गुरुवार, 7 जून 2018

शिक्षा और इतिहास के साथ खिलवाड़ उचित नहीं


आज ही एक बहुत अच्छी बात पढ़ने को मिली-
शिक्षा हमें ये याद नहीं दिला रही कि हिटलर ने 6 मिलियन यहूदियों की हत्या कर दी बल्कि ये समझाती है कि कैसे लाखों साधारण जर्मन्स को इस बात पे राज़ी कर लिया कि ये ज़रूरी था। शिक्षा हमें सिखाती है कि हम पहचान पाएँ कि कब इतिहास खुद को दोहरा रहा है।“

पढ़ेगा इंडिया तो आगे बढ़ेगा इंडिया कहना बहुत आसान है पर इस इंडिया को पढ़ाया क्या जा रहा है इस पर कौन विचार करेगा। एक समय था कि राजनीति में आने वाले लोग, सिर्फ पढे-लिखे ही नहीं उच्च शिक्षा प्राप्त बुद्धिजीवी होते थे। जिस भी क्षेत्र में वो कार्यरत होते थे उसका उन्हें भरपूर ज्ञान होता था। आज का राजनीतिक परिवेश इससे उलट है। आज सत्ता और शासन ही नेताओं और मंत्रियों का एकमात्र उद्देश्य है। उनका खुद का शिक्षा और ज्ञान से दूर-दूर तक का नाता नहीं रहा तो उनसे इतिहास की समझ के बारे में क्या अपेक्षा रखी जाए।

मौजूदा राजनीतिक परिवेश उद्दंड बंदरों की टोली जैसा है, जिसके पास कोई लक्ष्य नहीं है, कोई विचारधारा नहीं है। कोई मन्तव्य भी नहीं। इस पर भी गाहे-बगाहे वो अपनी बेवकूफ़ियों का परिचय जन सम्बोधन के दौरान चौड़े हो कर करते रहते हैं। चाहे वो मोरनी का मोर के आंसुओं से गर्भवती होने की बात हो’, या महाभारत काल में इंटरनेट और वाई-फ़ाई की। कोई माता सीता को टेस्ट ट्यूब बेबी बताता है तो कोई महाभारत युद्ध के लाइव टेलिकास्ट की बात करता है।

इतना काफी नहीं है, इनकी मूर्खता में चार-चाँद तब लगते हैं जब इनके द्वारा इतिहास के साथ छेड़-छाड़ की जाती है। हल्दीघाटी के युद्ध में महारणा प्रताप को अकबर के हांथों पराजय का सामना करना पड़ा था। इतिहासकारों ने अपने श्रेष्ठ लेखन के द्वारा सारे संसार को ये विदित कराया है । यहाँ तक कि इतिहास के अनेकों पहलुओं के प्रमाण भी मौजूद हैं। पर आज माहौल यूं है कि बच्चों की किताबों से इतिहास को बदला जा रहा है। महारणा प्रताप ने अकबर पर विजय पायी। क्यूँ ऐसा लगता है इन महामूर्खों को कि स्कूल की किताबों के अक्षर इधर उधर कर देने से ये इतिहास बदल लेंगे। कुछ राज्यों में तो अब देश के राजनीतिक इतिहास को भी मार डाला गया है। बच्चे अब बापू और चाचा नेहरू की जीवनी और देश के प्रति उनके समर्पण की गाथा ना कभी पढ़ेंगे और ना सुनेंगे। दुखद ये है कि इसके बदले जो उन्हें पढ़ाया जाएगा वो झूठ और काल्पनिकता होगी।

हाल ही में मुग़लसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय रखा गया। सत्ता सरकार की मूर्खता का चरम ये भी है कि उन्हें लगता है कि वो नामों से मुग़ल हटा देंगे तो उनका इतिहास भी ख़तम हो जाएगा। इस परिवर्तन के बाद सोशल मीडिया पर अनेकों चुटकुले प्रसारित हुए। जैसे अब मुग़लई चिकिन को पंडित दीन दयाल उपाध्याय चिकिन कहा जाएगा और वो फिल्म मुग़ल-ए-आज़म का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल-ए-आज़म उपाध्याय रखा जाएगा। मुद्दा ये नहीं है कि मुग़लों ने भारत के साथ क्या अच्छा किया या क्या बुरा, या फिर सिर्फ बुरा ही बुरा। मुद्दा ये है कि वो भारत के इतिहास का अभिन्न अंग हैं, जैसे पुर्तगाली, यूनानी, फारसी, चीनी और अंग्रेज़। इन सब का इतिहास हमें उस समय घटी घटनाओं और परिवेश के कारण पैदा हुई परिस्थितियों की सीख देता है और भविष्य में उन गलतियों को ना दोहराए जाने का ज्ञान देता है।

