गुरुवार, 27 सितंबर 2018

अवचेतन मन की शक्ति


भाग 1

आज जिस विषय पर लिखने जा रही हूँ उस पर बहुत से विश्वास नहीं करेंगे या शायद स्वीकार ना कर पाएँ। पर फिर भी मैं आज बात करना चाहती हूँ हमारे अन्तर्मन या अन्तः चेतना के सामर्थ्य और शक्ति के विषय में। आज जिस युग में हम जी रहे हैं वो दौड़ भाग वाला युग है। प्रकृति से दूर, प्रदूषण से भरा हुआ। इसीलिए हम पर अधिकतर समय नकारात्मकता हावी रहती है। कार्यस्थल पर प्रमोशन की दौड़ में लगे रहते हैं तो सोशल मीडिया पर तर्क-वितर्क और कुतर्क करते हुए संवाद में विजय पाने की दौड़ में। जीवन एक ढर्रे में बंध गया है और इसके चलते सकारात्मक सोच और विचार हमसे कोसों दूर हो चले हैं।

वर्ष 2017 से मुझे किताबें पढ़ने का चस्का लगा। इससे पहले तक मेरे अंदर पढ़ने का शौक ना के बराबर था। कुछ चुनिन्दा लेखकों को ज़रूर पढ़ा था और बाकी साहित्य से स्नातक और परास्नातक की डिग्री की पढ़ाई में जो पढ़ना पढ़ा, बस वो ही मेरा ज्ञान था। सौभाग्य से मैंने पिछले डेढ़ वर्ष में जितनी भी पुस्तकें पढ़ीं वो एक से एक कीमती रत्न है। लेखनी आपके जीवन में किस प्रकार परिवर्तन ला सकती है इसे समझाया नहीं जा सकता केवल अनुभव कर के आभास किया जा सकता है। शुरुआत की थी मैंने एक प्रसिद्ध मनोचिकित्सक डॉ. ब्रायन वीस के प्रथम पुस्तक, “मैनी लाइव्ज़ मैनी मास्टर्स” के साथ। डॉ. वीस मुख्यतः वशीकरण (hypnotism) और पूर्व जन्म की यात्रा (past live regression) से जुड़े अपने अनुभवों के विषय में लिखते हैं जो उन्हें अपने मरीजों के इलाज के दौरान प्राप्त हुए। इसके बाद मैंने उनकी सभी 6 किताबें पढ़ डालीं। उसी दौरान मेरे बड़े भाई साहब द्वारा मुझे महान संत श्री परमहंस योगानन्द जी महाराज की आत्मकथा उपहार के रूप में मिली और उसे पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और अभी कुछ समय से मैं डॉ. जोसफ मर्फ़ी की किताब पावर ऑफ योर सबकोंशस माइंड” (Power of your Subconscious Mind) पढ़ रही हूँ। हालांकि इस अवधि में मैंने और भी कई किताबें पढ़ी पर इन्हीं तीन किताबों का वर्णन मैं इसलिए कर रही हूँ, क्यूंकी आज का विषय इन से ही संबन्धित है या इन किताबों में गहराई से समझाया गया है और इन्हें पढ़ कर अगर आप अपने जीवन में उतार सकें तो यकीन मानिए जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन हो सकते हैं।

क्या कभी आपके साथ ऐसा हुआ कि आप लगातार किसी अच्छे या बुरे विषय के बारे में सोच रहे हों और वो अदबदा के आपके सामने घट गया हो? अगर हुआ और नहीं भी हुआ तो मैं आपको बता दूँ कि ऐसा होना संभव है। संत श्री योगानन्द जी ने अरसे पहले अपनी आत्मकथा में विचारों की शक्ति के विषय में विस्तार से वर्णन किया है। उनके अनुसार हमारी सोच और विचारों में वो अदम्य शक्ति और सामर्थ्य है कि हम अपनी परिस्थितियों में परिवर्तन कर सकते हैं और वर्तमान परिस्थितियाँ हमारी विचारधारा या मानसिकता का ही परिणाम है। इसे समझने के लिए मैं योगानन्द जी की आत्मकथा का एक अंश प्रस्तुत करती हूँ:

