शुक्रवार, 28 जून 2019

जल संकट: अंधी जनता-अंधी सरकार


अगर मैं आपसे पूछूं कि वर्तमान में भारत कौन से सबसे बड़े संकट से गुज़र रहा है? तो कोई कहेगा राष्ट्रवाद’, कोई कह सकता है धर्मांधता’, कोई अराजकता और सामाजिक अस्थिरता भी कह सकता है। फिलहाल संकट एक नहीं कई हैं पर इन सबसे ऊपर गंभीर और भयावह संकट है जल संकट। इस समय भारत भयंकर जल संकट से दो-चार हो रहा है जिसके कारण पीने के साफ पानी की किल्लत बहुत तेज़ी से एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में बढ़ रही है। इससे भी भयंकर तथ्य ये है कि ना केवल सरकार बल्कि जनता ने भी इस संकट की ओर पीठ फेर रखी है।

मैं फ़र्रुखाबाद उत्तर प्रदेश की निवासी हूँ। यहाँ गंगा भी हैं और राम गंगा भी। गंगा नदी पर बना हुआ पुल कुल 1.1 किलोमीटर लंबा है। आप अंदाज़ा लगा लीजिये नदी का फाट कितना बड़ा होगा। 3 वर्ष पहले तक यहाँ हर मानसून में बाढ़ आती थी। सबसे ज़्यादा नुकसान राम गंगा करती थी। निचले इलाकों में कटान होने से ना केवल वहाँ रहने वालों के घर डूब जाते थे बल्कि फसल भी बर्बाद होती थी। फ़र्रुखाबाद-बरेली हाईवे पर सड़क के ऊपर से पानी बहता था जिससे परिवहन में भी बहुत समस्याएँ आती थीं और उस रास्ते पर निकलना खतरनाक हो जाता था। गंगा नदी में बाढ़ तब ही आती है जब नरोरा बांध से पानी छोड़ा जाता है। पिछले 3 साल से हालात ये हैं कि राम गंगा काफी हद तक सिकुड़ गईं है। बारिश भी अब उतनी नहीं होती। गंगा नदी के पास रहने पर भी ये नहीं पता कि किस दिन हम जल संकट का सामना कर रहे होंगे।

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार इस समय भारत की 60 करोड़ जनता पीने के साफ पानी की किल्लत यानि जल संकट से गुज़र रही है। अगले वर्ष तक देश के 21 शहर यानी 10 करोड़ लोग इस संकट का सामना करेंगे। 2030 तक देश की 40% आबादी के पास पानी नहीं होगा। अब तो सरकार भी मानती है कि हमारे देश में 70% पानी प्रदूषित है। प्रदूषित पानी की 122 देशों की सूची में हम 120 वें नंबर पर हैं। प्रति वर्ष 2 लाख यानी लगभग 550 लोग प्रति दिन प्रदूषित पानी पीने के कारण मर जाते हैं।

वो दिन दूर नहीं जब हम ज़ीरो डे देखेंगे। पिछले वर्ष दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में ज़ीरो डे हुआ जब सरकार ने पानी की सप्लाई बंद कर दी। ऐसे ही हमारी सरकार के पास भी किसी दिन पानी देने को बचेगा ही नहीं। संसार भर की आबादी में से कुल 16% आबादी भारत में है आर हमारे पास पीने के साफ पानी की कुल मात्रा मात्र 4% है। समस्या वाली बात ये भी है कि इस संकट से संबन्धित पूरी जानकारी हमें मीडिया से भी नहीं मिलती। चेन्नई पिछले 3 वर्षों से लगातार सूखे की मार झेल रहा है। ना तो वहाँ के अस्पतालों में पानी है। यहाँ तक कि आई.टी. सेक्टर ने भी अपने कर्मचारियों को घर से ही काम करने के लिए कह दिया है क्यूंकी वो ऑफिस में टॉइलेट के लिए और पीने के पानी की व्यवस्था नहीं कर सकता। पिछले वर्ष तक चेन्नई में पानी का एक टैंकर 1500 रुपये तक का था। वही टैंकर इस वर्ष 6000 रुपये में बिक रहा है। एक परिवार के लिए अमूमन महीने भर का खर्चा 12,000 रुपये हो जाता है। सोचिए निचले वर्ग का व्यक्ति वहाँ कैसे जीवन जी रहा होगा।

