेएनयू में देश द्रोही नारे ए.बी.वी.पी. के कार्यकर्ताओं ने लगाए थे। अब मुझे ये बताने की अवश्यकता ही नहीं है कि ये ए.बी.वी.पी. किसकी पार्टी है। साथ ही ये भी सत्य सामने आ चुका है कि ज़ी न्यूज़ और रिपब्लिक ने उन वीडियोज़ को मोर्फ कर के यानी उनके साथ छेड़-छाड़ कर के टीवी पर प्रसारित किया था। अब ये झूठ की दुकाने मोदी जी के रहमों करम पर पल ही रही हैं। फिर भी यदि ये सब प्रमाण व्यर्थ हैं और मेरी हर बात गलत है और कन्हैय्या कुमार देश द्रोही है तो बस मुझे कोई ये बता दे कि वो जेल में क्यूँ नहीं है।

2014 से बोले गए जुमले और झूठे वादों में से कितने पूरे हुए? क्या पूरा हुआ आखिर? कौन सा भ्रष्टाचारी जेल में है? पिछले पाँच सालों में ना किसी पे कोई जांच बैठाई गयी ना ही कोई एक्शन लिया गया। माल्या, मेहुल चौकसी, नीरव मोदी, ललित मोदी सब श्रीमान चौकीदार की ड्यूटी के समय ही देश छोड़ कर भागे हैं। अब जब चुनाव नजदीक आया तो रोबर्ट वाड्रा पर शिकंजा कसा गया। हांथ कुछ नहीं लगा। अब कहते हैं “हमने कभी नहीं कहा कि रोबर्ट वाड्रा को जेल भेजेंगे।“ चुनाव आया तो छापेमरी आरंभ हुई। कॉंग्रेस के नेताओं के पास इतना काला और गड़ा धन है तो पिछले पाँच सालों में कुछ किया क्यूँ नहीं?

सबके खातों में 15-15 लाख आने वाले थे। अब कहते हैं “हमने कभी नहीं कहा कि 15 लाख देंगे।“ 2 करोड़ नौकरियाँ देने वाले थे। नयी नौकरियाँ तो आयी नहीं बल्कि कई आईटी कंपनियों ने बड़ी तादात में छटनी कर दी और जिनके पास रोजगार था वो भी बेरोजगार हो गए। अब रोजगार के नाम पर चाय, पान और पकोड़े बेचने की बात करते हैं। महिला सुरक्षा में पूरी तरह से फ्लॉप हुए और नए मेनिफेस्टो में महिला सुरक्षा वाले पक्ष में ही सबसे अधिक त्रुटियाँ हैं जो अर्थ का अनर्थ कर देती हैं। असल में गलती मेनिफेस्टो बनाने वाले कि नहीं बल्कि ये ही भाजपा की मानसिकता है। इनके वीर सावरकर स्त्री दमन के समर्थक थे। बाकी राम मंदिर तो इनके लिए ऐसा चुनावी मुद्दा है जो कभी विफल होता ही नहीं। मंदिर तुड़वाने वाले ही मंदिर बनवाने का झूठा आश्वासन देते रहते हैं। असल में अगर मंदिर बन गया तो इनके पास जनता को छलने के लिए फिर बचेगा ही क्या।

कितना और बेवकूफ बना सकते हैं? कितने साल और मात्र कॉंग्रेस को हर विफलता का दोष दे कर मत हासिल कर सकते हैं? माना कि कुछ सौ या कुछ हज़ार लोगों के कान और आँख सब बंद पड़े हैं। पर इन कुछ सौ और हज़ार से भारत नहीं बनता। बॉलीवुड, वैज्ञानिक, लेखक, शिक्षक हर विभाग का बुद्धिजीवी अपील कर रहा है कि वोट उसे दें जो आपको बांटे ना, जो भारत के असल मुद्दों पर फोकस कर सके, जो घृणा की राजनीति ना करता हो। अब ये आपको तय करना है कि आप अपना मत आँख और कान बंद कर के देंगे या पूर्णतः सजग हो कर।  

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