गुरुवार, 21 जून 2018

डॉ पद्मावती


कहते हैं जब मामला दिल का हो तो अमूमन औरतों की समझ बेहतर होती है। जी नहीं ये वाक्य रानी पद्मावती के संदर्भ में नहीं कहा गया, ये कहा जा रहा है भारत की पहली महिला हृदय रोग विशेषज्ञ शिवरामकृष्णा अय्यर पद्मावती के बारे में। 20 जून 1917 को बर्मा (मयानमार) में जन्मी ये स्त्री भारत की पहली महिला हृदय रोग विशेषज्ञ बनी और इनकी ही बदौलत भारत में हृदय रोगों का इलाज संभव हो पाया। 1992 में भारत सरकार से देश के द्वितीय सर्वश्रेष्ठ नागरिक सम्मान पद्म विभूषण पाने वाली डॉ पद्मावती लगभग 101 वर्ष की आयु में भी 12 घंटे तक काम करती हैं और उन्हें हृदय रोगियों का उपचार करते हुए 60 से भी अधिक वर्षों का समय हो चुका है।

डॉ. पद्मावती बर्मा (मयानमार) में पैदा हुई थीं। उनके पिता एक बैरिस्टर थे। तीन भाइयों और दो बहनों के बीच वो मेरगुई में बर्मा की ऑइल फील्ड्स के नजदीक पली बड़ी। बचपन से ही वो मेधावी छात्रा थीं। उन्होने अपनी एम.बी.बी.एस की डिग्री रंगून के एक मेडिकल कॉलेज से प्राप्त की। वहाँ की वह पहली महिला छात्र थीं। उसके बाद वो 1949 में लंदन आ गईं। जहां उन्होने रॉयल कॉलेज और फिजियन्स से एफ.आर.सी.पी. (फ़ेलो ऑफ दि रॉयल कॉलेज ऑफ फ़ीज़ीशियन्स) की डिग्री प्राप्त की।

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सन 1941 में डॉ अय्यर को अपने परिवार के साथ भारत भाग आने को मजबूर होना पड़ा। उन्होने तीन साल के लिए तमिलनाडू में भी निवास किया और युद्ध समाप्त होने के बाद सन 1949 में वो एम.एस. करने के लिए एक बार फिर लंदन गईं। वहाँ उन्हें रॉयल कॉलेज ऑफ फ़ीज़ीशियन्स से फ़ेलोशिप प्राप्त की और उन्होने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में अध्ययन किया।  
1953 में पुनः भारत लौटने पर उन्होने दिल्ली में लेडी हार्डिंग्स मेडिकल कॉलेज में लेक्चरर के रूप में कार्य किया जहां उन्होने कार्डियोलोजी क्लीनिक की स्थापना भी की। उन्होने अपने एक साक्षात्कार में कहा है “जब मैं लेडी हार्डिंग अस्पताल से जुड़ी, वहाँ सभी महिलाएं अंग्रेज़ थीं। वहाँ कार्डियोलोजी विभाग नहीं था। हमने इसे शुरू किया। फिर जी.बी. पंत हॉस्पिटल में मैंने कार्डियोलोजी विभाग शुरू किया।“ उस समय लोग हृदय रोगों के प्रति अपरचित थे। डॉ पद्मावती ने न केवल स्वयं को प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ के रूप में स्थापित ही किया बल्कि अपना पूरा जीवन हृदय रोगियों की सेवा-सुश्रुषा में समर्पित कर दिया। कार्डियोलोजी क्लीनिक के साथ-साथ उन्होने लेडी हार्डिंग में एक कैथेटर प्रयोगशाला भी स्थापित की।

देश के प्रतिष्ठित मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में निदेशक बनने के बाद उन्होने वहाँ भी पहले कार्डियोलोजी विभाग को स्थापित किया। उसके बाद वो सैकड़ों नए चिकित्सकों को प्रशिक्षित भी करती रहीं। डॉ पद्मावती उस दौर की मांग समझती थीं। उस समय कार्डियोलोजी एक अंजान विभाग था पर वो इसकी आवश्यकता से भली भांति परिचित थीं। इसीलिए उन्होने सन 1981 में दिल्ली में भारत के पहले राष्ट्रिय हृदय संस्थान (NHI) को बनाने के लिए पूरी शिद्दत से पहल की। उनकी ये शिद्दत रंग भी लायी और संस्थान स्थापित हुआ। उस समय की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमति इन्दिरा गांधी जी अपने बेटे राजीव गांधी के जन्मदिवस की व्यस्तता के बाद भी डॉ पद्मावती के आमंत्रण पर कार्डियोलोजी संस्थान के उदघाटन के लिए समय निकाल कर पहुंची।

