मंगलवार, 6 नवंबर 2018

मी टू



पिछले कुछ समय से ये शब्द या कहूँ हैश टैग #MeToo बहुत प्रचलन में है। इसकी शुरुआत भले ही हॉलीवुड से हुई पर अब भारत में भी इस एक छोटे से शब्द ने महिलाओं को उनकी दबी हुई आवाज़ वापस दे दी है। इस हैश टैग के माध्यम से महिलायें उन पर हुए यौन शोषण या छेड़-छाड़ का ना केवल ज़िक्र करती हैं बल्कि इस एक शब्द ने उन्हें शोषण के खिलाफ बोलने और उन शोषकों का नाम लेने की भी हिम्मत दी है। मी टू के कारण हमें हॉलीवुड, बॉलीवुड और कई अन्य क्षेत्रों के असली चेहरे और हकीकत का पता चल पाया है।

कुछ ही समय पहले तनुश्री दत्ता, सुगंधा और अन्य कई अभिनेत्रियों/महिला पत्रकारों आदि ने अपने साथ घटी उन दुर्घटनाओं/शोषण का ब्योरा खुल कर दिया जो 8,10, 12 या 15 साल पहले हुआ था। जिनमें बड़े-बड़े दिग्गजों के नाम घेरे में आए। नाना पाटेकर, आलोक नाथ, अन्नु मलिक आदि। इसके अलावा कई एक नेता और मंत्री भी लपेटे में आए। ये सभी नाम न  केवल उम्रदराज़ और नामचीन व्यक्तियों के हैं बल्कि आज के समय में उनकी पहचान भारत के सम्मानीय लोगों में से है। अब जब कोई महिला चाहे वो कोई नयी-पुरानी सेलेब्रिटी हो या साधारण, ऐसे पुरुषों पर अतीत में हुए यौन शोषण का या छेड़-छाड़ का आरोप लगाती है तो सबसे पहले उस महिला की मंशा पर सवाल उठाए जाते हैं। इससे पहले कि मैं इस पर आगे कुछ कहूँ मैं आज पहले अपने बारे में बताना चाहुंगी।

केवल भारत ही नहीं पूरे संसार में शायद ही कोई ऐसी बच्ची, युवती, प्रौढ़ महिला या वृद्धा हो जिसने कभी भी किसी प्रकार का शारीरक शोषण ना झेला हो। मैं 11 वर्ष की थी जब प्रथम बार मैंने एक अजनबी और वीभत्स स्पर्श का सामना किया था। बहुत छोटी थी मैं, ठीक से कुछ याद नहीं कि बस में कहाँ से कहाँ के लिए सफर कर रही थी अपने माता-पिता के साथ। काले रंग की फ्रॉक पहन रखी थी। बस में डीज़ल की बदबू से मुझे बहुत उल्टियाँ होती थी। लंबा सफर था हालत मेरी ख़राब थी क्यूंकी बस का सफर मुझे बिलकुल पसंद नहीं था। एक बस से उतर के दूसरी बस पकड़नी थी। बस में बहुत भीड़ थी शायद कोई त्योहार का समय रहा होगा। जैसे ही बस रुकी और भीड़ में धक्का खाते हुए उतरने का मौका आया, मैं मम्मी-पापा के पीछे रह गयी और वो पहले उतर गए। दिल वैसे ही सहम गया था, इस पर पीछे से लंबी उँगलियों वाले दो बड़े-बड़े हांथों ने मेरे शरीर के उन उभारों को जकड़ लिया जो ठीक से उभरे भी नहीं थे। मैंने उन हांथों को खुद से अलग करने की भरपूर कोशिश की, फिर वो हांथ मेरे शरीर पर रेंगते हुए नीचे तक पहुँच गए। कुछ क्षणों के उस गंदे एहसास को मैं आज 23 साल बाद भी अपने मस्तिष्क से निकाल नहीं पायी हूँ। कैसे मुश्किल से मैंने उन बड़े हांथों को अपने शरीर से अलग करने के लिए अपने छोटे-छोटे नाख़ुन उस आदमी को चुभाने की कोशिश की थी। कितनी मुश्किलों से मैं उस बस से उतर पायी थी। मैंने उस आदमी का चेहरा नहीं देखा, वो ये सब कर के भीड़ में कहीं खो गया था। बस से जैसे-तैसे उतर के मैं अपनी माँ को भी कुछ नहीं बता पायी थी। दौड़ कर हम दूसरी बस में बैठ गए थे। ये बात मैं आज कैसे लिख रही हूँ मुझे नहीं पता।

