सोमवार, 30 जुलाई 2018

तो Anti National हैं आप


आज के इस युग में सोशल मीडिया के विभिन्न प्लैटफॉर्म्स मौजूद हैं जिसके द्वारा आप अपने विचार लोगों तक पहुंचा सकते हैं वो भी बहुत आसानी और तीव्रता से। जितना समय हमें कोई पोस्ट टाइप करने में नहीं लगता उस से आधे से भी कम समय में वो ढेरों लोगों के द्वारा पढ़ लिया जाता है। इसी के साथ फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसे पोर्टल्स के माध्यम से आप लाइव जा कर भी अपनी बात लोगों के समक्ष रख सकते हैं। हालांकि मैं बहुत कैमरा कौंशस हूँ, सेलफ़ीस अपलोड करना अलग बात है पर खुद अपना विडियो रिकॉर्ड करना या लाइव जा कर सीधा इंटेरेक्शन करना अलग बात। इस कारण बड़ी हिम्मत जुटा कर कल रात मैंने फेसबुक पर लाइव जाते हुए अपनी एक रचना पोस्ट की। समय की बालिहारी कहिए या जो भी पर वो विडियो मुझे बहुत जल्दी ही डिलीट करना पड़ा। क्यूंकी मेरी बड़ी बहन जिसने वो पूरा देखा भी नहीं था उसने भड़भड़ाते हुए मुझे फोन किया और वो लाइव विडियो हटाने के लिए ज़ोर डाला। मैं वो विडियो हटाना नहीं चाहती थी पर उसकी बात का मान रखना भी ज़रूरी था। उसे डर था कि उस लाइव फुटेज को देखने के बाद मुझे ट्रोल किया जा सकता है और संभावित अपशब्दों और अभद्रता को शायद मैं सहन ना कर पाऊँ।

फिर भी मैं चाहती हूँ कि मैं उस विडियो के कंटैंट को आपसे साझा करूँ इसलिए इस लेख के माध्यम से ऐसा कर रही हूँ। मैंने एक कविता का पाठ किया था जिसका शीर्षक है “तो Anti National हैं आप”। हालांकि इस  टैग लाइन पर पहले भी काफी कुछ लिखा जा चुका है पर फिर भी मैं अपने कुछ शब्द/विचार/अनुभव आप तक पहुंचाना चाहती हूँ।
अगर आप मोदी समर्थक नहीं हैं,
तो Anti National हैं आप
अगर आप Zee News, Republic और Times Now नहीं देखते,
तो Anti National हैं आप
अगर आप Scroll, The Quint, The Wire, The Logical Indian और Dhruv Rathee जैसे लिंक्स फॉलो करते हैं,
तो शर्तिया Anti National हैं आप     
अगर आप झूठे वीडियोज़ का पर्दाफाश कर सकते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप स्वतंत्र सोच और खुले विचारों वाले व्यक्ति हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप धर्मांध नहीं हैं और धर्म पर खोज करने की क्षमता और विवेक रखते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर हर रोज़ आपको पाकिस्तान का वीज़ा मुफ़्त बांटा जाता है
तो बिना किसी शक के Anti National हैं आप
अगर आप सांप्रदायिकता के बजाए सेकुलरिस्म में यकीन रखते हैं (“Intellectuals and seculars must be shot”)
तो भाई Anti National हैं आप
अगर आप RSS की विचारधारा को नहीं मानते
तो Anti National हैं आप
अगर आप सच और झूठ में फर्क करना जानते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आपके दिमाग में गोबर की जगह ज्ञान भरा है
तो Anti National हैं आप
अगर आपके लिए गाय के साथ-साथ मानव और मानवता भी ज़रूरी है
तो Anti National हैं आप
अगर आप बलात्कारियों और भीड़ तंत्र के खिलाफ आवाज़ उठाते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप भ्रष्ट और अपराधी भाजपा नेताओं के नाम लें
तो Anti National हैं आप
अगर आप न्यूज़ रूम में हुए स्क्रिपटिड ड्रामे को सच नहीं मानते
तो Anti National हैं आप
अगर आप fact और fiction में फर्क कर सकते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप एक fictional character पर बनी किसी फिल्म का विरोध नहीं करते
तो Anti National हैं आप
अगर आप यकीन नहीं करते कि मोदी युग से पहले civilization यानी सभ्यता थी ही नहीं
तो चुल्लू भर पानी में डूब मारिए क्यूंकी Anti National हैं आप
अगर आप पिछले 70 सालों में जो हुआ और जो नहीं हुआ उस सबका ब्योरा दे सकने की क्षमता रखते हैं
तो Anti National हैं आप
अगर आप वर्तमान सरकार की निष्फलता और निष्क्रियता का जिम्मा इतिहास में घटी किसी घटना पर नहीं मढ़ सकते
तो Anti National हैं आप
भले ही आप मुक्त भारत में पैदा हुए हों और इमरजेंसी का भी ना समझते हों, पर लौह महिला को गरिया नहीं सकते
तो Anti National हैं आप