आज जब ना तो रोगों की गिनती कम है न ही उनके इलाज की। हर रोग का अपना अलग विभाग स्थित है। दिन-प्रतिदिन नयी तकनीकें और सर्वोच्च तरीके उपयोग हो रहे हैं। वहीं एक समय ऐसा भी था जब डॉ पद्मावती जैसे ही कई महान डॉक्टरों ने इन विभागों का अपनी मेहनत और शैक्षिक बल से दुनिया को संज्ञान कराया। हम सदा-सर्वदा इन महानतम हस्तियों के ऋणी रहेंगे।
डॉ पद्मवाती अय्यर इस समय 101 वर्ष की आयु में भी दिल्ली के राष्ट्रिय हृदय संस्थान में निदेशक और ऑल इंडिया हार्ट फ़ाउंडेशन की संस्थापक अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। वे हृदय रोग में छात्रों को प्रशिक्षित करने के लिए W.H.O को भी अपना सहयोग प्रदान करती हैं। भारत के चिकित्सीय क्षेत्र में उनके इस अमूल्य योगदान के लिए उन्हें शत शत नमन।   


गुरुवार, 7 जून 2018

शिक्षा और इतिहास के साथ खिलवाड़ उचित नहीं


आज ही एक बहुत अच्छी बात पढ़ने को मिली-
शिक्षा हमें ये याद नहीं दिला रही कि हिटलर ने 6 मिलियन यहूदियों की हत्या कर दी बल्कि ये समझाती है कि कैसे लाखों साधारण जर्मन्स को इस बात पे राज़ी कर लिया कि ये ज़रूरी था। शिक्षा हमें सिखाती है कि हम पहचान पाएँ कि कब इतिहास खुद को दोहरा रहा है।“

पढ़ेगा इंडिया तो आगे बढ़ेगा इंडिया कहना बहुत आसान है पर इस इंडिया को पढ़ाया क्या जा रहा है इस पर कौन विचार करेगा। एक समय था कि राजनीति में आने वाले लोग, सिर्फ पढे-लिखे ही नहीं उच्च शिक्षा प्राप्त बुद्धिजीवी होते थे। जिस भी क्षेत्र में वो कार्यरत होते थे उसका उन्हें भरपूर ज्ञान होता था। आज का राजनीतिक परिवेश इससे उलट है। आज सत्ता और शासन ही नेताओं और मंत्रियों का एकमात्र उद्देश्य है। उनका खुद का शिक्षा और ज्ञान से दूर-दूर तक का नाता नहीं रहा तो उनसे इतिहास की समझ के बारे में क्या अपेक्षा रखी जाए।

मौजूदा राजनीतिक परिवेश उद्दंड बंदरों की टोली जैसा है, जिसके पास कोई लक्ष्य नहीं है, कोई विचारधारा नहीं है। कोई मन्तव्य भी नहीं। इस पर भी गाहे-बगाहे वो अपनी बेवकूफ़ियों का परिचय जन सम्बोधन के दौरान चौड़े हो कर करते रहते हैं। चाहे वो मोरनी का मोर के आंसुओं से गर्भवती होने की बात हो’, या महाभारत काल में इंटरनेट और वाई-फ़ाई की। कोई माता सीता को टेस्ट ट्यूब बेबी बताता है तो कोई महाभारत युद्ध के लाइव टेलिकास्ट की बात करता है।