विकास के नाम पर सरकार जिस प्रकार प्रकृति और संसाधनों से खिलवाड़ कर रही है वो इस संकट और तेजी से बढ़ा रहा है। चेन्नई में 30,000 के आस-पास तालाब हुआ करते थे। जिन्हें भर कर वहाँ प्लॉट काट दिये गए। अडियर नदी के फ़्लड बेसिन (वो जगह जहां बाढ़ के बाद नदी ढल जाती है) पर हवाईअड्डा बना दिया गया। पटना में जहां एम्स बन रहा है पहले वहाँ 35 एकड़ में एक झील हुआ करती थी। जब की बिहार भारत के उन राज्यों में से एक राज्य है जहां पीने के साफ पानी की उपलब्धता मात्र 0.5% है। बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट के लिए महाराष्ट्र में 54 हज़ार पेड़ काटे जाएंगे। इससे पहले झारखंड में अडानी के पावर प्रोजेक्ट के लिए एक पूरा घना जंगल साफ कर दिया गया।    

चेन्नई में इस जल संकट के चलते 1 व्यक्ति की हत्या हो चुकी है। राजास्थान में लोग पानी चोरी के डर से अपने पानी की टंकियों पर ताले डाल के रखते हैं। मध्य प्रदेश में तो पानी के टैंकरों की सुरक्षा के लिए पुलिस बल लगाना पड़ा, वहाँ लोगों ने टैंकर चालक की ही पिटाई कर दी। झारखंड में एक व्यक्ति ने पानी की लड़ाई में 6 लोगों को चाकू से गोद डाला। उत्तर प्रदेश के 5 ग्रामों ने लोक सभा चुनाव का बहिष्कार भी किया था क्यूंकी उनके हिसाब से सरकार उनकी पानी की समस्या का कोई समाधान नहीं कर रही।

हम लगातार प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं। अपनी मनमर्ज़ी करते हुए लगातार पेड़ काट रहे हैं, तालाबों पर घर बना रहे हैं। झीलें, नदियां, नहर सूख रही हैं और हमें फिक्र नहीं हो रही। जहां-जहां सबमर्सिबल लगे हैं वहाँ पानी की खूब बर्बादी होती है। गाड़ी तो बड़ी चीज़ है, मैं यहाँ अपने ही पड़ोस में लोगों को सबमर्सिबल के मोटे से पाइप से साइकल भी धोते हुए देखती हूँ। सुबह-शाम लोग सड़क पर ढेरों लीटर पानी फैला कर बर्बाद करते हैं। सप्लाई से आने वाले पानी के असंख्य नल खुले ही पड़े रहते हैं। पानी बहता रहता है। अक्सर सड़कों पर पाइपलइन टूटी दिख जाती हैं और मर्रम्मत के लिए कोई नहीं आता।

अब देखिये सरकार का इस जल संकट के प्रति रवैय्या क्या है:

1. तमिलनाडु में एआईडीएमके के मंत्री जी ये मानते हैं कि जल संकट जैसा कुछ नहीं और ये एक बनाई हुई खबर है। उसके कुछ दिन बाद ये ही मंत्री जी बारिश के लिए पूजा और हवन करने बैठ जाते हैं।

2. जल शक्ति मंत्री गंजेन्द्र शेखावत कहते हैं कि ये मीडिया का प्रोपोगैंडा है।

3. बिहार में पीने के साफ पानी की कमी और एन्सिफिलाइटिस से हो रही बच्चों की मौतों के विरोध में 40 प्रदर्शनकारियों पर उल्टा एफ.आई.आर. दर्ज कर ली गयी।

4. माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र दामोदर मोदी जी स्वयं ये मानते हैं कि क्लाइमेट चेंज जैसा कुछ नहीं हो रहा है, हम बूढ़े हो रहे हैं।

कोई माने या ना माने। सर्दियाँ ज़्यादा ठंडी हो रहीं है, गर्मीयाँ बहुत गर्म हो रही हैं, बारिश अब उतनी और वैसे नहीं होती। क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग तो है ही। प्रकृति से खिलवाड़ हम केदारनाथ त्रासदी के रूप में देख ही चुके हैं। ऐसा बिलकुल नहीं कि वो दोबारा घटित नहीं होगा। हिमालय के ग्लेशियर्स बहुत तेजी से पिघल रहे हैं। गंगोत्री के ऊपर गौमुख ग्लेशियर की चर्चा सदेव होती है। वहाँ का तापमान भी बढ़ने लगा है। पर अभी किसी का ध्यान यमुनोत्री के ऊपर ग्लेशियर की तरफ आकर्षित नहीं हुआ। यमुना नदी के उदगम के बारे में वही लोग जानते हैं जो स्वयं जानना चाहते हैं। मैं आपको सचेत कर दूँ कि गंगा ने जब भी अपना विकराल रूप दिखाया और जितनी तबाही फैलाई वो यमुना के मुक़ाबले बहुत कम ही थी। ग्लेशियर्स यूं ही तेजी से पिछलते रहे और जिस दिन यमुना कभी अपने विकराल रूप में आ गईं उस दिन ये बर्बादी 3 गुना अधिक होगी।

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