और ये सिलसिला बहुत लंबा है, इन शॉर्ट ये सारे अवगुण मुझमें हैं और ऐसे Anti National हूँ मैं।
मुझे लगभग हर महीने में एक-दो बार पाकिस्तान चले जाने की राय या कहें धम्की दी जाती है,
अरे भाई, मोदी जी का कोई स्पेशल पैक्ट है क्या पाकिस्तान से कि यहाँ के सारे Anti Nationals वहाँ भेज दिये जाएंगे।
मेरी राष्ट्रियता पर सवाल उठाने वालों, कौन हो तुम? तुम्हारा वजूद क्या है?
अपने गिरेबान में झाँको और देखो, कि तुम्हारे दिमाग के कंप्यूटर के मदरबोर्ड को इस fake nationality के वाइरस ने ¾ तक खा लिया है और जो बचा हुआ ¼ अब भी है तुम्हारे पास उसे सहेजो।
Data corrupted है तुम्हारा, इसे Rebooting की ज़रूरत है।

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

90 का दशक-दूरदर्शन-गोपाल दास नीरज


बदन पे जिस के शराफ़त का पैरहन देखा
वो आदमी भी यहाँ हम ने बद-चलन देखा
ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत--दुनिया 
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा
मुझे मिला है वहाँ अपना ही बदन ज़ख़्मी 
कहीं जो तीर से घायल कोई हिरण देखा
बड़ा न छोटा कोई फर्क बस नज़र का है
सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा
ज़बाँ है और बयां और उस का मतलब और 
अजीब आज की दुनिया का व्याकरन देखा
लुटेरे डाकू भी अपने पे नाज़ करने लगे 
उन्होने आज जो संतों का आचरन देखा
जो सादगी है कुहन में हमारे ऐ नीरज
किसी पे और भी क्या ऐसा बाँकपन देखा”

ये बात उन दिनों की है जब घरों में कलर टीवी होना रईसी की बात होती थी। टीवी चलाने के लिए छत पर एक बड़े से डंडे में ऐंटीना बांधना पड़ता था और उस डंडे या बांस को कस कर छत के किसी खंबे से या तो बांधना पड़ता था या सीमेंट से जाम करना पड़ता था। एंटीने की रौड के दो छेदों में में टीवी का तार दांतों से छील कर बांधा करते थे और बाकी तार जाल या खिड़की के सहारे नीचे फेका जाता था जिसका दूसरा सिरा टीवी तक पहुँच जाए, और फिर एक बार तार को छील कर उसके दो सिरे एडोप्टर के पेंचों में बांध कर, पेंचकस से कस कर उसे टीवी के पीछे बने सॉकेट में लगा दिया जाता था। उस समय टीवी भी गोल मटोल सा हुआ करता था। हमारे पास था अप्ट्रोन“Whats on….. its uptron” ऐसे ही विज्ञापन आता था अप्ट्रोन का।