दूसरी बार मेरी उम्र 12 वर्ष थी और इस बार कोई अजनबी नहीं बल्कि मेरा ही अपना एक रिश्तेदार, घर का बुज़ुर्ग था जो मुझे हांथ लगाने के लिए बस मौके ढूँढता था। घरवालों का लगता था वो मुझ पर अपना लाड़ दिखाते हैं। पर मुझे पता था वो क्या करते थे। हर बार जब वो हमारे बीच होते तो मैं उनसे बचती ही रहती थी, सदा इस प्रयास में रहती थी कि मैं उनके आस-पास ना रहूँ। तीसरी बार, चौथी बार, पाँचवी बार और अनगिनत बार मैंने गंदी हरकतों का सामना किया है। एक व्यक्ति के जीवन में अनगिनत रिश्ते होते हैं और हम यदि मात्र स्त्रियों की चर्चा करें और उनके पुरुष संबंधियों की तो पिता, ताऊ, चाचा, मामा, मौसा, भाई, जीजा, चचेरा-मौसेरा-ममेरा-फुफेरा भाई/मौसा/मामा//ताऊ/चाचा, मित्र, शिक्षक और डॉक्टर आदि संबंध होते हैं। पिता को इस श्रेणी से अलग कर दूँ तो आज भी कहने में झिझक होती है कि ऐसे कई रिश्तों से मैं चोट खा चुकी हूँ और आज 10-20 साल बाद भी मेरे अंदर उनके नाम लेने की हिम्मत नहीं है। इसलिए नहीं कि आज उस बात का महत्त्व क्या रहा बल्कि इसलिए कि उन सम्बन्धों की मर्यादा वो भले ही नहीं निभा पाये मैं आज तक निभा रही हूँ। उनसे जुड़े अन्य सम्बन्धों को चोट पहुँचाने का मेरे अंदर साहस नहीं।

मेरी परवरिश भी वैसे ही हुई जिसमें मुझे मेरे माता-पिता या विद्यालय से किसी प्रकार की सेक्स एडुकेशन नहीं मिली। ना ही मुझे कभी मेरी माँ ने बैठाल कर ये समझाया कि अच्छा या बुरा स्पर्श क्या होता है। पर मेरी माँ ने मुझे अनुचित का विरोध करना अवश्य सिखाया था और प्रत्येक बार मैंने जब कुछ अनुचित घटते हुए महस्सुस किया तो मैंने विरोध किया फिर वो मेरे साथ हुआ हो या मेरे समक्ष किसी ओर के साथ। यही कारण है कि मैं भले ही जगत में शोर नहीं मचा पायी पर खुद को बचाती ज़रूर रही। मुझे याद है मैं 10th में थी जब मेरे पड़ोस में रहने वाली मेरी एक सहेली जो उस समय बी.ए. (हिन्दी मीडियम में के.जी. 1 और 2 का झमेला नहीं होता और उसने कक्षा 5 से पढ़ाई शुरू की थी) में थी। वो अपने ही मामा के अत्याचार से पीड़ित थी। जब उसने मुझे अपने साथ घटने वाली गंदी हरकतों के बारे में बताया जिसे वो अपनी माँ से इस डर से नहीं कह पा रही थी कि उसकी माँ भी उसे ही गलत समझेंगी और उसकी मार पड़ेगी, तब मैंने निश्चय किया कि उसकी समस्या का समाधान मैं खुद करूंगी। तब तक मैंने अपने लिए कभी किसी से बात नहीं की थी पर उसके लिए उसकी माँ से मैंने बात करने का निश्चय किया। पर सबसे पहले मैंने उसे “ना” कहना और विरोध करना सिखाया। फिर अपनी माँ को बताया और फिर उसकी माँ को समझाया। उसकी माँ को इस कटु सत्य को स्वीकारने में बहुत तकलीफ हुई पर उन्होने उसे मारा नहीं पर डांट कर उससे कहा कि उसने खुद कभी उन्हें क्यूँ नहीं बताया। उसके बाद उसके मामा का उसके घर आना बंद हो गया पर इसके साथ ही मेरी मित्र पर भी कुछ पाबन्दियाँ लगा दी गईं। जैसे फ्रॉक छोड़ अब वो केवल सलवार-कुर्ता ही पहन सकती थी, कॉलेज के अलावा अब वो कहीं और अकेले नहीं जा सकती थी इत्यादि। शायद डर इस निर्णय का कारण था। फिर 18 की पूरी होते हुए ही उसका विवाह भी करा दिया गया। इसीलिए शायद लड़कियां कुछ भी खुल के बताने में कतराती हैं क्यूंकी फिर माँ-बाप, घरवाले डरने लगते हैं और उनके डर का नतीजा उस लड़की को ही झेलना पड़ता है।