इतना काफी नहीं है, इनकी मूर्खता में चार-चाँद तब लगते हैं जब इनके द्वारा इतिहास के साथ छेड़-छाड़ की जाती है। हल्दीघाटी के युद्ध में महारणा प्रताप को अकबर के हांथों पराजय का सामना करना पड़ा था। इतिहासकारों ने अपने श्रेष्ठ लेखन के द्वारा सारे संसार को ये विदित कराया है । यहाँ तक कि इतिहास के अनेकों पहलुओं के प्रमाण भी मौजूद हैं। पर आज माहौल यूं है कि बच्चों की किताबों से इतिहास को बदला जा रहा है। महारणा प्रताप ने अकबर पर विजय पायी। क्यूँ ऐसा लगता है इन महामूर्खों को कि स्कूल की किताबों के अक्षर इधर उधर कर देने से ये इतिहास बदल लेंगे। कुछ राज्यों में तो अब देश के राजनीतिक इतिहास को भी मार डाला गया है। बच्चे अब बापू और चाचा नेहरू की जीवनी और देश के प्रति उनके समर्पण की गाथा ना कभी पढ़ेंगे और ना सुनेंगे। दुखद ये है कि इसके बदले जो उन्हें पढ़ाया जाएगा वो झूठ और काल्पनिकता होगी।

हाल ही में मुग़लसराय रेलवे स्टेशन का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय रखा गया। सत्ता सरकार की मूर्खता का चरम ये भी है कि उन्हें लगता है कि वो नामों से मुग़ल हटा देंगे तो उनका इतिहास भी ख़तम हो जाएगा। इस परिवर्तन के बाद सोशल मीडिया पर अनेकों चुटकुले प्रसारित हुए। जैसे अब मुग़लई चिकिन को पंडित दीन दयाल उपाध्याय चिकिन कहा जाएगा और वो फिल्म मुग़ल-ए-आज़म का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल-ए-आज़म उपाध्याय रखा जाएगा। मुद्दा ये नहीं है कि मुग़लों ने भारत के साथ क्या अच्छा किया या क्या बुरा, या फिर सिर्फ बुरा ही बुरा। मुद्दा ये है कि वो भारत के इतिहास का अभिन्न अंग हैं, जैसे पुर्तगाली, यूनानी, फारसी, चीनी और अंग्रेज़। इन सब का इतिहास हमें उस समय घटी घटनाओं और परिवेश के कारण पैदा हुई परिस्थितियों की सीख देता है और भविष्य में उन गलतियों को ना दोहराए जाने का ज्ञान देता है।

आखिर हम इंसान हैं गलतियों से ही सीखते हैं। अपनी गलतियों से सबक लेने के लिए ही उन्हें याद रखते हैं। तो फिर इतिहास को बदलने के पीछे आखिर मंशा क्या है? क्यूँ हम अपनी आगे आने वाली पीढ़ी को झूठ और काल्पनिकता उत्तराधिकार में देना चाहते हैं। क्यूँ हम वो गलतियाँ दोहरा रहे हैं जो हमसे पहले भारतियों ने की। जिसके कारण ही भारत ने बारंबार विदेशी आक्रमण झेले और फिर गुलामी।

थोड़ा इतिहास में ही पीछे जाएँ तो पता चलता है कि अंग्रेजों ने हम पर राज करते समय हमारा कीमती इतिहास मिटाने और ख़त्म करने की पुरजोर कोशिश की थी। क्यूंकी वो चाहते थे कि भारतीय ये कभी ना जाने कि वो एक समर्थ देश के निवासी है, यहाँ ज्ञान और बुद्धिजीविता का भंडार है। इस तरह हमें अज्ञान में रखते हुए वो आसानी से हम पर शासन करते रहे।
आज भी ये ही हो रहा है। अपने सामाजिक, राजनीतिक, शैक्षिक परिवेश को गौर से देखिये। हम एक बार फिर से अज्ञान के गुलाम होने को ना सिर्फ तैयार बैठे हैं बल्कि प्रसन्नचित्त मुद्रा में स्वयं को गर्वित भी महसूस कर रहे हैं।     

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शनिवार, 2 जून 2018

वो पंडित नेहरू थे।


हमारा संविधान लोकतान्त्रिक आग्रह की अभिव्यक्ति है। संविधान मौलिक अधिकारों और नीति सिद्धांतों का प्रतीक है, जो कई प्रकार की स्वतन्त्रता का आश्वासन देता है। हमारा राज्य एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है जो प्रत्येक समूह, देश के प्रत्येक भाग, प्रांत और क्षेत्र को बराबर मौका प्रदान करता है, राजनीतिक एकता के बारे में बात करना पर्याप्त नहीं है; हमारे पास भावनात्मक एकता होनी चाहिए जो जाति बाधाओं, सांप्रदायिक या धार्मिक बाधाओं के साथ प्रांतीय बाधाओं से दूर हो।“ 
-पंडित जवाहर लाल नेहरू