ये संवाद योगानन्द जी और उनकी बड़ी बहन के बीच का है जब वो अपने पैर के फोड़े पर मरहम लगा रहीं थीं,
तुम निरोग हांथ पर मरहम क्यूँ लगा रहे हो?”
बात ऐसी है दीदी, मुझे लग रहा है कि कल मुझे यहाँ फोड़ा होने वाला है।
चल, झूठा कहीं का!”
दीदी, जब तक तुम कल सुबह क्या होता है यह देख नहीं लेतीं, तक तक मुझे झूठा नहीं कह सकतीं।
मैं अपनी इक्षाशक्ति के बल के साथ कहता हूँ कि कल मेरे हांथ पर इसी जगह एक काफी बड़ा फोड़ा निकल आएगा; और तुम्हारा फोड़ा सूज कर दुगना हो जाएगा।“

अगले दिन प्रातः अक्षरशः यही घटित हुआ। उस दिन योगानन्द जी कि पूज्य माता जी ने उन्हें भविष्य में कभी भी अपनी शब्द- शक्ति का हानी करने के लिए प्रयोग करने से मना किया। अब आप सोचेंगे कि मैं एक संत के विषय में चर्चा कर रही हूँ, आम मनुष्य के शब्दों या विचारों में इतनी प्रबलता कहाँ हो सकती है। बिलकुल हो सकती है क्यूंकी जिस घटना का मैंने वर्णन किया वो उस समय की है जब योगानन्द जी संत नहीं बने थे और वो एक छोटे बालक थे। अक्सर हमने प्रवचनों में भी ये अवश्य सुना होगा कि बोलने से पहले सौ बार सोचना चाहिए। अक्सर तब जब हम आवेश में अपने मुख से कुछ बुरा कहने वाले हों।

डॉ. ब्रायन वीस को पढ़िये तो उन्होने भी शब्द शक्ति और विचार शक्ति के बारे में बहुत कुछ स्पष्ट किया है। अगर किसी व्यक्ति से कह दीजिये कि वो अगले दो दिनों हृदयाघात से मर जाएगा तो यकीन मानिए वो भले ही उस बात को दरकिनार कर के आगे बढ़ जाए पर उसके अन्तर्मन में वो बात घर गयी होगी और उसे कचोटती रहेगी। दोन दिन में वो स्वतः निढाल हो जाएगा और संभव है उसकी हृदयघात से मृत्यु भी हो जाए। उसकी मृत्यु का कारण वो व्यक्ति नहीं जिसने उससे ऐसा कहा बल्कि ये स्वयं होगा क्यूंकी उसके अन्तर्मन ने ये स्वीकार कर लिया और उसके शरीर में उसी प्रकार के परिवर्तन होने लगे जो उसे हृदयघात और मृत्यु तक ले गए।

डॉ. जोसफ मर्फ़ी अपनी किताब पावर ऑफ योर सबकोंशस माइंड” (Power of your Subconscious Mind) में बताते हैं कि सुझाव (suggestion) का अर्थ होता है अपने विचारों को किसी अन्य व्यक्ति के मस्तिष्क में डाल कर उसे उसकी सोच बना देना। ये एक तरह की मानसिक क्रिया है ना कि वैचारिक। अगर आपने हौलीवुड की फिल्म 'इनसेप्शन' (Inception) देखी हो तो इस बात को बेहतर समझ पाएंगे। डॉ. मर्फ़ी कहते हैं कि हमारा मस्तिष्क एक जहाज़ (ship) की तरह है और हम उसके कप्तान (captain) और हमारा अवचेतन मन (subconscious mind) उस जहाज़ के कार्यकर्ता (crew)। कर्मचारी कप्तान के निर्देशों का पालन करते हैं तभी जहाज़ ठीक प्रकार से कार्य करता है। अब निर्भर करता है कि कप्तान अपने कर्मचारियों को किस प्रकार के संदेश या निर्देश देता है। कप्तान अगर अनुचित या उलझाने वाले निर्देश कर्मचारियों तक भेजेगा तो जहाज़ की कार्यप्रणाली ठीक काम नहीं करेगी और वो डूब भी सकता है।

इसी प्रकार हम अपने अवचेतन मन तक जो भी संदेश, निर्देश या सुझाव पहुँचाते हैं वो उसी प्रकार कार्य करता है और हमारे सामने परिणाम आते हैं......

शेष अगले अंक में......