अब वापस आते हैं #मीटू पर। तनुश्री दत्ता, सुगंधा और अन्य अभिनेत्रियों/महिलाओं के द्वारा उन पर हुए शोषण के 10,12 या 20 साल बाद ज़िक्र करने के बाद विभिन्न प्रतिक्रियाएँ सामने आयीं। कुछ उनके पक्ष में, कुछ उनके विरोध में, बहुत सों को कोई फर्क ही नहीं पड़ा। पर कुछ ऐसे भी थे जिनकी प्रतिक्रिया केवल तब आई जब भाजपा नेता एम.जे.अकबर का नाम भी इस घेरे में आया। पिछले 4 वर्षों में भारत का माहौल ही कुछ ऐसा हो गया है कि आप ना तो सरकार की आलोचना कर सकते हैं ना ही सरकार से संबन्धित किसी भी व्यक्ति को उसकी गलती के लिए गलत कह सकते हैं। क्यूंकी इस समय राजनीतिक अंधता के चलते पढे-लिखे बुद्धिजीवी भी मानवता और मर्यादा के सारे स्तरों से नीचे गिरे पड़े हैं। संसार में सरल से सरलतम कार्य है किसी का चरित्र विश्लेषण और फिर हनन करना और फिर बात यहाँ किसी स्त्री की हो तो ये तो किसी के भी बाएँ हांथ का खेल है। खासतौर से भारत में जहां स्त्री को समय और उपयोगिता के हिसाब से उपाधियाँ दी जाती हैं। जब जैसी आवश्यकता वैसा रूप। नव दुर्गा और दिवाली पर देवी बना के पूजा कर लो, जब त्याग की अपेक्षा हो तो ममता और त्याग की मूर्ति बना दो, भोगना हो तो पत्नी-प्रेमिका या वैश्या बना कर भोग लो, सहारा चाहिए हो तो माँ, बहन या पत्नी की गोद में सिर रख लो और जब कोई अवश्यकता ना हो तो कुलटा, कुलक्षिणी, चरित्रहीन और परित्यक्ता कह कर संबोधित करो और बहिष्कार कर दो। इसी के चलते कुछ घटिया प्रतिक्रियाएँ प्रत्यक्ष हुईं जहां नामचीन और उम्रदराज़ शोषकों का बचाव करने के लिए उन शोषित महिलाओं का चरित्र विश्लेषण करते हुए चरित्र हनन किया गया।