एक समय था जब राजनैतिक हस्ती होना अपनेआप में एक दायित्व होता था। जिस दायित्व को उठाने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता थी ना सिर्फ अच्छा शिक्षित होना बल्कि व्यावहारिक ज्ञान भी। राजनेताओं को अपनी, देश की और भाषा की गरिमा का भी पूर्णरूप से ध्यान रखना होता था और वे रखते थे। जब कोई नेता या प्रधानमंत्री किसी मंच से देश की जनता को संबोधित करते थे तो उनकी भाषा कितनी सदी हुई, मर्यादापूर्ण और गरिमामय होती थी। उनके शब्द जनता में जोश भर देते थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री माननीय पंडित जवाहर लाल नेहरू जी की शिक्षा, भाषण मर्यादा, देश और जनता के लिए समर्पण के हम आज तक कायल हैं। जब कभी भी उन्होने जनता को संबोधित किया चाहे देश में या विदेश में, उनके भाषणों में देश के प्रति समर्पण और चिंता होती थी। न केवल वो देश की समस्याओं को समझते थे बल्कि उनसे निपटने के लिए तत्पर भी रहते थे।

विगत कुछ वर्षों में उनके चरित्र की गरिमा से खिलवाड़ किया जा रहा है। राजनैतिक मर्यादा का पतन हो रहा था। पंडित नेहरू के संबंध में अनेकानेक असत्य जनता के मस्तिष्क में ठूँसे जा रहे हैं। कमाल की बात ये है कि इस सब में युवा वर्ग का भी बढ़ चढ़ कर योगदान है। ना केवल पंडित जी देश के प्रथम प्रधानमंत्री थे बल्कि इस देश के लोकतन्त्र के आधार भी हैं। उनके चरित्र को धूमिल करने से, उनके द्वारा दिये गए योगदान को इतिहास से नहीं मिटाया जा सकता।

हमारे देश ने अनेकों युद्ध सहे हैं, अनेकों बार इस सोने की चिड़िया को हथियाने की कोशिश की जा चुकी है। फारसी, यूनानी, पुर्तगाली, अफगानी, मुग़ल, और फिर अंग्रेजों से जूझते हुए स्वतंत्र होने के बाद जब देश ने आज़ादी की हवा में सांस ली और पंडित जी ने देश की बागडोर संभाली, तब भारत की इतनी हैसियत भी नहीं थी कि हम अपने आप ही इस देश में सुई और धागे जैसी चीज़ भी बना सकें। पर प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने ना सिर्फ देश को संभाला बल्कि आपने कुशल नेत्रत्व में देश की उन्नति के लिए कार्यरत हो गए।

ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइन्स (AIIMS), इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालजी (IIT), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालजी (NIT), भारत को उनके प्रमुख योगदानों में से हैं। इसके अलावा उनके पाँच वर्षीय कार्यक्रम में देश के सभी बच्चों के लिए मुफ्त प्राथमिक शिक्षा का भी प्रावधान था। हिन्दू सिविल कोड में लाये गए उनके परिवर्तनों के कारण ही हिन्दू विधवाओं को संपत्ति और उत्तराधिकार में पुरुष के बराबर स्थान मिला। जाती भेद को भी अपराध का दर्जा देने के लिए उन्होने हिन्दू लॉ में परिवर्तन किए। 
    
उन्होने आधुनिक विचारों और मूल्यों को व्यक्त किया, धर्मनिरपेक्षता पर ज़ोर दिया, भारत की मूल एकता को बल दिया, और जातीय और धार्मिक विविधता के मुक़ाबले, भारत को वैज्ञानिक नवाचार और तकनीकी प्रगति की आधुनिक उम्र की ओर ले गए।

पंडित जी एक सम्पन्न परिवार से संबंध रखते थे, उनके पिता के साथ-साथ उन्हें आपने मात्रपक्ष की भी संपत्ति का उत्तराधिकार मिला। उनके पिता की मृत्यु के बाद उनके पास अपना खर्च चलाने के लिए उनकी लिखी हुई किताबें ही एकमात्र आय का साधन थीं। वो उन व्यक्तियों में से थे जो अपने घर में रात को खिड़की के समीप ज़मीन पर सोया करते थे जिससे कि उनके द्वारा इस्तेमाल किए गए एयर कंडीशनर का खर्च देश को ना उठाना पड़े।   