      

बुधवार, 22 अगस्त 2018

घृणा ना बांटो शब्दों से


मैं क्यूँ लिखती हूँ? आखिर जो भी कोई लिखता है वो क्यूँ लिखता है? किस्से, कहानियाँ, विचार, आलोचना आदि आदि। क्या चलता है किसी व्यक्ति के अंदर जो उसे कलम उठा कर कागज़ पर लिख देने की ज़रूरत महसूस होती है। शायद हमारे भीतर कहने के लिए अथाह सागर है और उसे बोल के सिर्फ गिने चुने लोगों तक पहुंचा के हमें तसल्ली नहीं होती। शायद मैंने भी इसीलिए लेखन आरंभ किया। जब आपको सुनने के लिए उपयुक्त श्रोता ना हों तो पाठक बना लेने चाहिए। लिखते वक़्त हमारे मन में यदि ये आ जाए कि इसे कोई पढ़ेगा भी या नहीं? अगर पढ़ेंगे तो कितने लोग? कौन रुचि से पढ़ेगा? कौन अरुचि से बीच में ही आधा छोड़ देगा? कितने उत्साह बढ़ाएँगे या कौन आलोचना करेगा? तो शायद लेखक कभी लेखक बन ही ना पाये। लिखने वाला तो बस बिना किसी अपेक्षा के लिख देना चाहता है। अपने मन में चल रहे प्रत्येक विचार को कागज़ पर पलट देना चाहता है। इसीलिए शायद लिखते समय कोई भी इस पहलू पर विचार नहीं करता कि जो वो लिख रहा है उसका समाज पर किस प्रकार से प्रभाव पड़ेगा? क्या उसकी विचारधारा, उसके शब्द वो जिन लोगों तक पहुंचा रहा है वो उसे उसी प्रकार जज़्ब करेंगे या फिर वो उसके लिए तैयार है भी या नहीं।

लिखने के लिए व्यक्ति को बहुत कुछ पढ़ना भी पढ़ता है और आज के दौर में विरले ही कुछ अच्छा पढ़ने को मिलता है। देश के वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक माहौल पर गौर करें तो सब बस एक दूसरे को नफरत बांटने में लगे हैं। चाहे वाणी से चाहे शब्दों से। चहुं ओर बस घृणा ही घृणा है। प्रिंट मीडिया के जमाने से ऊपर उठ कर हम आज सोशल मीडिया के समंदर में तैर रहे हैं। जहां किताबें, उपन्यास, समाचार पत्र नहीं अब इंटरनेट पर e-books ओर e-articles का दौर है। मैं भी कागज़ कलम लेकर नहीं बैठी बल्कि अपने कंप्यूटर के कीबोर्ड पर अपनी उँगलियाँ चला रही हूँ और इसे ब्लॉग्स्पॉट के माध्यम से e-article/blog के रूप में प्रकाशित करूंगी।

मैं यहाँ वर्तमान लेखकों की आलोचना नहीं कर रही हूँ। ना ही सबको एक ही पलड़े में रख रही हूँ। पर हाँ, मैंने रोज़ बहुत कुछ अँग्रेजी और हिन्दी में पढ़ने के बाद ये आभास किया है कि अधिकतर लोग अपने लेखन से अपनी विभिन्न कुंठाओं को न केवल व्यक्त कर रहे हैं बल्कि पाठकों पर थोप रहे हैं। राजनीतिक कुंठा, धार्मिक कुंठा, राजनीतिक/धार्मिक अज्ञान, असभ्य भाषा और भारतीयता के विपरीत आचरण। ये सब पूरी शिद्दत से बांटा जा रहा है। मैं लिखती हूँ क्यूंकी मेरे पास जो भी थोड़ा-बहुत ज्ञान है उसे लोगों से बाँट सकूँ। मैं मेरे हृदय में बसी किसी भी प्रकार और किसी के लिए भी घृणा या असंतोष को अपनी लेखनी से व्यक्त नहीं करती। क्यूंकी वो मेरी निजी सोच या विचारधारा का प्रतिफल है और उसे लेखन के माध्यम से अन्य लोगों के मस्तिष्क में ठूसना सरासर गलत है, नैतिकता ने नाते अपराध है।