कोई माने या ना माने या आज मेरा अनुभव पढ़ के कोई मेरे चरित्र का विश्लेषण करे पर किसी भी बच्ची, महिला के साथ हुआ किसी भी प्रकार का शारीरिक शोषण उसके लिए कह पाना आसान नहीं होता तो अगर उन महिलाओं ने अनेकानेक वर्ष बाद भी अपनी पीड़ा को बयान किया है और दोषियों का नाम लेने का साहस दिखाया है तो हमें उनके साहस को ना केवल नमन करना चाहिए बल्कि उनका उत्साहवर्धन भी करना चाहिए जिससे कि आगे इस प्रकार की किसी भी घटना को कोई भी महिला उचित समय पर कह पाये और उसके दोषियों का उचित दंड मिले। महिला-पुरुष समानता का अर्थ केवल पुरुष के समान सारे कार्य करना नहीं है। प्लेन उड़ाना, ट्रेन चलना, देर रात तक ऑफिस में काम करना, हर क्षेत्र में कार्यरत हो कर अपना वर्चस्व स्थापित करना स्त्री के लिए समानता नहीं है। समानता का भाव तब आएगा जब स्त्री को स्त्री ही रहने दो। ना देवी बनाओ ना भोग्या, ना सहारा दो ना परित्याग करो, ना सहारा मांगो ना सहारा बनो, ना गुणवंती कहो ना चरित्रहीन। जैसे पुरुष सदैव बस पुरुष है स्त्री को भी बस स्त्री रहने दो। इंसान है इंसान ही रहने दो। बाकी संसार में जैसे पुरुष अपने कर्म करता है, उत्तरदायित्व निभाता है, जीवन निर्वाह करता था वैसे स्त्री भी करती ही रहेगी। जब पुरुष से कोई अतिरिक्त आशाएँ-अपेक्षाएँ नहीं तो स्त्री से क्यूँ?
   

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018

अवचेतन मन की शक्ति


भाग 2

डॉ. मर्फ़ी के अनुसार स्वस्थ रहना सामान्य बात है और अस्वस्थता असामान्य। इसी तरह धन की उपलब्धता सामान्य और अभाव असामान्य है। इस प्रकार की सभी बातें हमारे मस्तिष्क से जुड़ी हैं। हमारे मनोभावों से। हम अपनी परिस्थितियों में खुद को इतना समा लेते हैं कि अपने विचार और मनोभाव भी उसी रंग में रंग लेते हैं। जिस कारण हम अपने अवचेतन मन को लगातार अनुचित संदेश पहुँचाते रहते हैं। परिणामतः अस्वस्थता या धन अभाव और गहराता जाता है।

यकीन मानिए हमारे अवचेतन मन में कुछ इस प्रकार क्षमता है कि यदि आप चाहें तो अपनी प्रत्येक समस्या का समाधान स्वयं ही कर सकते हैं। करना बस इतना है कि अपने आपको सकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत रखना है और अपने जीवन में खुशियों की कल्पना सदैव करते रहना है। जब भी आप सोने चलें तो बस अपने मन में उस बात की कल्पना कीजिये जो आप चाहते हैं, जैसे धन, स्वास्थ्य, मानसिक प्रसन्नता, शादी, किसी समस्या का समाधान या फिर कोई कठिन निर्णय। कल्पना कीजिये कि आपको वो मिल गया है जो आप चाहते हैं, और आप उसे पा कर अत्यंत प्रसन्न हैं। मान लीजिये आपको ऑफिस से छुट्टी नहीं मिल रही और आप एक लंबे समय से कहीं बाहर घूमने जाना चाहते हैं। तो बस प्रत्येक रात्री आपको सोने से ठीक पहले अपने मन को शांत रखते हुए इस विचार को जीवंत करना है कि आप उस जगह घूम रहे हैं, अपने कपड़ों का रंग, मौसम, परिवार या किसी और का साथ, कोई खास स्थान, कोई रैस्टौरेंट, कोई झील, आपकी गाड़ी, ट्रेन या बस इत्यादि जो भी आपकी सुखद यात्रा से संबन्धित हो उसकी कल्पना प्रसन्नता के साथ कीजिये और प्रत्येक रात्री करते रहिए। हाँ! ये सही है कि आपका अन्तर्मन इस सब पर सरलता से आपको विश्वास नहीं करने देगा, पर आपको नकारात्मक विचारों से स्वयं को दूर रखते हुए अपनी इस कल्पना से प्रसन्नता हासिल करते रहनी है। जैसे ही आपका अवचेतन मन जो कभी सुप्तावस्था में नहीं जाता और सदैव कार्यरत रहता है, इस कल्पना को स्वीकार कर लेगा, आपकी इक्षा आपके समक्ष मूर्त रूप लेगी। (इन बातों को बेहतर समझने के लिए डॉ. जोसफ मर्फ़ी की किताब The Power of Subconscious Mind अवश्य पढ़ें।

