शुक्रवार, 1 जून 2018

युवा वर्ग, उसकी संकुचित सोच और सोशल मीडिया



ये लेख मेरे क्षुब्ध हृदय की एक अभिव्यक्ति मात्र है। मैं निराश हूँ क्षुब्ध हूँ, मेरे ही उम्र के युवा वर्ग और नयी पीढ़ी से। कारण है उनके मस्तिष्क की संकुचित सोच जो अनावश्यक अज्ञानता का आवरण ओढ़े हुए है। जिसके पास आज के समय में अनेकों साधन है किसी भी तथ्य की जांच करने के लिए पर वो करते नहीं और सोशल मीडिया पर प्रत्येक तार्किक अथवा अतार्किक, सत्य अथवा असत्य संदेश या पोस्ट की जांच किए बगैर न केवल उस पर विश्वास करते हैं बल्कि उसे बंदूक से निकलने वाली गोली से भी तेज़ गति में आगे साझा कर देते हैं।

क्या व्हाट्स एप या फेसबुक पर आयी हुई हर बात सही है? कितनी ही घटनाएँ घट रही हैं, गलत संदेश वाले पोस्ट्स के कारण मासूमों की हत्या तक हो जाती है। न सिर्फ हस्तियों का बल्कि किसी भी साधारण जन का चरित्र मलिन कर दिया जाता है। बड़ी आसानी से महामारियों में कौन सी होम्योपेथिक दवा काम करेगी हम पढ़ते हैं और आगे बढ़ा देते हैं। कभी सोचा है कि वो दवा किस व्यक्ति पर किस तरह का प्रभाव डालेगी और कहीं उस के कारण किसी की जान ना चली जाए।

यू.एन. ने हमारे राष्ट्र गान को, प्रधानमंत्री को, पूर्व प्रधानमंत्री को, राष्ट्रीय ध्वज को और पता नहीं किस-किस को क्या-क्या उपाधि दे दी है। आपने पढ़ा और खुशी से छाती चौड़ी करते हुए दनादन शेयर करते गए। बिना इतनी महत्त्वपूर्ण घटनाओं की जांच किए हुए। क्या आपको अंदाज़ा भी है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आपकी इस मूर्खता के कितने चर्चे होते हैं, और जब कोई विदेशी आपको डंब इंडियन कह के संबोधित कर देता है तो आपका खून खौल जाता है।

आप किसी एक राजनीतिक पार्टी के समर्थक है और अन्य के विरोधी तो आप समर्थन और विरोध दोनों ही, सरकार की सफलता और विफलता के पोस्ट्स के माध्यम से दर्शाते हैं। बिना सोचे समझे गलत आंकड़ों पर ना केवल खुद यकीन करते हैं बल्कि वही गलत जानकारी आगे भी बढ़ाते हैं। जिस सरकार के आप विरोधी हैं उस पर खुले आम इल्ज़ाम लगाते हैं क्यूंकी ये उस सरकार के आईटी सेल से आया हुआ संदेश है जिसके आप समर्थन में हैं। बिना इस बात की जांच किए कि जो लिंक आप शेयर कर रहे हैं वो कितनी औथेंटिक साइट के माध्यम से आया है। विगत कुछ वर्षों में राजनीति का ये वीभत्स रूप सामने आया है जो ये दर्शाता है कि जब एक पक्ष अपनी लकीर बड़ी नहीं कर पाता तो वो विपक्ष की लकीर छोटी करने में लग जाता है। कहने का तात्पर्य है की यदि आप सम्मान अर्जित करने लायक कर्म नहीं कर पा रहे हैं तो किसी और को अपमानित करने लगते हैं। ये कैसी तुलना है “उसके चरित्र जितना तो मेरा चरित्र मलिन नहीं!”

आप ना केवल भूतपूर्व प्रधानमंत्री की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हैं बल्कि उनका चरित्र भी मलिन करने का प्रयास करते हैं वो भी अपनी आधी-अधूरी जानकारी और सुनी-सुनाई बातों के दम पर। ऐसा करते समय आपको ये भी याद नहीं रहता कि आप किसी व्यक्ति विशेष की नहीं अपितु प्रधानमंत्री पद की गरिमा का भी अपमान कर रहे हैं।  

हर किसी ने वो कहावत सुनी होगी आज जो बोओगे कल वही काटोगे। ध्यान रखिए आज आप जो भी और जैसे भी कर रहे हैं अपने आने वाली पीढ़ी के लिए बुनियाद तैयार कर रहे हैं। जैसे आपके परिवार ने आपके लिए की। जिस शिक्षा और विवेक को आपने ताक पर रख दिया है और झूठ का एक अम्बार खड़ा कर रहे हैं कल वो आपको और आपकी पीढ़ी को किस रूप में नुकसान पहुंचाएगा इसकी कल्पना भी रोंगटे खड़े कर देती है।

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3 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल ठीक बात है कि सोशल मीडिया पर लोग बड़ी तेजी से उनको प्राप्त हुए संदेशों को आगे अग्रसारित कर देते है बिना सोचे कि उसका आगे चलकर क्या प्रभाव होगा? बहुत सारे सन्देश तो समाज में घृणा फैला रहे हैं जिन से समाज पतन की ओर अग्रसर हो रहा हैIसशक्त राष्ट्र के लिए अच्छे समाज की भी जरूरत होती है I

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  2. काश ऐसे लेख सोशल मीडिया के संदेशों और विकिपीडिया की सूचनाओं को ही सम्पूर्ण सत्य मान चुकी भारतीय युवा-पीढ़ी की आंखें खोल सकें !

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