“हमारा अपना देश समस्याओं से भरा है, खास तौर से हमारे सभी अनगिनत लोगों को एक अच्छा जीवन दे पाना। वो तब ही हो सकता है जब यहाँ शांति हो, तो हमारे लिए शांति जुनून है। मात्र एक जुनून नहीं बल्कि कुछ ऐसा जिसकी तरफ हमारा मस्तिष्क और तर्क हमें ले जाए और वो हमारी उन्नति के लिए आवश्यक हो।“

राजनीति के गिरते हुए स्तर में हालात ये हैं कि उनकी बहन श्रीमति विजयलक्ष्मी पंडित, भांजी नयनतारा, के साथ आलिंगन और चुंबन के चित्रों से उनके चरित्र पर सवाल उठाए जाते हैं। लेडी माउंटबेटन के साथ उनके रिश्तों की वीभत्स व्याख्या की जाती है। उन्हें अपनी पत्नी श्रीमति कमला नेहरू की मृत्यु का कारण बताया जाता है। जबकि जिस समय श्रीमती कमला नेहरू टीबी के कारण अस्वस्थ हुईं उस समय पंडित जी जेल में थे। उनकी पत्नी के गिरते हुए स्वास्थ के कारण जेल से रिहा किया गया जिसके बाद वो अपनी पत्नी का इलाज कराते हुये उनके साथ रहे पर उन्हें बचा नहीं पाये।

देश, संविधान, शांति, सौहाद्र सभी का ज्ञान, मान और चिंता उनके भाषणों में स्पष्ट दिखती रही है।

मेरा मानना है की मूल बात यह है कि अनुचित साधन सही नतीजे तक नहीं ले जा सकते। यह अब केवल एक नैतिक सिद्धांत नहीं है, बल्कि एक व्यावहारिक प्रस्ताव है। इस प्रकार हिंसा आज संभवतः किसी भी बड़ी समस्या के समाधान के लिए नेत्रत्व नहीं कर सकती, क्यूंकी हिंसा बहुत भयानक और विनाशकरी हो गई है। सवाल उठता है कि हमारा अंतिम उद्देश्य क्या होना चाहिए।“  

क्षोभ होता है मुझे जब अराजक तत्व सोशल मीडिया पर उनके प्रति असम्मान जताते हुए उन्हें नेहरू-नेहरू कह के संबोधित करता है और उनके प्रति अफवाहें फैलाते हैं। वो पंडित नेहरू थे तुम्हारे घर के नौकर नहीं। उनके प्रति असम्मान केवल उनका नहीं बल्कि प्रधानमंत्री के पद का भी है। कुछ समय पहले तक पंडित के संबंध में बच्चों को उनकी किताबों में पढ़ाया जाता था। अब उनके चाचा नेहरू को उनकी किताबों से दूर कर दिया गया है। कितने भी प्रयास कर लिए जाएँ भारत के लिए उनके योगदान को छुपाने के और इतिहास की किताबों से उन्हें मिटाने के, पर लोग ये कैसे भूल जाते हैं कि वो इतिहास से नहीं है, भारत का राजनीतिक इतिहास उनसे है।

“भारत के एक महान बेटे, बुद्ध, ने कहा है कि एकमात्र वास्तविक विजय वही है जिसमें हर कोई बराबर से विजयी हुआ हो और जहां किसी के लिए भी पतन ना हो। आज के विश्व में ये ही यथार्थवादी विजय है, इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग केवल विनाश कि ओर ले जाएगा।“ 


शुक्रवार, 1 जून 2018

युवा वर्ग, उसकी संकुचित सोच और सोशल मीडिया



ये लेख मेरे क्षुब्ध हृदय की एक अभिव्यक्ति मात्र है। मैं निराश हूँ क्षुब्ध हूँ, मेरे ही उम्र के युवा वर्ग और नयी पीढ़ी से। कारण है उनके मस्तिष्क की संकुचित सोच जो अनावश्यक अज्ञानता का आवरण ओढ़े हुए है। जिसके पास आज के समय में अनेकों साधन है किसी भी तथ्य की जांच करने के लिए पर वो करते नहीं और सोशल मीडिया पर प्रत्येक तार्किक अथवा अतार्किक, सत्य अथवा असत्य संदेश या पोस्ट की जांच किए बगैर न केवल उस पर विश्वास करते हैं बल्कि उसे बंदूक से निकलने वाली गोली से भी तेज़ गति में आगे साझा कर देते हैं।