अक्सर हमने देखा सुना है कि पवित्र तीर्थों या धार्मिक स्थानों पर मूर्ति को हांथ लगाने, जल में स्नान करने या किसी के स्पर्श मात्र से लोगों के रोग-दोष दूर हो जाते हैं। कई जगह मान्यताएं हैं कि वहाँ के पवित्र जल में स्नान से त्वचा रोग नष्ट होते हैं। मेहंदीपुर बालाजी जा कर भूत बाधा उतरती है। ख्वाजा सलीम चिश्ती की दरगाह पर हर मन्नत पूरी होती है। रमन रेती में कृष्ण भक्ति में गाए हुए भजन से कृष्ण सेवा का लाभ मिलता है। ऐसा बहुत कुछ है मात्र भारत में नहीं बल्कि पूरे संसार में। श्रद्धालुओं के अनेकानेक विश्वास मौजूद हैं और ये बहुत हद तक सही भी हैं। हर किसी ने देखा होगा कहीं ना कहीं कोई चमत्कार होते हुए। ये सब आपके अन्तर्मन या अवचेतन मन की शक्ति का नतीजा है। यदि आप किसी बेजान पत्थर को भी पूरे विश्वास से छू कर ये मान लें कि आपकी बीमारी दूर हो जाएगी तो ऐसा वाकई हो जाएगा। जब भी हम किसी धार्मिक स्थल पर जाते हैं तो हमारे मन में पहले से ही ये निश्चित होता है कि यहाँ के दर्शन करने से या कुंड में स्नान करने से हमारे रोग-दोष दूर हो जाएंगे और ऐसा होता भी है। पर यदि अगर आपका मन कह दे कि ये कुंड गंदा है और इसके पानी से आपके शरीर में खुजली फैल जाएगी तो यकीन मानिए उस कुंड में चाहे ऐसा कुछ हो या नहीं पर यदि आपने उस जल का स्पर्श भी किया तो आपके शरीर में अवश्य ही खुजली फैल जाएगी।
मैं यहाँ अपने दो निजी उदाहरण प्रस्तुत करती हूँ।

1. एक लंबे समय से मैं अस्वस्थ हूँ। सत्य ये है कि मुझे कोई बीमारी है ही नहीं। फिर भी छोटी-मोटी उदर समस्याएँ मुझे गाहे-बगाहे परेशान करती रहती हैं। जीवन में प्रत्येक प्रकार के परिवर्तन करने का प्रयास किया, इलाज लिया, यहाँ तक कि भोजन भी संतुलित और प्रतिबंधित हो गया। फिर भी परिणाम उचित नहीं। अब इसके पीछे सारा खेल मेरे मस्तिष्क का है और ये मैं स्वयं समझती हूँ। मैंने लगभग ये स्वीकार लिया था कि मैं बीमार हूँ, और मुझ पर कोई दवा असर नहीं करती, मेरे सारे प्रयास विफल होते हैं। मैं जब भी किसी नए मार्ग पर अग्रसरित होने का प्रयास करती हूँ, बीमारी मुझे घेर लेती है। संयोगवश मुझे डॉ. मर्फ़ी की ये किताब पढ़ने का अवसर मिला और ये भी संयोग है कि इसी विषय से संबन्धित कुछ वीडियोज़ मुझे यूट्यूब पर अचानक से ट्रेंड करते हुए मिले। जिनहोने मेरे विश्वास को सुद्रण किया और इस विषय को समझने का अवसर दिया। अभी कुछ ही दिन हुए हैं और मैंने अपने अन्तर्मन से केवल यही पुकार लगाना आरंभ किया है कि मैं पूर्णतः स्वस्थ हूँ। मुझे कोई शारीरिक और मानसिक समस्या नहीं है। मैं सेहत, और प्रसन्नता की कामना करती हूँ। पिछले 20 दिन में जो सुधार मैंने किसी भी इलाज से नहीं देखा वो मेरे अवचेतन मन की शक्ति ने कर दिखाया। अब दवाइयाँ भी जैसे असर कर रही हैं। मैं बेहतर और बेहतर महसूस करते हुए इस लेख का दूसरा भाग आप तक सफलता से पहुंचा पा रही हूँ।