आखिर हम इंसान हैं गलतियों से ही सीखते हैं। अपनी गलतियों से सबक लेने के लिए ही उन्हें याद रखते हैं। तो फिर इतिहास को बदलने के पीछे आखिर मंशा क्या है? क्यूँ हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को झूठ और काल्पनिकता उत्तराधिकार में देना चाहते हैं। क्यूँ हम वो गलतियाँ दोहरा रहे हैं जो हमसे पहले भारतियों ने की। जिसके कारण ही भारत ने बारंबार विदेशी आक्रमण झेले और फिर गुलामी।

थोड़ा इतिहास में ही पीछे जाएँ तो पता चलता है कि अंग्रेजों ने हम पर राज करते समय हमारा कीमती इतिहास मिटाने और ख़त्म करने की पुरजोर कोशिश की थी। क्यूंकी वो चाहते थे कि भारतीय ये कभी ना जाने कि वो एक समर्थ देश के निवासी है, यहाँ ज्ञान और बुद्धिजीविता का भंडार है। इस तरह हमें अज्ञान में रखते हुए वो आसानी से हम पर शासन करते रहे।
आज भी ये ही हो रहा है। अपने सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक परिवेश को गौर से देखिये। हम एक बार फिर से अज्ञान के गुलाम होने को ना सिर्फ तैयार बैठे हैं बल्कि प्रसन्नचित्त मुद्रा में स्वयं को गर्वित भी महसूस कर रहे हैं।     

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4 टिप्‍पणियां:

  1. Ek gande shor ne achchhai ki awaz daba si di hai
    Par badal chhatenge kirne aayengi..

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  2. इतिहास गवाह है कि जब जब सत्ता परिवर्तन हुआ है सत्ता ग्रहण करने वाली सत्ता ने पिछले सत्ता धारियों का नाम बदनाम करने और इतिहास से मिटाने के अथक प्रयास किये. हमारे देश भारत में मुगलों ने एक लम्बे समय तक शाशन किया जिसके दौरान अखंड भारत के विश्वास, धर्म और साहित्य का नामोनिशान मिटाने के लिए विकट प्रयास किये. क्या प्रथ्वी राज चौहान का नाम इतिहास में अंकित नहीं है? क्या हिन्दू धर्म जीवित नहीं है? क्या हिंदी साहित्य के महान कवि और हिन्दू धर्म के उत्थान में योगदान करने वाले महापुरुष कविवर तुलसीदास, सूरदास, कबीरदास, रहीमदास, मीराबाई आदि का नाम इतिहास के पन्नों से मिट गया?बिलकुल इसी तरह से अंग्रेजों ने अपने शाशन काल के दौरान भारतवासियों पर बहुत अत्याचार किये.क्या उनके शाशन काल में स्थापित यातायात और व्यापार का साधन रेलवे की स्थापना का कार्य भारतीय समाज भुला पायेगा? आज कितनी भी रेलवे की तरक्की हो जाये परन्तु जो रेलवे की नीव अंग्रेजी शाशन के दौरान रखी गयी क्या वह इतिहास के पन्नों से मिट जायेगी ? भले ही औरंगजेब रोड का नाम डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम साहब के नाम पर रख दिया जाये क्या औरंगजेब का नाम इतिहास के पन्नों से गायब हो जायेगा? देश के लिए पूर्ण समर्पित महान वैज्ञानिक कलाम साहब के नाम पर यदि किसी रोड का नाम नहीं रखा गया तो क्या कलाम साहब को कोई भी नहीं जानेगा?यह सारे सवाल क्यों? सोचिये इस देश के राजनेता अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए जिस प्रकार की ओछी राजनीत कर रहे हैं उससे किसका भला हो रहा है.भला केवल इन दलगत राजनीती करने वालों का और नुकसान केवल इनके बीच पिसने वाली जनता का है.

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