उस समय केवल दूरदर्शन आता था, मैं तो दूरदर्शन के सारे कार्यक्रम देख कर ही बड़ी हुई हूँ। 'रामायण', 'महाभारत', 'जंगल बुक', 'शक्तिमान', 'छुट्टी-छुट्टी', 'चौराहा', 'हम लोग', 'बनेगी अपनी बात', 'देख-भाई-देख', 'पोटली वाले बाबा', 'कृषि दर्शन', 'चंद्रकांता', 'भूतनाथ', 'अलिफ लैला', 'तबस्सुम की बातचीत', 'कामिनी कौशल का पापिट शो', वगैहरा-वगैहरा। इसके साथ ही दूरदर्शन पर अक्सर आया करते थे मुशायरे। हालांकि बचपन में कविता, शायरी इन सब की समझ कहाँ हुआ करती थी। पर मेरी माँ को मुशायरे सुनने का बड़ा शौक था। उस दौरान जब चुनाव के बाद मतों की गिनती हुआ करती थी तो रात भर टीवी पर लगातार फिल्में आती थीं और उनके बीच-बीच में मतों की गणना की संख्या को बताया जाता था और नव वर्ष की पूर्वा संध्या पर भी गीत-संगीत के बाद मुशायरे, हास्य-व्यंग, कविता पाठ ये सब प्रसारित होता था।

तभी परिचय हुआ था मेरा गोपाल दास नीरज से। एक बेहद कमाल की बात है कि बड़े होते-होते मुझे केवल दो ही शायर याद रह गए एक नीरज और दूसरे बशीर बद्र। उस समय बहुत छोटी थी। टीवी का चालू होना ही मनोरंजन था। चाहे कुछ भी प्रसारित हो रहा हो। ऐसे ही माँ के शौक ने मुझे भी मुशायरों का शौकीन बना दिया। नीरज जी में कुछ अनोखी बात थी। पता नहीं क्या पर कुछ तो अनोखा था। मुशायरे बहुत लंबे चला करते थे और नीरज को सबसे आखिर में अपनी कविता/गीत पढ़ने को आमंत्रित किया जाता था। उसके पीछे भी एक बड़ा कारण था कि उनकी वजह से लोग बंधे बैठे रहते थे। क्यूंकी नीरज को सुन लिया तो फिर कुछ और सुनने का किसी का दिल नहीं करता था। टीवी पर भी प्रसारण देर रात तक चलता और मेरी माँ जो बहुत जल्दी सो जाने की आदत रखती हैं वो देर रात तक टीवी के सामने बैठी रहती थीं, कि कब नीरज आयें और अपना रचना सुनाएँ।

स्वप्न झरे फूल से, मीत चुभे शूल से
 लुट गए सिंगार सभी बाग के बबूल से
और हम खड़े खड़े बहार देखते रहे 
कारवां गुज़र गया हम गुबार देखते रहे”

ऐसे ही धीरे-धीरे नीरज की रचनाओं में रुचि बढ़ती चली गयी। भला हो दूरदर्शन का कि उन्हें अक्सर सुनने और देखने का मौका मिल जाया करता था। मुझे याद है कि उनकी रचना “कारवां गुज़र गया” की औडियो कैसेट के लिए मैंने बाज़ार के बहुत चक्कर काटे थे। माँ की फरमाइश थी जो पूरी नहीं हो पा रही थी। उस समय हम जालौन जिले के एक छोटे से शहर उरई में रहा करते थे। वहाँ चीज़ें आसानी से नहीं मिला करती थीं और मिली भी नहीं। फिर समय के साथ केसेट का चलन ही बंद हो गया।

फक्कड़ स्वभाव मस्त मौला नीरज ने हिन्दी साहित्य को जो बेहतरीन योगदान दिया है वो अनमोल है। कहते हैं कि कलाकार वो भी कवि/लेखक बस अपने रंग में रंगे रहने वाला व्यक्ति होता है। ऐसे ही थे नीरज। किसी से कुछ नहीं चाहिए, फकीर जैसा स्वभाव।
“हम तो मस्त फकीर, हमारा कोई नहीं ठिकाना रे...ऐसी गंध बसी है मन में सारा जग मधुबन लगता है.....इस द्वार क्यूँ न जाऊँ, उस द्वार क्यूँ न जाऊँ, घर पा गया तुम्हारा, मैं घर बदल-बदल के बोल फकीरे सिवा नशे के अपना कौन सगा रे, जो सबका सिरहाना रे, वो अपना पैताना रे....हर घाट जल पिया है, गागर बदल-बदल के।“

