शुक्रवार, 11 जनवरी 2019

10 परसेंट का लौलीपौप


आरक्षण ले लो! आरक्षण ले लो! टके के भाव आरक्षण ले लो!
चुनाव आ गया है और मोदी जी ने अपनी दुकान खोल ली है। मत दाताओं को लुभाने के लिए ऑफर के एनाउंसमेंट भी शुरू कर दिये है। सत्ता में आने से पहले किए गए हर वादे को धूल चटाते हुए पहले से ही विभाजित देश को और विभाजित कर दिया है। वो अंग्रेजों की पॉलिसी थी ना “Divide and Rule”, बस वैसा ही कुछ। पहले हिन्दू-मुसलमान बांटा पर पेंतरा वैसा नहीं चला जैसा उम्मीद होगी। दलित कार्ड की आढ़ में जातिगत विभाजन को और हवा दी। अब संवर्णों को 10% आरक्षण की लौलीपौप थमा कर उन्हें भी आपस में विभाजित कर दिया।

भाजपा जिन-जिन वादों के दम पर सत्ता में आई थी सारे मुंह उल्टा किए पड़े हैं और सत्ता सरकार के पैरों तले कुचले जा चुके हैं। जातिगत आरक्षण ख़त्म कर के आर्थिक आधार पर आरक्षण देंगे। सब फुस्स हो गया। जातिगत आरक्षण ज्यों का त्यों और संवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण की चम्मच चटा दी। वाह मोदी जी वाह। भाई दे दो। सबको आरक्षण ही दे दो। पर पहले नौकरियाँ तो बढ़ा दो। रोज़गार का टोटा पड़ा है और हमको 10 प्रतिशत की लौ लगाई जा रही है। उस पर भी कमाल की गणित देखिये। अगर आपकी सालाना कमाई 2.5 लाख या उससे अधिक है तो आप टैक्स के घेरे में आते हैं पर यदि आपकी सालाना कमाई 8 लाख तक भी है तो भी आप उस दस प्रतिशत आरक्षण के हकदार हैं। ये कैसी इकनॉमिक व्यवस्था है। कोई जानकार व्यक्ति हो तो मुझे समझाये। मेरी समझ इस मामले में न्यून है।

बाबा साहिब ने जब अनुसूचित और पिछड़ी जातियों के लिए शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की थी तो वो मात्र 10 वर्ष के लिए था। पर एक बार चुनावी मुद्दा बनने के बाद इस सिस्टम को बदला नहीं गया। माना कि पिछली सरकारों का भी दोष है पर आप क्या कर रहे हैं? आपने कौन सा कारनामा कर दिखाया जो आप पिछली सरकार से बेहतर साबित हो सके। एक समय था जब कुछ जाती और संप्रदाय के लोग पिछड़े थे, उनके पास सुविधाओं और साधनों की कमी थी। आज भी ऐसे कुछ प्रांत या क्षेत्र हैं जहां के निवासी जीवन की साधारण सुविधाओं जैसे शिक्षा, बिजली इत्यादि से दूर हैं और उन्हें वो कठिन परिश्रम से या तो प्राप्त हो पाती हैं या बिलकुल भी नहीं मिल पाती। इसीलिए आरक्षण का प्रावधान किया गया था जिससे कि वो लोग जो अथक परिश्रम और कठिनाइयाँ उठा कर शिक्षा प्राप्त कर पाते हैं उन्हें आगे बढ़ने, प्रगति करने और अपना भविष्य बनाने में उनकी सहायता की जा सके। पर एक लंबे अरसे से इस प्रावधान का दुरुपयोग होता आ रहा है।

आई.ए.एस. और पी.सी.एस. अधिकारियों के बच्चे, एम.पी. एम.एल.ए., मल्टीनेशनल कंपनियों में काम करने वाले, बड़े और ऊंचे पदों पर आसीन लोगों के बच्चे, जो भी अनुसूचित जाती-जनजाति या पिछड़े वर्ग से संबंध रखते हैं, सभी आरक्षण का भरपूर लाभ उठा रहे हैं। ऐसा तो नहीं कि आरक्षित वर्ग में सभी पढ़ाई में कमजोर हैं या उनमें टेलेंट की कमी है या उनके पास साधनों का अभाव है और पर फिर भी उन्हें आरक्षण का लाभ मिलता है जिसके कारण असंख्य संवर्ण एवरेज छात्र अच्छी शिक्षा और अच्छी नौकरी की रेस हार जाते हैं। यहाँ स्पष्ट कर दूँ कि एवरेज छात्र से मेरा तात्पर्य 60-80 प्रतिशत अंक प्राप्त करने वाले वो छात्र हैं जिनमें ना तो टेलेंट की कमी है ना ही ज्ञान की, बस वो 90 प्रतिशत के रेस के प्रतिभागी नहीं हैं। पर इस आरक्षण व्यवस्था के चलते संवर्णों के लिए 90 प्रतिशत और उससे अधिक अंक ला कर शिक्षा में टॉप करने की बाध्यता बना दी गयी। अन्यथा उन्हें ना तो उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलेगा और ना ही अच्छी नौकरी का। न जाने कितने संवर्ण एवरेज छात्र या तो बेरोजगार घूमते मिल जाएंगे या उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी किसी सरकारी दफ्तर में चपरासी की नौकरी करते हुए। क्या सभी संवर्ण आर्थिक रूप से समर्थ होते हैं और किसी भी संवर्ण के पास साधनों का अभाव नहीं है?

संवर्णों ने कभी आरक्षण नहीं मांगा। ये आरक्षण उन संवर्णों का अपमान है जो वर्षों से इस व्यवस्था के चलते नुकसान उठाते हुए भी अपनी प्रतिभा और दृढ़ निश्चय के बल पर अपना जीवन किसी ना किसी प्रकार संवार ही लेते हैं। देख रही हूँ इस घोषणा के बाद से वो लोग भी आरक्षण के पक्ष में हो गए हैं और इसे संवैधानिक बता रहे हैं जो अब तक ज़ोर-ज़ोर से जातिगत आरक्षण के विरुद्ध चिल्लाते थे। मुझे तो डर लगता है कि किसी दिन खेल-कूद या कला क्षेत्र या हर वो क्षेत्र जहां मात्र प्रतिभा और प्रतिभा ही सब कुछ है, वहाँ भी यदि आरक्षण ठूंस दिया गया तो हमें खिलाड़ी, लेखक, फिल्म स्टार्स, नर्तक, गायक और पता नहीं क्या-क्या सच्ची प्रतिभा से नहीं बल्कि आरक्षण के परिणाम स्वरूप प्राप्त होंगे और हमें उन्हें स्वीकारना होगा।  

पता नहीं क्यूँ भाजपा सरकार को लगता है कि हमारे माथों पर बड़े अक्षरों में लिखा है “सल्फेट”। पूरा शब्द नहीं लिखूँगी, मेरी भाषा की मर्यादा मैं भंग नहीं कर सकती। पर हाँ! मैं वाकई क्रोधित हूँ और क्रोध में अपशब्द ना सिर्फ मन में आते हैं बल्कि ज़बान पर भी। अब सोचना हमको ही है। क्या हम सचमुच सल्फेट हैं?     

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1 टिप्पणी:

  1. जाती आधारित आरक्षण को आर्थिक आधार पर आरक्षण में बदल नहीं सकते केवल वोट बैंक के लिए और अब सत्ता के लिए हर राजनैतिक दल समाज के एक और विभाजन (तू आरक्षित सवर्ण) के लिए खुश I सत्ता के लिए समाज के और कितने विभाजन ये राजनेता करेंगे I

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