क्या व्हाट्स एप या फेसबुक पर आयी हुई हर बात सही है? कितनी ही घटनाएँ घट रही हैं, गलत संदेश वाले पोस्ट्स के कारण मासूमों की हत्या तक हो जाती है। न सिर्फ हस्तियों का बल्कि किसी भी साधारण जन का चरित्र मलिन कर दिया जाता है। बड़ी आसानी से महामारियों में कौन सी होम्योपेथिक दवा काम करेगी हम पढ़ते हैं और आगे बढ़ा देते हैं। कभी सोचा है कि वो दवा किस व्यक्ति पर किस तरह का प्रभाव डालेगी और कहीं उस के कारण किसी की जान ना चली जाए।

यू.एन. ने हमारे राष्ट्र गान को, प्रधानमंत्री को, पूर्व प्रधानमंत्री को, राष्ट्रीय ध्वज को और पता नहीं किस-किस को क्या-क्या उपाधि दे दी है। आपने पढ़ा और खुशी से छाती चौड़ी करते हुए दनादन शेयर करते गए। बिना इतनी महत्त्वपूर्ण घटनाओं की जांच किए हुए। क्या आपको अंदाज़ा भी है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आपकी इस मूर्खता के कितने चर्चे होते हैं, और जब कोई विदेशी आपको डंब इंडियन कह के संबोधित कर देता है तो आपका खून खौल जाता है।

आप किसी एक राजनीतिक पार्टी के समर्थक है और अन्य के विरोधी तो आप समर्थन और विरोध दोनों ही, सरकार की सफलता और विफलता के पोस्ट्स के माध्यम से दर्शाते हैं। बिना सोचे समझे गलत आंकड़ों पर ना केवल खुद यकीन करते हैं बल्कि वही गलत जानकारी आगे भी बढ़ाते हैं। जिस सरकार के आप विरोधी हैं उस पर खुले आम इल्ज़ाम लगाते हैं क्यूंकी ये उस सरकार के आईटी सेल से आया हुआ संदेश है जिसके आप समर्थन में हैं। बिना इस बात की जांच किए कि जो लिंक आप शेयर कर रहे हैं वो कितनी औथेंटिक साइट के माध्यम से आया है। विगत कुछ वर्षों में राजनीति का ये वीभत्स रूप सामने आया है जो ये दर्शाता है कि जब एक पक्ष अपनी लकीर बड़ी नहीं कर पाता तो वो विपक्ष की लकीर छोटी करने में लग जाता है। कहने का तात्पर्य है की यदि आप सम्मान अर्जित करने लायक कर्म नहीं कर पा रहे हैं तो किसी और को अपमानित करने लगते हैं। ये कैसी तुलना है “उसके चरित्र जितना तो मेरा चरित्र मलिन नहीं!”

आप ना केवल भूतपूर्व प्रधानमंत्री की गरिमा के साथ खिलवाड़ करते हैं बल्कि उनका चरित्र भी मलिन करने का प्रयास करते हैं वो भी अपनी आधी-अधूरी जानकारी और सुनी-सुनाई बातों के दम पर। ऐसा करते समय आपको ये भी याद नहीं रहता कि आप किसी व्यक्ति विशेष की नहीं अपितु प्रधानमंत्री पद की गरिमा का भी अपमान कर रहे हैं।  

हर किसी ने वो कहावत सुनी होगी आज जो बोओगे कल वही काटोगे। ध्यान रखिए आज आप जो भी और जैसे भी कर रहे हैं अपने आने वाली पीढ़ी के लिए बुनियाद तैयार कर रहे हैं। जैसे आपके परिवार ने आपके लिए की। जिस शिक्षा और विवेक को आपने ताक पर रख दिया है और झूठ का एक अम्बार खड़ा कर रहे हैं कल वो आपको और आपकी पीढ़ी को किस रूप में नुकसान पहुंचाएगा इसकी कल्पना भी रोंगटे खड़े कर देती है।

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अनुच्छेद 370 पर सरकार का ऐतिहासिक निर्णय- मेरे विचार

आवश्यक नहीं कि हर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी ही जाए और कुछ लिखा-बोला ही जाए। पर बात जब कश्मीर कि आती है तो भारत का बच्चा-बच्चा बोलता है और ...