एक समय था लेखन का अर्थ था सभ्य और सदी हुई भाषा, सुंदर विचार, मोती की तरह गड़े हुए शब्द। अब जो भी पढ़िये आपको भाषा की मर्यादा तो बिलकुल नहीं मिलेगी। गाली-गलौज, असभ्य टीका-टिप्पणी सोशल मीडिया का नया ट्रेंड है। सबसे बड़ी समस्या है कि उच्च स्तरीय शिक्षित व्यक्तियों को भी आलोचना और अपमान के बीच का भेद समझ नहीं आता। नहीं समझ आता कि किसी की भी आलोचना करने के लिए शब्दकोश में शब्दों का कोई टोटा नहीं है, बल्कि आपको असल में व्यक्ति को अपमानित ही करना है। मैंने जब से लेखन आरंभ किया, जिस भी श्रेणी का हो, मैंने तय किया कि मैं अपने शब्दों से घृणा कभी नहीं बाँटूँगी, मेरी भाषा का स्तर कभी नहीं गिरेगा। किसी की आलोचना भी करनी हो तो मेरे शब्द अपनी मर्यादा कभी नहीं भूलेंगे। भारतीय संस्कृति, सभ्यता, संस्कार के नाम पर बहुत से बहुत कुछ कहते हैं। मेरा सिर्फ यही कहना है कि चाहे मेरी वाणी हो चाहे मेरे शब्द मेरी भारतीयता सदा झलकती रहेगी और जिन्हें लगता है कि वो अपने कुंठित विचारों को शब्दों में पिरो के समाज से बाँट कर समाज के प्रति कोई योगदान दे रहे हैं तो उनके लिए ये समझने का समय है कि वो नींव डाल रहे हैं अपनी आगे की पीढ़ी के लिए। जिसपे वो अपने भविष्य की इमारत खड़ी करेगी। अब निर्णय उनका है कि वो इमारत प्रेम, सहृदयता, समरसता और प्रसन्नता के ईंट गारे से बनी हो या फिर घृणा, द्वेष, मार-काट और रक्त के मिश्रण से।   

सब जानते हैं कि केरल इस समय किस भयावह आपदा से गुज़र रहा है। सिर्फ देशवासी ही नहीं विदेशों से भी सहायता के हांथ आगे बढ़े हैं। इस समय जहां केरल वासियों को भारतियों की सहायता और प्रार्थना की अवश्यकता है वहीं घृणा फैलाने वाले सहायता करने वालों से अधिक सक्रिय हैं। दिल टूट जाता है जब पढ़ने को मिलता है कि बीफ खाने वाले राज्य को सहायता मत दो, वो मरने के लायक हैं। ऐसे और बहुत सारे भद्दे वाक्य पढ़ें हैं मैंने। कैसे? आखिर कैसे लिखने वाले ये सब लिख देते हैं? क्या हमारे अंदर का दर्द, मर्म सब मर गया है। अगर आप सहायता नहीं कर सकते तो इस विपदा के समय तो कमसेकम नफरत का दौर मत चलाओ। सरकार का रुख भी केरल की तरफ बहुत गंभीर नहीं दिखा अभी तक। खैर वर्तमान सरकार की प्राथमिकताएं वैसे भी ऊंची प्रतिमाओं, गौशालाओं, विदेश यात्राओं और पार्टी प्रचार तक सीमित हैं। फिर भी मुझे पूरी आशा है कि केरल वासी शीघ्र ही इस परिस्थिति से उबरेंगे। हाँ! ये कटु सत्य है कि उनको पुनर्स्थापित होने में बहुत समय, श्रम और धन लगेगा। मैं अपने लेख के माध्यम से भारतियों से अपील करती हूँ कि जिससे जितना भी हो सके केरल के लिए दान करें और ना भी कर पाएँ तो केरल के लिए प्रार्थना करें और नफरत के सौदागरों को आड़े हांथों लें।   

सोमवार, 30 जुलाई 2018

तो Anti National हैं आप


आज के इस युग में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लैटफॉर्म्स मौजूद हैं जिसके द्वारा आप अपने विचार लोगों तक पहुंचा सकते हैं वो भी बहुत आसानी और तीव्रता से। जितना समय हमें कोई पोस्ट टाइप करने में नहीं लगता उस से आधे से भी कम समय में वो ढेरों लोगों के द्वारा पढ़ लिया जाता है। इसी के साथ फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे पोर्टल्स के माध्यम से आप लाइव जा कर भी अपनी बात लोगों के समक्ष रख सकते हैं। हालांकि मैं बहुत कैमरा कौंशस हूँ, सेलफ़ीस अपलोड करना अलग बात है पर खुद अपना विडियो रिकॉर्ड करना या लाइव जा कर सीधा इंटेरेक्शन करना अलग बात। इस कारण बड़ी हिम्मत जुटा कर कल रात मैंने फेसबुक पर लाइव जाते हुए अपनी एक रचना पोस्ट की। समय की बालिहारी कहिए या जो भी पर वो विडियो मुझे बहुत जल्दी ही डिलीट करना पड़ा। क्यूंकी मेरी बड़ी बहन जिसने वो पूरा देखा भी नहीं था उसने भड़भड़ाते हुए मुझे फोन किया और वो लाइव विडियो हटाने के लिए ज़ोर डाला। मैं वो विडियो हटाना नहीं चाहती थी पर उसकी बात का मान रखना भी ज़रूरी था। उसे डर था कि उस लाइव फुटेज को देखने के बाद मुझे ट्रोल किया जा सकता है और संभावित अपशब्दों और अभद्रता को शायद मैं सहन ना कर पाऊँ।