2. ना जाने कितने लोग हरिद्वार जा कर हरि की पौड़ी पर गंगा स्नान करते हैं। श्रद्धा में भाव-विभोर हो उनके भिन्न-भिन्न विचार होते होंगे। कितना ठंडा और तेज़ बहाव है वहाँ का। हम भी गए थे बहुत साल पहले। मैं अपने और अपनी बुआ जी के परिवार के साथ थी। कुल-मिलकर 7 लोग। सभी ने शाम को गंगा स्नान किया। ऐसा अकल्पनीय, अवर्णणीय, अलौकिक आनंद की प्राप्ति हुई कि क्या कहूँ। पर मात्र 6 व्यक्तियों को। बची एक मेरी माँ, जो गंगा स्नान में बिलकुल रुचि नहीं रखती। उन्हें सबके साथ मजबूरी में स्नान करना पड़ा और चूंकि बार-बार इतनी दूर आना संभव नहीं होता तो इस कारण भी उन्होने ये क्रिया कर तो ली पर उसका परिणाम अच्छा नहीं हुआ। अब ये शब्द क्रिया मैं इसीलिए प्रयोग कर रही हूँ क्यूंकी जहां बाकी सब के लिए गंगा स्नान एक आभास है मेरी माँ के लिए एक क्रिया है। कुछ ही देर में उनके सारे शरीर में खुजली फैल गयी और वो छटपटाने लगीं। जब तक धर्मशाला (जहां हम रुके थे) लौट कर उन्होने नल स्नान नहीं कर लिया उन्हें चैन नहीं पड़ा। ये सब उनके अवचेतन मन की करामात थी जो कह रहा था कि ये नहीं करना है और बेमन से किया तो उन्हें तकलीफ हुई और फिर मन ने कहा कि नल के जल दोबारा स्नान करने से खुजली से मुक्ति मिलेगी, वो उन्हें मिली।

ये बहुत छोटे और सामान्य उदाहरण हैं। पर मेरी मानिए तो इनका प्रयोग कर के देखिये। बस आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आपका अन्तर्मन आपकी की हुई इक्षा को नकारे ना, या आपको ये आभास ना कराये कि जो आप सोच रहे हैं वो संभव है ही नहीं। इस नकारत्मकता से आपको स्वयं को बचाना होगा। अन्यथा परिणाम विपरीत होंगे। सकारात्मक हो कर अपने अवचेतन मन को प्रत्येक दिन अच्छे विचारों और सुखद आकांषाओं से पोषित कीजिये। आपकी इक्षायेँ भी पूर्ण होंगी और आप प्रसन्न भी रहेंगे। ईसा मसीह की कहानियों को पढ़ें तो आप जान पाएंगे कि कैसे उनके वस्त्र के स्पर्श मात्र से लोगों के गंभीर से गंभीर रोग दूर हो जाते थे। जबकि ईसा मसीह एक साधारण मनुष्य के रूप में अवतरित हुए थे, उनके पास कोई चमत्कारिक शक्ति नहीं थी। बस अपना या अपने वस्त्र का स्पर्श देने से पहले आगंतुक से एक ही प्रश्न करते थे “क्या तुम्हें विश्वास है कि मुझे छू कर तुम स्वस्थ हो जाओगे?” जवाब हाँ में ही होता था। इस प्रकार वो उस व्यक्ति के अंतर मन में ये निश्चित कर देते थे कि वो उस क्रिया से स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करेगा।

अनुच्छेद 370 पर सरकार का ऐतिहासिक निर्णय- मेरे विचार

आवश्यक नहीं कि हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी ही जाए और कुछ लिखा-बोला ही जाए। पर बात जब कश्मीर कि आती है तो भारत का बच्चा-बच्चा बोलता है और ...