शराब के शौकीन और बिना पिये कविता ना पढ़ने वाले नीरज अध्यात्मिकता से भी जुड़े हुए थे। अरविंद, ओशो, आनंदमयी माँ, मेहरबाबा, प्रबोधानन्द, स्वामी श्याम, मुक्तानन्द आदि का सानिध्य पाने की बात को नीरज ने सहर्ष स्वीकारा है। स्वयं को तपभ्रष्ट योगी कहते थे। कहते थे कि तन का रोगी और मन का भोगी होने के बाद भी उनकी आत्मा योगी है।
गीत जो गाया नहीं’, बच्चन यात्री अग्निपथ का, बदर बरस गयो’, नीरज रचनावली’, वंशिवट सूना है’, नीरज के प्रेमगीत’, काव्यांजली’, नीरज की गीतिकाएं इत्यादि हिन्दी और उर्दू में अनेकों रचनाएँ, कवितायें, गजलें, शायरी नीरज हमारे लिए छोड़ कर 93 साल की उम्र में इस संसार से कल विदा हो गए।

जितना कम सामान रहेगा उतना सफर आसान रहेगा 
जितनी भारी गठरी होगी उतना तू हैरान रहेगा
उस से मिलना न-मुमकिन है जब तक खुद का ध्यान रहेगा 
हांथ मिलें और दिल न मिलें ऐसे में नुकसान रहेगा
जब तक मंदिर और मस्जिद है मुश्किल में इंसान रहेगा 
'नीरज तू कल यहाँ न होगा उस का गीत विधान रहेगा”


बुधवार, 18 जुलाई 2018

शांतिदूत मंडेला


If you want to make peace with your enemy, you have to work with your enemy. Then he becomes your partner.- Nelson Mandela

नेल्सन मंडेला को सारा विश्व शांतिदूत के रूप में जानता पहचानता है. समाज के प्रति उनके योगदान के लिए वो जग प्रसिद्द हैं. शांति के लिए पहले नोबल पुरस्कार विजेता के बारे हम बहुत कुछ जानते हैं. पर फिर भी हैं कुछ अनकही कहानियां जिनसे हम अनिभिज्ञ हैं. आइये जानते हैं उनके बारे में ऐसी ही कुछ बातें जो पहले सुनने को नहीं मिलीं.

1. उपद्रवी:
मंडेला का असल नाम रोहिह्लला था जो कि उनका जनजातीय नाम था. जिसका अर्थ होता है “उपद्रवी” (Troublemaker). नेल्सन नाम उन्हें उनके एक स्कूल टीचर ने दिया था. 1920 के दशक में अफ्रीकी बच्चों को अंग्रेजी नाम दिए जाते थे जिससे औपनिवेशिक स्वामी उन्हें आसानी से उच्चारण कर सकेंउन्हें उनके जनजातीय पारम्परिक नाम “मदीबा” से भी बुलाया जाता था.

2. ब्लैक पिंपरनेल (Black Pimpernel):
He was master in disguise. वे खुद को छिपाने में भेस बदलने में माहिर थे. रंगभेद के खिलाफ अपनी लड़ाई के दौरान उन्होंने कई बार भेस बदल के खुद को अधिकारीयों से छुपाये रखा. वे काफी समय तक एक ड्राईवर के भेस में भी रहे. वो अपनी कार्य प्रणाली को रात में सक्रिय करते थे. दिन में छुपने और रात में कम करने के कारण उन्हें प्रेस ने “Black Pimpernel” नाम दिया. Pimpernel यूरोप में पाई जाने वाली जड़ीबूटी होती है जिसके हरे पत्तों के ऊपर बैंगनी फूल खिलता है और ये रात में ही दिखती है.