फिर भी मैं चाहती हूँ कि मैं उस विडियो के कंटैंट को आपसे साझा करूँ इसलिए इस लेख के माध्यम से ऐसा कर रही हूँ। मैंने एक कविता का पाठ किया था जिसका शीर्षक है “तो Anti National हैं आप”। हालांकि इस  टैग लाइन पर पहले भी काफी कुछ लिखा जा चुका है पर फिर भी मैं अपने कुछ शब्द/विचार/अनुभव आप तक पहुंचाना चाहती हूँ।
अगर आप मोदी समर्थक नहीं हैं,
तो Anti National हैं आप
अगर आप Zee News, Republic और Times Now नहीं देखते,
तो Anti National हैं आप
अगर आप Scroll, The Quint, The Wire, The Logical Indian और Dhruv Rathee जैसे लिंक्स फॉलो करते हैं,
तो शर्तिया Anti National हैं आप     
अगर आप झूठे वीडियोज़ का पर्दाफाश कर सकते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप स्वतंत्र सोच और खुले विचारों वाले व्यक्ति हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप धर्मांध नहीं हैं और धर्म पर खोज करने की क्षमता और विवेक रखते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर हर रोज़ आपको पाकिस्तान का वीज़ा मुफ़्त बांटा जाता है
तो बिना किसी शक के Anti National हैं आप
अगर आप सांप्रदायिकता के बजाए सेकुलरिस्म में यकीन रखते हैं (“Intellectuals and seculars must be shot”)
तो भाई Anti National हैं आप
अगर आप RSS की विचारधारा को नहीं मानते
तो Anti National हैं आप
अगर आप सच और झूठ में फर्क करना जानते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आपके दिमाग में गोबर की जगह ज्ञान भरा है
तो Anti National हैं आप
अगर आपके लिए गाय के साथ-साथ मानव और मानवता भी ज़रूरी है
तो Anti National हैं आप
अगर आप बलात्कारियों और भीड़ तंत्र के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप भ्रष्ट और अपराधी भाजपा नेताओं के नाम लें
तो Anti National हैं आप
अगर आप न्यूज़ रूम में हुए स्क्रिपटिड ड्रामे को सच नहीं मानते
तो Anti National हैं आप
अगर आप fact और fiction में फर्क कर सकते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप एक fictional character पर बनी किसी फिल्म का विरोध नहीं करते
तो Anti National हैं आप
अगर आप यकीन नहीं करते कि मोदी युग से पहले civilization यानी सभ्यता थी ही नहीं
तो चुल्लू भर पानी में डूब मारिए क्यूंकी Anti National हैं आप
अगर आप पिछले 70 सालों में जो हुआ और जो नहीं हुआ उस सबका ब्योरा दे सकने की क्षमता रखते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप वर्तमान सरकार की निष्फलता और निष्क्रियता का जिम्मा इतिहास में घटी किसी घटना पर नहीं मढ़ सकते
तो Anti National हैं आप
भले ही आप मुक्त भारत में पैदा हुए हों और इमरजेंसी का भी ना समझते हों, पर लौह महिला को गरिया नहीं सकते
तो Anti National हैं आप

और ये सिलसिला बहुत लंबा है, इन शॉर्ट ये सारे अवगुण मुझमें हैं और ऐसे Anti National हूँ मैं।
मुझे लगभग हर महीने में एक-दो बार पाकिस्तान चले जाने की राय या कहें धम्की दी जाती है,
अरे भाई, मोदी जी का कोई स्पेशल पैक्ट है क्या पाकिस्तान से कि यहाँ के सारे Anti Nationals वहाँ भेज दिये जाएंगे।
मेरी राष्ट्रियता पर सवाल उठाने वालों, कौन हो तुम? तुम्हारा वजूद क्या है?
अपने गिरेबान में झाँको और देखो, कि तुम्हारे दिमाग के कंप्यूटर के मदरबोर्ड को इस fake nationality के वाइरस ने ¾ तक खा लिया है और जो बचा हुआ ¼ अब भी है तुम्हारे पास उसे सहेजो।
Data corrupted है तुम्हारा, इसे Rebooting की ज़रूरत है।

अनुच्छेद 370 पर सरकार का ऐतिहासिक निर्णय- मेरे विचार

आवश्यक नहीं कि हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी ही जाए और कुछ लिखा-बोला ही जाए। पर बात जब कश्मीर कि आती है तो भारत का बच्चा-बच्चा बोलता है और ...