कहते
हैं जब मामला दिल का हो तो अमूमन औरतों की समझ बेहतर होती है। जी नहीं ये वाक्य
रानी पद्मावती के संदर्भ में नहीं कहा गया, ये कहा
जा रहा है भारत की पहली महिला हृदय रोग विशेषज्ञ शिवरामकृष्णा अय्यर पद्मावती के
बारे में। 20 जून 1917 को बर्मा (मयानमार) में जन्मी ये स्त्री भारत की पहली महिला
हृदय रोग विशेषज्ञ बनी और इनकी ही बदौलत भारत में हृदय रोगों का इलाज संभव हो पाया।
1992 में भारत सरकार से देश के द्वितीय सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्म विभूषण पाने
वाली डॉ पद्मावती लगभग 101 वर्ष की आयु में भी 12 घंटे तक काम करती हैं और उन्हें हृदय
रोगियों का उपचार करते हुए 60 से भी अधिक वर्षों का समय हो चुका है।
डॉ.
पद्मावती बर्मा (मयानमार) में पैदा हुई थीं। उनके पिता एक बैरिस्टर थे। तीन भाइयों
और दो बहनों के बीच वो मेरगुई में बर्मा की ऑइल फील्ड्स के नजदीक पली बड़ी। बचपन से
ही वो मेधावी छात्रा थीं। उन्होने अपनी एम.बी.बी.एस की डिग्री रंगून के एक मेडिकल कॉलेज
से प्राप्त की। वहाँ की वह पहली महिला छात्र थीं। उसके बाद वो 1949 में लंदन आ गईं।
जहां उन्होने ‘रॉयल कॉलेज और फिजियन्स’ से एफ.आर.सी.पी. (फ़ेलो ऑफ दि रॉयल कॉलेज ऑफ फ़ीज़ीशियन्स) की डिग्री प्राप्त
की।
द्वितीय
विश्व युद्ध के दौरान सन 1941 में डॉ अय्यर को अपने परिवार के साथ भारत भाग आने को
मजबूर होना पड़ा। उन्होने तीन साल के लिए तमिलनाडू में भी निवास किया और युद्ध समाप्त
होने के बाद सन 1949 में वो एम.एस. करने के लिए एक बार फिर लंदन गईं। वहाँ उन्हें ‘रॉयल कॉलेज ऑफ फ़ीज़ीशियन्स’ से फ़ेलोशिप प्राप्त की और
उन्होने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में अध्ययन किया।
1953
में पुनः भारत लौटने पर उन्होने दिल्ली में लेडी हार्डिंग्स मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर
के रूप में कार्य किया जहां उन्होने कार्डियोलोजी क्लीनिक की स्थापना भी की। उन्होने
अपने एक साक्षात्कार में कहा है “जब मैं लेडी हार्डिंग अस्पताल से जुड़ी, वहाँ सभी महिलाएं अंग्रेज़ थीं। वहाँ कार्डियोलोजी विभाग नहीं था। हमने इसे
शुरू किया। फिर जी.बी. पंत हॉस्पिटल में मैंने कार्डियोलोजी विभाग शुरू किया।“
उस समय लोग हृदय रोगों के प्रति अपरचित थे। डॉ पद्मावती ने न केवल स्वयं को प्रमुख
हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में स्थापित ही किया बल्कि अपना पूरा जीवन हृदय रोगियों की
सेवा-सुश्रुषा में समर्पित कर दिया। कार्डियोलोजी क्लीनिक के साथ-साथ उन्होने लेडी
हार्डिंग में एक कैथेटर प्रयोगशाला भी स्थापित की।
देश
के प्रतिष्ठित मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में निदेशक बनने के बाद उन्होने वहाँ भी पहले
कार्डियोलोजी विभाग को स्थापित किया। उसके बाद वो सैकड़ों नए चिकित्सकों को प्रशिक्षित
भी करती रहीं। डॉ पद्मावती उस दौर की मांग समझती थीं। उस समय कार्डियोलोजी एक अंजान
विभाग था पर वो इसकी आवश्यकता से भली भांति परिचित थीं। इसीलिए उन्होने सन 1981 में
दिल्ली में भारत के पहले ‘राष्ट्रिय हृदय संस्थान’ (NHI) को बनाने के लिए पूरी शिद्दत से पहल की। उनकी
ये शिद्दत रंग भी लायी और संस्थान स्थापित हुआ। उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति
इन्दिरा गांधी जी अपने बेटे राजीव गांधी के जन्मदिवस की व्यस्तता के बाद भी डॉ पद्मावती
के आमंत्रण पर कार्डियोलोजी संस्थान के उदघाटन के लिए समय निकाल कर पहुंची।
आज
जब ना तो रोगों की गिनती कम है न ही उनके इलाज की। हर रोग का अपना अलग विभाग स्थित
है। दिन-प्रतिदिन नयी तकनीकें और सर्वोच्च तरीके उपयोग हो रहे हैं। वहीं एक समय ऐसा
भी था जब डॉ पद्मावती जैसे ही कई महान डॉक्टरों ने इन विभागों का अपनी मेहनत और शैक्षिक
बल से दुनिया को संज्ञान कराया। हम सदा-सर्वदा इन महानतम हस्तियों के ऋणी रहेंगे।
डॉ
पद्मवाती अय्यर इस समय 101 वर्ष की आयु में भी दिल्ली के ‘राष्ट्रिय हृदय संस्थान’ में निदेशक और ‘ऑल इंडिया हार्ट फ़ाउंडेशन’ की संस्थापक अध्यक्ष के रूप
में कार्यरत हैं। वे हृदय रोग में छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए W.H.O को भी अपना सहयोग प्रदान करती हैं। भारत के चिकित्सीय क्षेत्र में उनके इस
अमूल्य योगदान के लिए उन्हें शत शत नमन।
Very interesting and significant info..
जवाब देंहटाएंYou are doing a great job.
Thank you
हटाएंहृदय रोग के क्षेत्र में भारत को अतुलनीय योगदान देने वाली डॉ पद्मावती को शत शत नमन
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