3. स्पाइक ली की फिल्म में केमियो किरदार:
वह स्पाइक ली के 1992 के बायोपिक "मैल्कम एक्स" में एक बड़ा हिस्सा थे. फिल्म के अंत में, वह एक शिक्षक के रूप में सोवेटो स्कूल के बच्चों से भरे एक कमरे में मैल्कम एक्स के प्रसिद्ध भाषण को पढ़ कर निभाते हैं। लेकिन शांतिवादी मंडेला यह पढने को राज़ी नहीं हुए “By any means necessary”. तो ली को मैल्कम एक्स का वो फुटेज काटना पड़ा फिल्म को खत्म करने के लिए.

4. उनके नाम पर एक कठफोड़वे का नाम:
उनके नाम पर एक कठफोड़वा है. केप टाउन से कैलिफोर्निया तक, मंडेला के नाम पर रखा अनगिनत सड़कों का नाम होना तो लाजिमी है। लेकिन वह कुछ और असामान्य श्रद्धांजलियों का विषय रहे। सन 2012 में वैज्ञानिकों ने एक प्रागैतिहासिक कठफोड़वे को नाम Australopicus Nelsonmandelai दिया। 1973 में लीड्स विश्वविद्यालय में भौतिकी संस्थान ने एक परमाणु कण को 'मंडेला कण’ नाम दिया ।

5. पहली नौकरी:
उन्होंने अपनी पहली नौकरी एक खदान पर सिक्यूरिटी गार्ड के रूप में की. 1952 में उन्होंने अपनी दिन की नौकरी को छोड़ कर जोहान्सबर्ग में University of Witwatersrand से विधि की पढाई पूरी की और देश का पहली अश्वेत लॉ फर्म (Law Firm for Black People) खोली.

6. उन्हें एक खूनी खेल आकर्षित करता था:
राजनीती के अलावा उनका दूसरा रुझान था मुक्केबाज़ी. उन्होंने अपनी आत्मकथा में कहा, “I did not like the violence of boxing. I was more interested in the science of it- how you move your body to protect yourself, how you use a plan to attack and retreat, and how you pace yourself through a fight.”

7. भगोड़ा दूल्हा:
जी हाँ! मंडेला अपनी पहली शादी के समय सन 1941 में 23 वर्ष की आयु में घर से भाग गये थे. वो एक अरेंज्ड मैरिज थी. उसके बाद उन्होंने 3 शादियाँ की जिससे उनके 6 बच्चे है, 17 पोते-पोतियाँ और अनगिनत पौत्र-पौत्रियां. 70 वर्ष की आयु में उन्होंने तीसरा विवाह Graca Machel से किया जो की Mozambique के राष्ट्रपति Samora Machel की विधवा थी. इस तरह Graca Machel को दो देशों की प्रथम महिला बनने का अवसर मिला.

8. उनकी प्रेरणा एक कविता थी:
जब वो जेल में थे तो William Ernest Henley की कविता “Invictus” अपने कैदी साथियों के लिए पढ़ा करते थे. “I am the master of my fate. I am the captain of my soul.”

9. ग्रेट ब्लैक होप:
जेल में उन्हें 2m*2.5m के सेल में रखा जाता था और उनके पास मात्र एक बिस्तरबंद और एक बाल्टी होती होती थी. उनसे कड़ी म्हणत करायी जाति थी और 6 महीनो में मात्र एक बार वो किसी एक व्यक्ति से मिल सकते थे और एक ही चिट्टी उन्हें मिलती थी. वो राजनितिक कैदी माने जाते थे और साउथ अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ अपनी लड़ाई में “Great Black Hope” के नाम से प्रसिद्द हुआ।

10. अंतर्राष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस:
50 अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालयों से अनेकों मानक उपाधि प्राप्त शांतिदूत मंडेला के जन्मदिवस 18 जुलाई को यूनाइटेड नेशन ने सन 2009 में अंतर्राष्ट्रीय नेल्सन मंडेला दिवस घोषित किया.

अनुच्छेद 370 पर सरकार का ऐतिहासिक निर्णय- मेरे विचार

आवश्यक नहीं कि हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी ही जाए और कुछ लिखा-बोला ही जाए। पर बात जब कश्मीर कि आती है तो भारत का बच्चा-बच्चा बोलता है और ...